02 जुलाई 2022

टिप्पणी के पीछे

एक टिप्पणी आई, पता नहीं वो आदेश में है या आदेश से बाहर की मगर उन सबके मुँह पर तमाचा है जो खुद को जबरदस्त धर्मनिरपेक्ष, जबरदस्त आदर्शवादी बताते नहीं थकते हैं.


नूपुर शर्मा के केस में ही टिप्पणी आई है, उसी का उदाहरण ही इसके लिए उचित है.


नूपुर शर्मा ने एक बात कही, उस पर बवाल हुआ तो उसकी पार्टी ने उस पर एक्शन लिया. उस बात के ठीक पहले तक उसी पार्टी के साथ खड़े होने का ढोंग करने वाले एक झटके में किनारे हो गए. जिसे 56 इंची शेर बताते नहीं थकते थे, उसे चूहा बताने में शर्म नहीं कर रहे थे. उनको समझाने पर वे अपने निष्पक्ष होने, आदर्श होने का नाटक पेश करने लगे.


अब आइये टिप्पणी पर. उनको भी मालूम है कि क्या सही है, क्या गलत है. उनको भी पता है कि कौन सुरक्षा के लिए खतरा है, किसे वाकई सुरक्षा चाहिए. उनको भी जानकारी है कि गधे कौन सी घास खाते हैं, कौन सी नहीं. इसके बाद भी अपने बाप के साथ, अपने आका के साथ पूरी तन्मयता से खड़े दिखे.


यही अंतर है उनमें और तुममें. यही अंतर है पीटने और पिटने में. यही अंतर है आक्रामक होने और सुरक्षात्मक होने में.


तुम एक उस व्यक्ति के साथ, एक उस पार्टी के साथ पूरी ताकत से नहीं खड़े हो सके जिसने महज सात-आठ साल में तुमको खुलकर बोलना-लिखना सिखा दिया. तुम लोग उसके साथ ताकत बनकर नहीं आ सके जिसने एक झटके में तुम्हारे विरोधियों की ताकत संवैधानिक रूप से ख़त्म कर दी. तुम पूरी तन्मयता से उसका चेहरा नहीं बन सके जो आये दिन मुखौटा लगाये लोगों का चेहरा वैश्विक स्तर पर सामने लाने में लगा है.


तुमको बस अपनी प्रोफाइल की चिंता है, अपने स्टेटस की चिंता है, अपने नाम की चिंता है और यही कारण है कि तुम आज भी एक शब्द सही नहीं लिख पा रहे. तुम्हारा भला कोई न कर पाएगा, यहाँ तक कि तुम स्वयं भी अपना भला न कर सकोगे.

 

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