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04 जनवरी 2022

साहित्यिक सामग्री की खुलेआम चोरी

Faculty Induction Programme का एक सप्ताह निकल चुका है। इस दौरान बहुत से विद्वानों ने आकर विभिन्न विषयों पर अपना व्याख्यान दिया। उनके अनुभवों, उनके कार्यों से बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। कुछ ऐसे विषयों से भी परिचय हो रहा है जो कि जानकारी मे तो थे किन्तु उसने प्रति बहुत ज्यादा सजगता नहीं थी। विषयों में साहित्यिक चोरी (Plegarism) और उद्धरण (Citation) को लिया जा सकता है। विगत कुछ वर्षों से इन दोनों विषयों पर जोर-शोर से बात हो रही है, इसके बारे में शोध-कार्यों मे बताया, समझाया जा रहा है मगर स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पा रही थी। वर्तमान में चल रहे Faculty Induction Programme में आए वक्ता द्वारा इस पर विस्तार से प्रकाश डाला  गया। उनके द्वारा समझाया गया कि किस तरह शब्दों की चोरी भी व्यक्ति के कैरियर को नुकसान पहुँचा  सकती है।


यहाँ देखने में आ रहा है कि जबसे यू जी सी द्वारा शोध और शिक्षण को एकसाथ जोड़कर किसी भी प्राध्यापक के लिए अनिवार्य सा कर दिया है, उसी समय से प्राध्यापकों पर एक तरह का दवाब बढ़ गया है। अब उनके द्वारा शिक्षण कार्य के साथ-साथ शोध-कार्य करवाए जाने का, रिसर्च पेपर लिखने का भी दवाब है। ऐसी स्थिति में बहुत से लोग ऐसे हैं जो इधर-उधर की जुगाड़ से रिसर्च पेपर लिखने मे लग गए हैं। ऐसे लोग ही सामग्री की चोरी करने मे सबसे आगे होते हैं। सामग्री की चोरी के साथ-साथ उद्धरण का लगाया जाना या कहें कि उसकी चोरी रोकने के भी अनेकानेक नियम बने हुए हैं मगर शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोग इन नियमों को एक किनारे लगाकर खुलेआम चोरी करने मे लगे हुए हैं। 

15 जून 2020

क्या ब्लॉगर भी चोरी, सीनाजोरी जैसी हरकतें करने लगे हैं?

कल रात नियमित भ्रमण पर हमारीवाणी पर टहलना हो रहा था. अभी ज्यादा दूर जाना नहीं हो सका था कि एक पोस्ट का शीर्षक हमें अपनी कविता जैसा दिखा. ब्लॉगर का नाम भी पहचाना हुआ था. इसलिए लगा नहीं कि हमारी कविता वहाँ पोस्ट की गई होगी. इसके बजाय लगा कि कहीं हमारी कविता के बारे में तो कुछ लिखा तो नहीं गया है. ऐसा विचार आते ही पोस्ट लिंक पर क्लिक कर दिया. पोस्ट खुली तो हमारी आँखें खुलीं. पूरी की पूरी कविता उस पोस्ट में थी मगर हमारे नाम के बिना. पेज दो-तीन पर रिफ्रेश करके भी देखा, कहीं नेटवर्क कोई होशियारी न कर रहा हो मगर ऐसा नहीं था. हमारा नाम लेखक ने लिखा नहीं था सो वहाँ था ही नहीं. कहीं और भी किसी रूप में ये प्रदर्शित नहीं हो रहा था कि वो पोस्ट हमारी है.


बहरहाल, इस तरह की घटनाओं से आये दिन दो-चार होते हैं. सोशल मीडिया के विशाल जंगल में, इस भूलभुलैया में कब कौन चोर बनकर आपकी रचनाओं के सहारे प्रसिद्धि पाता रहे, कहा नहीं जा सकता. अक्सर घूम-फिर कर हमारी ही रचनाएँ हमें टैग करके भेजी जातीं हैं, किसी और के नाम पर. ऐसे में इस ब्लॉग पोस्ट पर अपनी कविता देखना आश्चर्य का विषय नहीं लगा. उन्हीं की तरह का कदम फेसबुक पर एक महाशय और उठाए हैं, उनको भी संकेत कर दिया है. इन्हीं महाशय के नक्शेकदम पर चलते हुए वे भी हमारी उसी कविता को अपनी पोस्ट में जिंदा किये बैठे हैं. दिमाग में आया कि हो सकता है कि ब्लॉगर गलती से नाम न लिख सके हों. चूँकि ब्लॉगर का नाम खासा जाना-पहचाना हुआ है ब्लॉगिंग में, सो यह सोचा ही नहीं कि किसी तरह की चोरी के उद्देश्य से ऐसा किया गया होगा. ऐसा इसलिए भी नहीं लगा क्योंकि हम इतना बड़ा नाम नहीं कि वे ब्लॉगर हमारी रचना चुराएं.

किसी और ब्लॉग पर लगाई गई हमारी कविता 

दिमाग में ऐसी बातें चलते-चलते उनकी उसी पोस्ट में हमने टिप्पणी के द्वारा उनको कविता के मूल के बारे में बताया. साथ ही अपने ब्लॉग पोस्ट की, जिसमें वो कविता लिखी थी, उनको भेज दी. ब्लॉगर द्वारा टिप्पणी को मॉडरेशन में लगाया गया है इस कारण टिप्पणी उस समय प्रकाशित न हुई. आज भी कई बार देखा तो न टिप्पणी प्रकाशित हुई, न ही कविता में हमारा कोई जिक्र हुआ और न ही वह पोस्ट हटाई गई. पहले लगा कि शायद उन्होंने टिप्पणी देखी न हों मगर जब उनके ब्लॉग पर नजर मारी तो महाशय ने आज ही तीन पोस्ट लगाई हैं. इसका सीधा सा अर्थ यही है कि उन्होंने जानबूझ कर टिप्पणियों को नजरअंदाज किया है. हम स्वयं भी कई बार अपनी ब्लॉग पोस्ट में किसी अन्य की पोस्ट को प्रकाशित करते हैं मगर उसके नाम के साथ, उसकी अनुमति के साथ. ब्लॉग पोस्ट को न हटाया जाना या फिर उसमें हमारी कविता का चर्चा न करना कहीं यह सिद्ध तो नहीं कर रहा है कि अब ब्लॉगर भी चोरी, सीनाजोरी जैसी हरकतें करने लगे हैं?

ये हमारी पोस्ट 

फ़िलहाल तो आज फिर उनको टिप्पणी के द्वारा संकेत कर दिया है, देखना है वो करते क्या हैं. यहाँ कविता के चोरी किये जाने से समस्या नहीं क्योंकि यह घटना तो दिख गई, पकड़ में आ गई. जो चोर परदे के पीछे हैं, हम सबकी निगाह से छिपे हैं उनका कोई क्या कर ले रहा है. यद्यपि इस बारे में एक हम ही नहीं बहुत से लोग परेशान हैं तथापि इसके खिलाफ कदम बढ़ाने का प्रयास कोई कर नहीं रहा है. शायद आरम्भ हमें ही करना होगा. आगे क्या करना है ये तो आगे देखेंगे मगर दुःख हो रहा है कि नामचीन ब्लॉगर भी इस जमात में शामिल होते दिखने लगे.

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हमारे मित्र द्वारा फेसबुक पर लिखी पोस्ट 

आप सभी को अवगत कराएँ कि वह कविता हमने सन 2018 में लिखी थी. उस कविता के बारे में हमारे मित्र ने फेसबुक पर एक पोस्ट भी लिखी थी, उसी सन 2018 में.

ये हमारी कविता की पोस्ट लिंक
https://kumarendra.blogspot.com/2018/11/blog-post_16.html
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ये उस पोस्ट की लिंक जहाँ ब्लॉगर महाशय ने हमारी कविता लगा रखी है

https://akhtarkhanakela.blogspot.com/2020/06/blog-post_60.html 
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ये वो लिंक जो फेसबुक पर हमारी कविता की है, किसी और की पोस्ट पर 

हमारी एक कविता, दो जगह, बिना हमारी जानकारी 

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

27 अक्टूबर 2008

कैसे रुकेगी चोरी??????



वर्तमान समय विश्वास-अविश्वास के मध्य अपनी स्वीकार्यता को तलाश कर रहा है. एक व्यक्ति पर भरोसा है तो दूसरे पर भरोसा नहीं. व्यक्ति-व्यक्ति की स्थिति में परिवर्तन आया है. समय का चक्र अनेक परिवर्तन करवाता है और इसी कारण लोगों की सोच में, कार्यशैली में, व्यवहार में परिवर्तन आता है. इसका बहुत सरल उदहारण एक बड़े प्रसिद्द गीत से दिया जा सकता है "बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ, आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ" जिस कालखंड में ये गीत लिखा गया था उस समय इस गीत को लिखने, उसे गुनगुनाने के पीछे निश्चय ही पवित्र धारणा काम कर रही होगी पर आज इस गीत के क्या मायने लगाये जाते हैं (हास्य-व्यंग्य के कार्यक्रमों की देन है ये) कि आदमी होकर आदमी से प्यार.............??????? ये अन्तर सोच का है।



इस पोस्ट के लिखने के पीछे भी एक सोच काम कर रही थी। अपने ब्लॉग विचरण के दौरान एक ब्लॉग पर ताला बना देखा। जो आपके पेज को सुरक्षित रखता है। सुरक्षित इस रूप में कि कोई आपकी पोस्ट के मैटर को चुरा न सके। किसी मायने में तो ये सोच सही है पर किसी रूप में ये कतई सम्भव नहीं है. आख़िर जिसे मैटर चुराना होगा तो वो सीधे-सीधे न चुरा कर उसकी प्रिंट कोपी निकाल कर मैटर चुरा लेगा. ये तो हुई सोच, अब यही सोच पढ़े-लिखे लोगों पर भी लागू होती है. पढ़े-लिखे लोग ही इस तरह की चुरा-चुराई की हरकतें ज्यादा करते हैं. वैसे चुराने की सोच, रोकने की कवायद हमारी समझ से इसलिए भी परे है कि शब्दों के थोड़े से हेर-फेर से समूचा लेख, कविता, कहानी आदि कुछ भी बदल जाता है, अब कहाँ रह गया ताला और कहाँ रह गया सर्वाधिकार का फंदा. शब्द तो उतने ही हैं, विचार अनेक हैं, शब्दों की क्रमबद्धता ज्यादा है तो बस किसी भी लिखे को उठाइये और कर दीजिये कुछ शब्दों को इधर से उधर और कहिये कि क्या खूब लिखा है हमने.



एक दो-चार लाइन का उदाहरण देख लीजिये-



सितारों को जमीन पर सजाने की हसरत है हमारी।
नदियों के रुख को मोड़ने की हसरत है हमारी॥



अब इसी का चोरी किया रूप भी देख लीजिये-



जमीन पर सितारे सजाने की, हसरत है हमारी।
रुख नदियों का मोड़ने की, हसरत है हमारी॥



क्या ये सर्वाधिकार या कोपी राईट का उल्लंघन है? नक़ल तो की ही गई, चोरी तो की ही गई।



वैसे वो ताला हम भी लगाए हैं, जो लोग उसको लगाना चाहें वो वहाँ से उससे सम्बंधित लिंक पर जा सकते हैं।



दीपावली की आपको एवं आपके परिवार को शुभकामनाएं।



करिए कुछ ऐसा की आने वाला समय भयावह न हो कुछ इस तरह हास्यास्पद........और भयावह

वत सावित्री की पूजा करतीं स्त्रियाँ (न संभले तो आने वाले कल की सच्चाई)

ये चित्र उड़नतश्तरी से साभार चुरा कर आपके लिए लाये है.