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24 सितंबर 2024

सोशल मीडिया में फैलती भ्रामकता

सामाजिक संरचना में ऐसी कोई भी स्थिति जो नियंत्रण-मुक्त है, वह अकसर अनावश्यकता को जन्म देने लगती है. वर्तमान में ऐसी स्थिति सोशल मीडिया के सन्दर्भ में नजर आ रही है. इसके विभिन्न प्लेटफ़ॉर्म एक तरह के नियंत्रण में होने के बाद भी आम नागरिक के लिए मुफ्त और अनियंत्रित रूप में उपलब्ध हैं. विचारों का प्रसार करने के साथ-साथ लोगों के मन में भावना रहती है कि उनके विचारों को स्वीकारने वाले अधिक लोग हों. स्वीकारने जैसी अवस्था कब थोपे जाने में बदल जाती है पता ही नहीं चलता है. ऐसी वैचारिकी भी अक्सर भ्रामक, तथ्यहीन नजर आती है. अब विचारों के लिए किसी तरह के स्व-अध्ययन की आवश्यकता नहीं बस इंटरनेट की कृपा से घूम-टहल कर बस इतना देखना है कि खुद के मन की बात कहाँ लिखी हुई है. उसे कॉपी करना है और शेयर करके दूसरों तक पहुँचाना है.  

 

यदि पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया की विषय-सामग्री पर गौर किया जाये तो सहज एहसास हुआ होगा कि बिना सोचे-समझे, बिना तथ्यों की जाँच किये प्रकाशित, शेयर की गई विषय-वस्तु को अंतिम सत्य मानकर उसका प्रसारण चलता रहता है. आये दिन किसी बालक-बालिका की तमाम तरह के चिकित्सकीय उपकरणों से घिरी तस्वीर सोशल मीडिया में दिखती है. अत्यंत संवेदित तरीके से प्रस्तुत पोस्ट पर उसके लिए लाइक, शेयर के माध्यम से धनराशि जुटाने की चर्चा होती है. तस्वीर के बच्चे को देखकर बहुतायत लोग पोस्ट को लाइक, शेयर करने में जुट जाते हैं. क्या एक पल को विचार किया है कि आखिर सोशल मीडिया पर किये जाने वाले लाइक, शेयर पर किसके द्वारा धनराशि प्रदान की जाती है? क्या इस पर गौर किया कि यदि लाइक, शेयर करने पर धनराशि मिलेगी भी तो वह आखिर किसके खाते में जायेगी? ऐसी बातों पर विचार किये बिना सभी आँखें बंद करके किसी दूसरे के हाथों में खेलने लग जाते हैं. इसी तरह से आये दिन उन गुमशुदा बच्चों की पोस्ट भी पोस्ट, शेयर होती रहती है जो वर्षों पहले अपने-अपने घरों को सकुशल मिल चुके होते हैं. ये स्थितियाँ जानकारी का अभाव और स्वयं को सोशल मीडिया के चंगुल में फँसा होने की तरफ इशारा करती हैं.

 



इन दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों के दिमाग से खेलते हुए, उनको तथ्यहीन जानकारी के आकर्षण में फँसाते हुए एक तरह से व्यवस्था के विरुद्ध खड़ा करने का काम किया जा रहा है. आपने अक्सर ऐसी पोस्ट देखी होंगी जिसमें ड्राइविंग लाइसेंस को केन्द्रित करते हुए एक निश्चित समयसीमा पश्चात् नवीनीकरण पर प्रश्न उठाया जाता है. इसी तरह एक अन्य पोस्ट के माध्यम से ड्राइविंग लाइसेंस बनाये जाने की प्रक्रिया पर सवाल उठाया जाता है. क्या ऐसी पोस्ट को शेयर, लाइक करने के पहले या इस पर अपनी सहमति देने के पहले विचार किया गया कि आखिर उम्र के एक पड़ाव के बाद व्यक्ति के देखने की, सुनने की क्षमता कम हो जाती है. बहुत से लोगों के हाथ-पैर में कम्पन होने लगता है. अनेक व्यक्ति स्मृति-लोप का शिकार होने लगते हैं. इन्हीं स्थितियों, स्वास्थ्य की जाँच के लिए एक निश्चित समय बाद किसी भी वाहन चालक के लाइसेंस का नवीनीकरण किया जाता है. अन्य पोस्ट के सन्दर्भ में क्या विचार किया गया कि किसी वाहन का लाइसेंस बनाये जाने के पहले लर्निंग लाइसेंस बनाये जाने की व्यवस्था है. उसके बाद ही वाहन चालन पश्चात् लाइसेंस अंतिम रूप से चालक को प्रदान किया जाता है. इसके बाद भी तथ्यात्मक रूप से अनजान बनकर ऐसी पोस्ट के द्वारा लोगों के दिमाग से खेलने का काम चलता रहता है.

 

ऐसी ही तथ्यहीन जानकारियों के चलते सोशल मीडिया पर एकतरफा कुतर्क चलते रहते हैं. उम्रअनुभवज्ञान को दरकिनार करते हुए लोग यहाँ सहजता से मिल जाते हैं. ऐसा व्यक्ति जिसने किसी विषय को पढ़ना तो दूर कभी देखा भी न होउस पर भी किसी बड़े विशेषज्ञ से ज्यादा गंभीरता से अपनी राय देता है. ऐसा किये जाने से इंटरनेट पर ऐसी सामग्री का जमावड़ा होता जा रहा है जो विशुद्ध रूप से संशयभ्रम फ़ैलाने का काम कर रही है. इसी अनावश्यक स्वतंत्रता के चलते सभी को अपनी बात रखने काअपने विचार पोस्ट करने का अधिकार मिला हुआ है. बिना किसी सेंसर केबिना किसी संपादन के ऐसी सामग्री इंटरनेट पर दिखाई दे रही है जो न केवल भ्रामक है वरन अराजक भी है. इस तरह की अराजक और भ्रामक स्थिति में आने वाली उस पीढ़ी का भी नुकसान होने वाला है जो इंटरनेट की सामग्री को ही प्रमाणित मानती है. उसके लिए पुस्तकों काबुजुर्गों के ज्ञान का कोई अर्थ ही नहीं है. ऐसी स्थिति में अधकचरे ज्ञान सेअशिक्षित लोगों के विचारों से सोशल मीडिया हरा-भरा बना हुआ है. आने वाले समय में यही भ्रामक और तथ्यहीन सामग्री ही सामाजिक क्षति करवाएगी.

 

आज भले ही इसके मायने समझ न आ रहे हों मगर आने वाले समय में इसी तरह की सामग्री के सहारे लोगों के दिमाग कोउनके ज्ञान को गुलाम बनाया जा सकेगा. आवश्यक नहीं कि प्रत्येक कालखंड में सेनाहथियार से ही गुलामी लायी जाए. वर्तमान समय तकनीक का है और आने वाला इससे भी ज्यादा तकनीक काविज्ञान काजानकारियों कातथ्यों का होगा. ऐसे में एक गलत अथवा भ्रामक सामग्री भी किसी हथियार से कम साबित नहीं होगी. आज के लिए न सही मगर आने वाले कल के लिएआने वाली पीढ़ी के लिए आज तथ्यों की गलतियों कोभ्रम कोअराजकता को सँभालना होगा. सोशल मीडिया पर होती अनावश्यक उछल-कूद को नियंत्रित करना होगा.


09 फ़रवरी 2023

Insert Learning : पूर्णतः अनभिज्ञ विषय से परिचय

ज्ञान का, जानकारी का संसार इतना विशाल है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है. ज्ञान सागर में ऐसे-ऐसे मोती हैं, जिनको पाने के लिए उसमें गहराई तक उतरना होता है. ऐसा अनुभव हर बार किसी न किसी प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान प्राप्त होता है, किसी न किसी वर्कशॉप के द्वारा ऐसा अनुभव मिलता है. इन दिनों अपने अध्यापन कार्य में अनिवार्य रूप से किये जाने वाले पुनश्चर्या पाठ्यक्रम (रिफ्रेशर कोर्स) में सहभागिता की जा रही है. ऑनलाइन चल रहे इस पाठ्यक्रम में अभी तक जो जानकारी दी गई उसने हमें व्यक्तिगत रूप से आश्चर्यचकित ही किया है. इंटरनेट की दुनिया में दिन-रात किसी न किसी रूप में विचरण करते रहने के बाद भी एक ऐसे विषय से परिचय हुआ, जिसके बारे में उससे पहले हमने देखा-सुना ही नहीं था.




ऐसा शायद सबके लिए संभव नहीं होता है कि वह सभी विषयों का, सभी क्षेत्रों का जानकार हो. हमारे साथ तो ऐसा बिलकुल भी नहीं है. दो-चार क्षेत्र ही ऐसे हैं, जिनके बारे में अल्प-जानकारी, अल्प-ज्ञान ही प्राप्त कर सके हैं. इंटरनेट तो वैसे भी अत्यंत वृहद् है, जहाँ जितना मिले, जितना ग्रहण किया जाये उतना ही कम है. Insert Learning एक ऐसा विषय हमारे सामने आया जिसके बारे में हमारे पास जानकारी शून्य थी. रिफ्रेशर कोर्स में जब इस बारे में बताया गया तो इसके बारे में जानकर आश्चर्य हुआ. इसके द्वारा किसी भी वेब पेज में दी गई जानकारी में अपनी जानकारी, यूट्यूब लिंक को जोड़कर विद्यार्थियों के लिए अथवा ऐसे लोगों के लिए जिनको जानकारी देनी हो, ज्ञानवर्द्धक सामग्री उसी वेब पेज पर तैयार की जा सकती है. जब सम्बंधित विशेषज्ञ द्वारा इस बारे में बताना आरम्भ किया गया तो एकबारगी लगा कि ऐसे कैसे संभव है कि किसी वेबपेज में किसी तरह से अन्य सामग्री को जोड़ा जा सके? बाद में Insert Learning टूल की सहायता से जब ऐसा खुद किया तो बड़ा अच्छा लगा. आश्चर्य भी लगा कि ऐसे विषय से हम आज तक अनजान थे.


फिलहाल, अभी तो पुनश्चर्या पाठ्यक्रम चल रहा है. निश्चित ही और भी ऐसे विषय हमारे सामने आयेंगे, जो हमारे लिए नए होंगे. निश्चित ही ऐसे अन्य विषयों से परिचय होकर बहुत कुछ नया सीखने को मिलेगा. 






 

02 मार्च 2022

इंटरनेट कुकीज़ (Internet Cookies) : एक जानकारी

आज लगभग प्रत्येक व्यक्ति इंटरनेट का उपयोग कर रहा है. इंटरनेट का किसी भी रूप में उपयोग करने वाले व्यक्ति ने कुकीज (Cookies) के बारे में जरूर सुना होगा. अक्सर मन में सवाल उठता है कि आखिर ये कुकीज है क्या? इसका कार्य करा होता है? कहीं ये उपयोगकर्ता के लिए, कम्प्यूटर या मोबाइल के लिए हानिकारक तो नहीं है? दरअसल किसी भी उपयोगकर्ता द्वारा इंटरनेट पर जब कोई वेबसाइट को, वेबपेज को खोला जाता है तो उस कम्प्यूटर में एक छोटा टैक्स्ट दर्ज हो जाता है, जिसे कुकी कहते हैं. यह उपयोगकर्ता की जानकारी के बिना एक तरह से परदे के पीछे काम करता है. इसका उपयोग कम्प्यूटर पर व्यक्ति की प्राथमिकताओं को याद रखने और फिर से उसी वेबपेज के खुलने पर ब्राउजिंग गतिविधियों को देखने के लिए किया जाता है. कुछ वेबसाइट उपयोगकर्ता के यूजरनेम, पासवर्ड को याद रखते हैं, इससे उपयोगकर्ता को लॉग इन करने में सहजता होती है. यहाँ विशेष बात ये है कि कुकीज कोई प्रोग्राम नहीं हैं, इस कारण से इनके द्वारा कम्प्यूटर अथवा मोबाइल को कोई नुकसान नहीं होता है. 


हम सभी इंटरनेट पर किसी भी वेबसाइट को देखने के लिए, किसी भी वेबपेज पर जानकारी सर्च करने के लिए किसी न किसी ब्राउज़र का उपयोग करते हैं. कम्प्यूटर हो या फिर मोबाइल, उसमें जब भी किसी ब्राउज़र का उपयोग किया जाता है, वह चाहे गूगल क्रोम हो, फ़ायरफ़ॉक्स हो या इंटरनेट एक्सप्लोरर सहित कोई भी ब्राउज़र हो, उसका इस्तेमाल करके किसी वेबसाइट को चलाया जा रहा हो या फिर किसी जानकारी को सर्फ़ किया जा रहा हो तो उसकी जानकारी एक फाइल के रूप में कम्प्यूटर या मोबाइल में सेव हो जाती है. उदाहरण के लिए इंटरनेट उपयोग करने वाले ने कौन सा कीवर्ड इस्तेमाल किया है, कौन सी वेबसाइट खोली है, किस जानकारी को सर्च किया है आदि तो ऐसी सभी जानकारी एक टेक्स्ट फाइल के रूप में हमारे कम्प्यूटर या मोबाइल डाटा में सेव हो जाती है ताकि इसका इस्तेमाल बाद में किया जा सके. कुकीज हम सबके कम्प्यूटर या मोबाइल की हार्ड ड्राइव में इंटरनेट से स्वतः (ऑटोमैटिक) सेव हो जाती है. इसका लाभ यह होता है कि जब भी दोबारा कोई वेबसाइट खोली जाती है तो उससे सम्बंधित कोई भी पेज खोलने में ज्यादा आसानी होती है. इंटरनेट उपयोगकर्ता की पसंदीदा भाषा को याद रखने, उसके काम के विज्ञापन दिखाने और किसी वेबपेज पर आए लोगों की संख्या जानने के लिए कुकीज का इस्तेमाल किया जाता है. कुकी की सहायता से वेबसाइट उपयोगकर्ता के डेटा को सुरक्षित रखने के साथ ही उसके द्वारा चुनी हुई विज्ञापन की सेटिंग को भी याद रख पाती हैं.




कुकीज के अपने कुछ फायदे और कुछ नुकसान हैं. कुकीज फाइल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह किसी सर्वर की फाइल को सेव करने के लिए बहुत ही कम डाटा लेती है. इस कारण से स्थान भी कम घिरता है और डाटा भी कम खर्च होता है. यदि ब्राउज़र किसी कारण से बंद हो जाता है तो कुकीज का इस्तेमाल करके पूर्व में अपनी खोली हुई Tab को दोबारा खोला जा सकता है. इन फायदों के साथ कुकीज का एक नुकसान यह होता है कि यह उपयोगकर्ता के पासवर्ड, उसकी यूज़र आईडी को पहचानता है, सेव करता है. इस कारण से कई बार यह सुरक्षात्मक दृष्टि से खतरनाक हो सकता है. कई बार कुकीज गोपनीयता को लेकर भी संदिग्ध रहती है. इसके द्वारा यह पता लगाया जा सकता है कि कब किस वेबसाइट को देखा गया है. इसके अलावा एक नुकसान जानकारी के लीक होने अथवा बेचे जाने का भी होता है. कई बार कम्प्यूटर, मोबाइल उपयोगकर्ता इंटरनेट का उपयोग करते समय अपनी जानकारी जैसे नाम, पता या कोई अन्य जानकारी सम्बंधित वेबसाइट पर भरता हैं, तो कुछ वेबसाइट इस जानकारी को अपने पास सेव कर लेती हैं. अक्सर देखने में आता है कि बहुत सी वेबसाइट के द्वारा उपयोगकर्ता की यह जानकारी किसी विज्ञापन कंपनी को बेच दी जाती है. इससे सम्बंधित विज्ञापन कंपनी उपयोगकर्ता को विज्ञापन, संदेशों, ई-मेल आदि के द्वारा परेशान करती हैं. हालाँकि बहुत सी वेबसाइट इस तरह की गोपनीयता को अपने तक सीमित रखने के लिए नियम और शर्तों का उल्लेख करके बताती हैं कि वह वेबसाइट उपयोगकर्ता की जानकारी किसी को भी नहीं बेचेगी. उस वेबसाइट के द्वारा इसका भी उल्लेख किया जाता है कि उपयोगकर्ता द्वारा दी जा रही जानकारी सुरक्षित है.


इंटरनेट पर अनेक तरह की कुकीज काम करती हैं. सामान्य रूप में निम्न तरह की कुकीज को समझा जा सकता है.

सेशन कुकीज (Session Cookies) जब तक किसी वेबसाइट को खोले रहा जाता है, तब तक वह कुकी फाइल वहीं रहती है. जैसे ही वेबसाइट बंद करते हैं, वह अपने आप ही हट जाती है.


परसिस्टेंट कुकीज (Persistent Cookies) यह एक प्रकार से स्थायी कुकी है, जो कम्प्यूटर बंद करने के बाद भी रह सकती है. यह कुकी सामान्यतः एक वर्ष या उससे अधिक समय तक सेव रह सकती है. जब भी सम्बंधित वेबसाइट को खोला जाता है तो इसी कुकी के साथ सम्बंधित जानकारी उपयोगकर्ता को मिलने लगती है.


सिक्योर कुकीज (Secure Cookies) यह कुकी उस वेबसाइट के द्वारा सेव होती है, जो https में खुलती है. यह जानकारी गोपनीय रहती है और सुरक्षित मानी जाती है.


एचटीटीपी ओनली कुकीज (HTTP Only Cookies) यह कुकी उन वेबसाइट के माध्यम से कम्प्यूटर या मोबाइल में सेव होती है जो केवल http में ही खोली जाती हैं. यदि उसी वेबसाइट को सुरक्षित https के द्वारा खोला जाये तो http वाली कुकी जानकारी वेबसाइट को नहीं मिल पाएगी. ऐसी स्थिति में वह कुकी काम नहीं करेगी.


ऐसा नहीं है कि सभी वेबसाइट पर कुकीज स्वतः ही काम करने लगती हैं या फिर इनको बंद नहीं किया जा सकता, हटाया नहीं जा सकता. कोई भी उपयोगकर्ता वेबसाइट का उपयोग करते समय कुकीज को चालू (Enable) या बंद (Disable) कर सकता है. सामान्य रूप में बहुत सी वेबसाइट कुकीज़ को स्वीकार (Accept) करने सम्बन्धी नोटिफिकेशन भेजती हैं. बहुत सी वेबसाइट तो कुकीज अस्वीकार (Decline) करने के बाद भी काम करती रहती हैं मगर बहुत सी वेबसाइट काम करना बंद कर देती हैं या सही ढंग से काम नहीं करती हैं. चूँकि कुकीज फाइल किसी तरह की प्रोग्रामिंग फाइल नहीं होती है ऐसे में इसके स्वीकार (Accept)   करने में कोई समस्या नहीं होती. इसको स्वीकारने से उपयोगकर्ता को वेबसाइट पर अच्छा अनुभव प्राप्त होता है. उसके द्वारा किसी ब्राउज़र पर, किसी वेबसाइट के माध्यम से सम्बंधित जानकारी को आसानी से खोजा जा सकता है.


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24 सितंबर 2020

ऑक्सीमीटर की रीडिंग के सम्बन्ध में जानकारी

यह फोटो बहुत वायरल है, और बहुत लोग पूछ रहे हैं करें तो क्या करें? एक ही व्यक्ति की अलग अलग उंगलियों में अलग-अलग Heart Rate एवं अलग-अलग ऑक्सीजन का स्तर है. इनमें से कौन सा ऑक्सीमीटर सही है? क्या सभी ऑक्सीमीटर ख़राब हैं? कौन सी रीडिंग सही मानी जाए? यूं तो कोई सीरियस हो सकता है, मुगालते में रह सकता है कि मेरा Spo2 सही है. वहीं कोई व्यर्थ घबरा सकता है कि मेरा Spo2 कम हो गया. इस फोटो के हिसाब से तो यह मशीन विश्वसनीय नहीं है. यह लेख फ़ोटो से उत्पन्न भ्रमों को ध्वस्त करने के लिए है. उम्मीद है मदद मिलेगी.


इसके सन्दर्भ में निम्न बातें समझ लें


1. यह पोर्टेबल पल्स ऑक्सीमीटर है जो बहुत सस्ते 500 rs से लेकर 3 से 5 हज़ार तक भी आ सकते हैं. घरों में उपयोग के लिए सस्ता लिया जा सकता है. कुछ ऑक्सीमीटर ग़लत रीडिंग देने वाले हो सकते हैं, किसी भी अन्य मशीन की तरह. अच्छा होगा दो सामान्य व्यक्तियों की इंडेक्स फिंगर (तर्जनी) में लगा कर देख लिया जाए. सामान्य वयस्क में पल्स ऑक्सीमीटर 97 से 100 के बीच रीडिंग देता है. यह रीडिंग बदलती रहती है. कुछ सेकण्ड्स के लिए नीचे जाए और फिर बढ़ जाये तो चिंता न करें. ऐसा उंगली के हिल जाने से भी हो सकता है.


2. सबसे अच्छी उंगली व्यस्कों में इंडेक्स फिंगर होगी इसे लगा कर देखने के लिए. किसी भी हाथ की इंडेक्स फिंगर में लगा कर देखिए.


3. उंगली गीली हो (पसीना, पानी), ठंडी हो (आप अभी हाथ धो कर आये हैं) तब रीडिंग गलत आ सकती है. साथ ही उंगली का प्लेसमेंट ढीला हो तब भी ग़लत रीडिंग हो सकती है. ऐसा पतली उंगलियों, बच्चों की उंगलियों इत्यादि के साथ देखने मिल सकता है. हाथ स्थिर न हो तब भी गलत रीडिंग आ सकती है. हाथ को किसी भी सतह जैसे पलंग या टेबल पर स्थिर रख लें. रीडिंग कम आने पर ( 94 से नीचे) कुछ देर लगे रहने दें. यदि रीडिंग स्वतः न बढ़े तो दूसरे हाथ की index finger में लगा कर देखें. फ़िर भी कम दिखे तो इसे कम मानें लेकिन पहले उंगली को कपड़े से अच्छे से पोंछ लें.


मेरे एक परिचित बहुत घबरा गए थे और मुझे भी उन्हें अर्जेंट भर्ती करवाना पड़ा क्योंकि उन्होंने मुझे Spo2 92 बताया. जबकि वे सही ढंग से पोर्टेबल मशीन को लगा नहीं रहे थे. कई बार आरंभिक कुछ सेकंड पल्स ऑक्सीमीटर गलत रीडिंग दे सकता है. अतः कुछ देर धैर्य रखें. कुछ देर में रीडिंग सेटल होती है.


जैसे इस स्थिर चित्र में किस समय कौन सा ऑक्सीमीटर लगा, नहीं पता है हमें. हाथ हिल रहा है या स्थिर है, उंगली हिलायी गई नहीं पता. क्या कोई उंगली गीली है अथवा ढीला प्लेसमेंट है नहीं पता. अतः सभी मशीन सही होते हुए भी अलग अलग रीडिंग मिल सकती है उपरोक्त कारणों की वजह से.


आप चित्र में देखें तो सिर्फ़ 98 प्रतिशत दिखाने वाली उंगली ही ठीक से भीतर है पल्स ऑक्सीमीटर के बाकी उंगलियां हल्की बाहर दिख रही हैं मतलब प्लेसमेंट सही नहीं है.


अंत मे बेहद अहम बात और सबसे आसान भी.


जो रीडिंग अधिकतम हो और कुछ देर को ठहरे, जैसे इस फ़ोटो में 98 को मैं इस व्यक्ति का सही Spo2 मानूंगा. और यदि यह Spo2 97 से 99 के इर्द गिर्द बना रहता है, तो यह इस व्यक्ति का सही Spo2 है, भले ही कुछ देर को किसी और उंगली में 70 ही क्यों न आया हो. कम Spo2 मशीन या हाथ की बहुत सी गलतियों से आ सकता है लेकिन अधिक Spo2 तभी आएगा जब सब कुछ परफेक्ट हो.


अब ज़रा टेक्निकल पक्ष-


बीच में देखिए HR और SP02 के, Pi नाम की चीज़ लाल रंग में लिखी है. Pi का अर्थ है Pulsatile Index. यह यदि अधिक है मतलब अच्छी पल्स मिल रही हैं ऑक्सीमीटर को और वह सही रीडींग देगा. जबकि अत्यधिक कम है तो वह गलत हो सकता है. सामान्य रेंज 1 से 30 हो सकती है. हालांकि आम लोगों को इसे देखने या इस विषय में सोचने की आवश्यकता नहीं है.


आपका

डॉ० अव्यक्त


(उक्त चित्र मिलने पर अपने डॉक्टर्स मित्रों से इस सन्दर्भ में चर्चा की. उन्हीं से यह आलेख प्राप्त हुआ)

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

18 मार्च 2020

कोरोना वायरस से सम्बंधित जानकारियाँ - WHO की तरफ से

कोरोना वायरस को लेकर तमाम सारी भ्रांतियाँ समाज में फ़ैल रही हैं. WHO की आधिकारिक वेबसाइट पर कुछ जानकारियाँ मिलीं. उनको आप सबके साथ शेयर कर रहे हैं. 
अंग्रेजी भाषा में दी गई जानकारी WHO वेबसाइट की है, मूल रूप में. हिन्दी में उसका अनुवाद कर सरल करने की कोशिश की गई है. 
किसी भी तरह की विभेद की स्थिति में अंग्रेजी में दी गई जानकारी ही मान्य होगी.
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COVID-19 virus can be transmitted in areas with hot and humid climates
From the evidence so far, the COVID-19 virus can be transmitted in ALL AREAS, including areas with hot and humid weather. Regardless of climate, adopt protective measures if you live in, or travel to an area reporting COVID-19. The best way to protect yourself against COVID-19 is by frequently cleaning your hands. By doing this you eliminate viruses that may be on your hands and avoid infection that could occur by then touching your eyes, mouth, and nose.
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COVID-19 वायरस गर्म और आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्रों में फ़ैल सकता है?
अब तक के सबूतों से, COVID-19 वायरस गर्म और आर्द्र मौसम वाले क्षेत्रों सहित सभी क्षेत्रों में फ़ैल सकता है। यदि आप COVID-19 संक्रमित क्षेत्र में जाते हैं या वहाँ रहते हैं तो सुरक्षात्मक उपाय अपनाएं। COVID-19 के खिलाफ खुद को बचाने का सबसे अच्छा तरीका है, अपने हाथों की सफाई करना। ऐसा करने से आप अपने हाथों पर लगने वाले वायरस को खत्म कर सकते हैं और संक्रमण से बच सकते हैं।
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Cold weather and snow CANNOT kill the new coronavirus.
There is no reason to believe that cold weather can kill the new coronavirus or other diseases. The normal human body temperature remains around 36.5°C to 37°C, regardless of the external temperature or weather. The most effective way to protect yourself against the new coronavirus is by frequently cleaning your hands with alcohol-based hand rub or washing them with soap and water.
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ठंड के मौसम और बर्फ नए कोरोनावायरस को नहीं मार सकते.
यह मानने का कोई कारण नहीं है कि ठंड का मौसम नए कोरोना वायरस या अन्य बीमारियों को मार सकता है। बाहरी तापमान या मौसम की परवाह किए बिना, सामान्य मानव शरीर का तापमान लगभग 36.5°C से 37°C तक रहता है। नए कोरोनावायरस के खिलाफ खुद को बचाने के लिए सबसे प्रभावी तरीका साबुन और पानी से हाथ धोना है।
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Taking a hot bath does not prevent the new coronavirus disease
Taking a hot bath will not prevent you from catching COVID-19. Your normal body temperature remains around 36.5°C to 37°C, regardless of the temperature of your bath or shower. Actually, taking a hot bath with extremely hot water can be harmful, as it can burn you. The best way to protect yourself against COVID-19 is by frequently cleaning your hands. By doing this you eliminate viruses that may be on your hands and avoid infection that coud occur by then touching your eyes, mouth, and nose.
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गर्म स्नान करने से नए कोरोनावायरस रोग की रोकथाम नहीं होती है.
गर्म स्नान करने से COVID-19 का संक्रमण नहीं रोक पाएंगे। आपके स्नान या शॉवर के तापमान की परवाह किए बिना आपके शरीर का सामान्य तापमान लगभग 36.5°C से 37°C तक रहता है। दरअसल, बेहद गर्म पानी से नहाना हानिकारक हो सकता है, क्योंकि यह आपको जला सकता है। COVID-19 से खुद को बचाने का सबसे अच्छा तरीका है अपने हाथों की सफाई करना। ऐसा करने से आप अपने हाथों पर लगने वाले वायरस को खत्म कर सकते हैं और संक्रमण से बच सकते हैं।
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The new coronavirus CANNOT be transmitted through mosquito bites.
To date there has been no information nor evidence to suggest that the new coronavirus could be transmitted by mosquitoes. The new coronavirus is a respiratory virus which spreads primarily through droplets generated when an infected person coughs or sneezes, or through droplets of saliva or discharge from the nose. To protect yourself, clean your hands frequently with an alcohol-based hand rub or wash them with soap and water. Also, avoid close contact with anyone who is coughing and sneezing.
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कोरोना वायरस मच्छर के काटने से नहीं फैलता है।
आज तक इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है कि कोरोनावायरस को मच्छरों द्वारा फैलाया जा सकता है। नया कोरोनावायरस एक श्वसन वायरस है जो मुख्य रूप से संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से उत्पन्न बूंदों के माध्यम से फैलता है। अपने आप को बचाने के लिए खांसने और छींकने वाले किसी भी व्यक्ति के साथ निकट संपर्क से बचें।
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Are hand dryers effective in killing the new coronavirus?
No. Hand dryers are not effective in killing the 2019-nCoV. To protect yourself against the new coronavirus, you should frequently clean your hands with an alcohol-based hand rub or wash them with soap and water. Once your hands are cleaned, you should dry them thoroughly by using paper towels or a warm air dryer.
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क्या नए कोरोनो वायरस को मारने में हाथ सुखाने वाले यंत्र प्रभावी हैं?
नहीं, कोरोना को मारने में हैंड ड्रायर्स कारगर नहीं हैं। एक बार जब आपके हाथ साफ हो जाते हैं तो आप कागज़ के तौलिये या गर्म हवा के ड्रायर का उपयोग करके हाथ अच्छी तरह से सुखा सकते हैं।
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Can an ultraviolet disinfection lamp kill the new coronavirus?
UV lamps should not be used to sterilize hands or other areas of skin as UV radiation can cause skin irritation.
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क्या एक पराबैंगनी कीटाणुशोधन दीपक नए कोरोनोवायरस को मार सकता है?
यूवी लैंप का उपयोग हाथों या त्वचा के अन्य क्षेत्रों को निष्फल करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यूवी विकिरण त्वचा की जलन पैदा कर सकता है।
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How effective are thermal scanners in detecting people infected with the new coronavirus?
Thermal scanners are effective in detecting people who have developed a fever (i.e. have a higher than normal body temperature) because of infection with the new coronavirus.
However, they cannot detect people who are infected but are not yet sick with fever. This is because it takes between 2 and 10 days before people who are infected become sick and develop a fever.
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नए कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों का पता लगाने में थर्मल स्कैनर कितने प्रभावी हैं?
थर्मल स्कैनर्स उन लोगों का पता लगाने में प्रभावी हैं, जिन्हें नए कोरोनोवायरस के संक्रमण के कारण बुखार (यानी शरीर के सामान्य तापमान से अधिक है) आया है।
हालांकि, वे उन लोगों का पता नहीं लगा सकते जो संक्रमित हैं लेकिन अभी तक बुखार से बीमार नहीं हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि संक्रमित लोगों के बीमार होने और बुखार के विकसित होने से पहले 2 से 10 दिन लगते हैं।
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Can spraying alcohol or chlorine all over your body kill the new coronavirus?
No. Spraying alcohol or chlorine all over your body will not kill viruses that have already entered your body. Spraying such substances can be harmful to clothes or mucous membranes (i.e. eyes, mouth). Be aware that both alcohol and chlorine can be useful to disinfect surfaces, but they need to be used under appropriate recommendations.
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क्या आपके शरीर में अल्कोहल या क्लोरीन का छिड़काव नए कोरोनावायरस को मार सकता है?
नहीं। आपके शरीर पर अल्कोहल या क्लोरीन का छिड़काव करने से आपके शरीर में पहले से मौजूद वायरस नहीं फैलेंगे। ऐसे पदार्थों का छिड़काव कपड़े या श्लेष्मा झिल्ली (यानी आंख, मुंह) के लिए हानिकारक हो सकता है। ज्ञात रहे कि अल्कोहल और क्लोरीन दोनों ही कीटाणुरहित सतहों के लिए उपयोगी हो सकते हैं, लेकिन उन्हें उपयुक्त सिफारिशों के तहत उपयोग करने की आवश्यकता होती है।
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Do vaccines against pneumonia protect you against the new coronavirus?
No. Vaccines against pneumonia, such as pneumococcal vaccine and Haemophilus influenza type B (Hib) vaccine, do not provide protection against the new coronavirus.
The virus is so new and different that it needs its own vaccine. Researchers are trying to develop a vaccine against 2019-nCoV, and WHO is supporting their efforts.
Although these vaccines are not effective against 2019-nCoV, vaccination against respiratory illnesses is highly recommended to protect your health.
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क्या निमोनिया के खिलाफ टीके नए कोरोनावायरस के खिलाफ आपकी रक्षा करते हैं?
नहीं, निमोनिया के खिलाफ टीके, जैसे न्यूमोकोकल वैक्सीन और हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप बी (एचआईबी) वैक्सीन, नए कोरोनावायरस के खिलाफ सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं।
यह वायरस इतना नया और अलग है कि इसे अपने टीके की जरूरत है। शोधकर्ता 2019-nCoV के खिलाफ एक टीका विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं, और WHO उनके प्रयासों का समर्थन कर रहा है।
हालांकि ये टीके 2019-nCoV के खिलाफ प्रभावी नहीं हैं, लेकिन श्वसन संबंधी बीमारियों के खिलाफ टीकाकरण आपके स्वास्थ्य की रक्षा के लिए अत्यधिक अनुशंसित है।
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Can regularly rinsing your nose with saline help prevent infection with the new coronavirus?
No. There is no evidence that regularly rinsing the nose with saline has protected people from infection with the new coronavirus.
There is some limited evidence that regularly rinsing nose with saline can help people recover more quickly from the common cold. However, regularly rinsing the nose has not been shown to prevent respiratory infections.
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क्या नियमित रूप से खारा के साथ आपकी नाक को रिनिंग करने से नए कोरोनावायरस से संक्रमण को रोकने में मदद मिल सकती है?
नहीं। इसका कोई सबूत नहीं है कि नियमित रूप से खारा के साथ नाक को रगड़ने से लोगों को नए कोरोनावायरस से संक्रमण से बचाया जाता है।
कुछ सीमित सबूत हैं कि नियमित रूप से खारा के साथ नाक को रगड़ने से लोगों को सामान्य सर्दी से अधिक जल्दी ठीक होने में मदद मिल सकती है। हालांकि, नियमित रूप से नाक को साफ करने से श्वसन संक्रमण को रोकने के लिए नहीं दिखाया गया है।
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Can eating garlic help prevent infection with the new coronavirus?
Garlic is a healthy food that may have some antimicrobial properties. However, there is no evidence from the current outbreak that eating garlic has protected people from the new coronavirus.
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क्या लहसुन खाने से नए कोरोनावायरस से संक्रमण को रोकने में मदद मिल सकती है?
लहसुन एक स्वस्थ भोजन है जिसमें कुछ रोगाणुरोधी गुण हो सकते हैं। हालांकि, वर्तमान प्रकोप से कोई सबूत नहीं है कि लहसुन खाने से लोगों को नए कोरोनोवायरस से बचाया गया है।
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Does the new coronavirus affect older people, or are younger people also susceptible?
People of all ages can be infected by the new coronavirus (2019-nCoV). Older people, and people with pre-existing medical conditions (such as asthma, diabetes, heart disease) appear to be more vulnerable to becoming severely ill with the virus.
WHO advises people of all ages to take steps to protect themselves from the virus, for example by following good hand hygiene and good respiratory hygiene.
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क्या नए कोरोनोवायरस पुराने लोगों को प्रभावित करते हैं, या बच्चे भी अतिसंवेदनशील होते हैं?
नए कोरोनोवायरस (2019-nCoV) से सभी उम्र के लोग संक्रमित हो सकते हैं। पुराने लोग, और पहले से मौजूद चिकित्सा स्थितियों (जैसे अस्थमा, मधुमेह, हृदय रोग) के लोग वायरस से गंभीर रूप से बीमार होने के लिए अधिक कमजोर दिखाई देते हैं।
डब्ल्यूएचओ सभी उम्र के लोगों को सलाह देता है कि वे खुद को वायरस से बचाने के लिए कदम उठाएं, उदाहरण के लिए अच्छे हाथ की स्वच्छता और अच्छे श्वसन स्वच्छता का पालन करके।
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Are antibiotics effective in preventing and treating the new coronavirus?
No, antibiotics do not work against viruses, only bacteria.
The new coronavirus (2019-nCoV) is a virus and, therefore, antibiotics should not be used as a means of prevention or treatment.
However, if you are hospitalized for the 2019-nCoV, you may receive antibiotics because bacterial co-infection is possible.
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क्या एंटीबायोटिक्स नए कोरोनोवायरस को रोकने और इलाज में प्रभावी हैं?
नहीं, एंटीबायोटिक्स वायरस के खिलाफ काम नहीं करते हैं।
नया कोरोनावायरस (2019-nCoV) एक वायरस है और इसलिए, एंटीबायोटिक्स को रोकथाम या उपचार के साधन के रूप में उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
हालांकि, अगर आपको 2019-nCoV के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है, तो आपको एंटीबायोटिक्स प्राप्त हो सकते हैं क्योंकि बैक्टीरिया का सह-संक्रमण संभव है।
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Are there any specific medicines to prevent or treat the new coronavirus?
To date, there is no specific medicine recommended to prevent or treat the new coronavirus (2019-nCoV).
However, those infected with the virus should receive appropriate care to relieve and treat symptoms, and those with severe illness should receive optimized supportive care. Some specific treatments are under investigation, and will be tested through clinical trials. WHO is helping to accelerate research and development efforts with a range or partners.
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क्या नए कोरोनोवायरस को रोकने या उसका इलाज करने के लिए कोई विशिष्ट दवाएं हैं?
आज तक, नए कोरोनावायरस (2019-nCoV) को रोकने या इलाज के लिए कोई विशिष्ट दवा की सिफारिश नहीं की गई है।
हालांकि, वायरस से संक्रमित लोगों को लक्षणों से राहत और उपचार के लिए उचित देखभाल प्राप्त करनी चाहिए, और गंभीर बीमारी वाले लोगों को अनुकूलित सहायक देखभाल प्राप्त करनी चाहिए। कुछ विशिष्ट उपचारों की जांच चल रही है, और नैदानिक ​​परीक्षणों के माध्यम से परीक्षण किया जाएगा। डब्ल्यूएचओ एक सीमा या भागीदारों के साथ अनुसंधान और विकास के प्रयासों में तेजी लाने में मदद कर रहा है।


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उक्त जानकारी आज दिनांक 18-03-2020 तक WHO की वेबसाइट में उपलब्धता की स्थिति में है. इसे यहाँ से मूल वेबसाइट पर देखा जा सकता है. 
https://www.who.int/emergencies/diseases/novel-coronavirus-2019/advice-for-public/myth-busters

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

02 फ़रवरी 2020

घुमक्कड़ी नई-नई जानकारी के लिए


घूमना-फिरना किसे अच्छा नहीं लगता है? नई-नई जगह देखना, नई-नई जानकारियाँ इकठ्ठा करना, अलग तरह की संस्कृति, कला, जीवन-शैली आदि से परिचय होता है. घूमना-फिरना मतलब साफ़ है कि यात्रा करनी है. यात्राएँ केवल एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने का साधन नहीं हैं वरन इनके द्वारा बहुत कुछ सीखने को मिलता है. पर्यटन को भी इसी कारण से सरकारों द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है कि इसी बहाने लोग एक-दूसरे की संस्कृति से परिचित हो सकें. देखा जाये तो किसी स्थान विशेष तक पहुँच जाना ही यात्रा का उद्देश्य नहीं. किसी स्थान विशेष के बारे में जानकारी कर लेना ही पूर्ण पर्यटन नहीं. यात्रा तो एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जाना भर है. पर्यटन किसी स्थान विशेष को घूम लेना भर है. इसके बीच में भी बहुत कुछ होता है जो बहुत कम लोग आत्मसात कर पाते हैं.
घूमने-फिरने का शौक बहुत बुरी तरह से है. अक्सर अपने व्यस्त समय के बीच से भी कुछ समय निकाल कर घुमक्कड़ी कर ली जाया करती है. नई-नई जगह देखने का शौक, नए-नए लोगों से मिलना, उनकी जीवन-शैली के बारे में जानना आदि का शौक लगातार बना हुआ है और इसमें घूमना बहुत मदद करता है. कई बार अत्यधिक व्यस्तता अथवा छुट्टियों की समस्या के चलते अथवा किसी साथ के न मिलने के चलते कहीं दूर घूमना नहीं हो पाता है तो शहर के आसपास ही एक तरह से भटक लेते हैं. ऐसा करना घुमक्कड़ी की भूख को बहुत हद तक शांत करता है. हमारी घुमक्कड़ी के मायने बहुत अलग से हैं. जिस जगह जा रहे होते हैं, उस जगह के बारे में जानकारी, उससे संदर्भित अन्य किसी तरह की जानकारी तो वहाँ पहुँच कर मिल ही जाती है मगर हमारे लिए उस जगह तक पहुँचने के बीच की तमाम जगहों, अनेक लोगों के बारे में जानकारी इकठ्ठा करना भी मुख्य बात होती है. यात्रा का साधन कुछ भी रहे मगर यात्रा शुरू होते ही हाथ में कैमरा अपने एक्शन मोड में आ जाता है. यह एक्शन मोड रात होने पर ही थमता है. 

रास्ते भर की तमाम जगहों के फोटो, जगह-जगह रुकने पर वहाँ से संदर्भित जानकारी के बारे में पता करना, वहाँ के लोगों से बातचीत करना आदि लगातार होता रहता है. यात्राओं का शौक होने के कारण बहुत ज्यादा यात्राएँ नहीं कर सके हैं. अभी तो अपना देश ही पूरी तरह से नहीं घूम सके हैं, विदेश का तो कोई प्लान ही नहीं. अपने क्षेत्र बुन्देलखण्ड और उसके आसपास के अलावा देश के कई भागों में जाना हुआ. हाँ, अभी नॉर्थ-ईस्ट की तरफ जाना नहीं हुआ मगर जहाँ-जहाँ जाना हुआ है वहाँ पूरे मन से जाना होता है. कैमरा साथ होने के कारण मन और भी ज्यादा लगा रहता है. अक्सर ऐसे दृश्य दिखाई पड़ जाते हैं जो सदैव उस जगह की स्मृति को ताजा करते रहते हैं. कभी कोई प्राकृतिक दृश्य, कभी किसी शहर का अजब सा नजारा, कभी ट्रेन की क्रासिंग के पास की स्थिति, कभी किसी जगह के अटपटे से होर्डिंग्स आदि. ये सब हो सकता है कि उस समय बहुत महत्त्वपूर्ण न लगें, उस समय इनके बारे में कुछ विशेष न लगे मगर बाद में ऐसे चित्र बहुत कुछ याद दिलाते हैं.

उदाहरण के लिए नीचे दिया गया चित्र हमारे कन्याकुमारी जाने के समय का है. ये आपको सामान्य से समोसे ही नजर आ रहे होंगे. हमें भी समोसे ही नजर आये थे और खास बात ये कि ये समोसे ही हैं. बस इनकी खासियत ये है कि ये आलू के बजाय प्याज के बने हुए हैं. विजयवाड़ा स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही हम लोग उतरे. एक मित्र को बुलाया था, वह सामने से आ रहा था. उसी समय इन पर नजर पड़ी. जानकारी करने पर मालूम हुआ कि ये समोसे प्याज के बने हैं. खटाक से हमारे कैमरे ने इन्हें अपने आगोश में ले लिया. देखिये, आज ये सब आपके सामने हैं. यदि उस दिन इनकी फोटो न ली होती तो आज ये कैसे आपके सामने होते. बस, यही सब हमारी यात्रा का, हमारी घुमक्कड़ी का अंग बन जाते हैं. स्थान विशेष से ज्यादा यात्रा के दौरान मिले स्थानों, लोगों, वस्तुओं के बारे में हमारी सजगता ही हमें लगातार यात्राओं के लिए, घुमक्कड़ी के लिए उकसाती रहती है. अब जल्दी ही एक नई यात्रा शुरू करनी है क्योंकि बहुत दिन हो गए जबकि किसी नई जगह को अपने कैमरे में कैद नहीं किया है.



06 अप्रैल 2019

मंगलमय ही नव संवत्सर 2076




आज भले ही सारे काम अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार किये जाते हों मगर इसके निर्माण के 57 वर्ष पूर्व राजा विक्रमादित्य के काल में भारतीय वैज्ञानिकों ने भारतीय कैलेंडर विकसित कर लिया था. इस भारतीय या कहें कि हिन्दू कैलेंडर का आरम्भ हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से माना जाता है. इसके अलावा बारह महीनों का एक वर्ष और सात दिनों का एक सप्ताह रखने का प्रचलन भी विक्रम संवत से ही शुरू हुआ था. इस कैलेण्डर में महीने का हिसाब सूर्य और चंद्रमा की गति पर आधारित है. विक्रम कैलेंडर की इसी धारणा को बाद में यूनानियों के माध्यम से अरब और अंग्रेजों ने अपनाया. इसी कैलेण्डर के आधार पर भारत के अन्य राज्यों ने भी अपने-अपने कैलेंडर का निर्माण किया. 

चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ होने वाले वर्ष को नव संवत्सर भी कहते हैं. संवत्सर के पाँच प्रकार- सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास हैं. विक्रम संवत में इन सभी का समावेश है. मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क आदि सौरवर्ष के माह हैं. यह वर्ष भी 365 दिनों का होता है. इसमें वर्ष का प्रारंभ सूर्य के मेष राशि में प्रवेश से माना जाता है. चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ आदि चंद्रवर्ष के माह हैं. चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है, जो चैत्र माह से शुरू होता है. सौरमास 365 दिन का और चंद्रमास 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन का अंतर आ जाता है. इन दस दिनों को चंद्रमास ही माना जाता है.  समय के साथ ऐसे बढ़े हुए दिनों को मलमास या अधिमास कहते हैं. चंद्र वर्ष में चंद्र की कलाओं में वृद्धि होती है तो यह बारह के स्थान पर तेरह माह का हो जाता है. जब चंद्रमा शुक्ल प्रतिपदा के दिन से बढ़ना शुरू करता है तभी से हिंदू नववर्ष की शुरुआत मानी गई है.
आप सभी को नव संवत्सर की शुभकामनायें.

26 दिसंबर 2018

वैचारिक समृद्धता को बढ़ाता है मेल-मिलाप

यात्राएँ हमेशा कुछ न कुछ सिखाती हैं. नए लोगों से मिलना, नए विचारों से सम्पर्क, नयी संस्कृतियों से परिचय. यह सबकुछ व्यक्ति को समृद्ध बनाता है. अनेक लोगों से मिलना-जुलना व्यक्ति को वैचारिक रूप से सशक्त बनाते हुए विविध आयामों में सोचने-समझने की क्षमता में वृद्धि करता है. अपने रहन-सहन, अपने क्षेत्र के अलावा अन्य क्षेत्रों, स्थानों के बारे में जानकारी मिलती है. आज के तकनीकी भरे दौर में भले ही किताबों, इंटरनेट या किसी दूसरे माध्यम को जानकारी का स्त्रोत स्वीकारा जाए किंतु मेल-जोल, यात्राओं से मिला ज्ञान, जानकारी व्यावहारिक होती है. ख़ुद अपनी दृष्टि में किसी जगह का, वहाँ की स्थिति का अवलोकन, विश्लेषण आदि करना ज़्यादा उपयुक्त और सारगर्भित होता है. वहाँ के लोगों से मिलकर उनकी बोली, स्थानीय परम्पराओं, पर्वों, आयोजनों आदि की जानकारी का मिलना अपने आपमें एक ख़ज़ाना होता है.

व्यक्तिगत रूप से यात्राओं के द्वारा हमें अनेकानेक तरह के लाभ हुए हैं. नए लोगों से मिलना, नई जगह की जानकारी करना हमारे स्वभाव में होने के कारण नई-नई जगहों पर जाने का लोभ छोड़ा नहीं जाता है. इस वर्ष ऐसा हुआ कि दो बार बिहार की यात्रा करने का अवसर मिला. पहली बार इसी वर्ष अगस्त माह में बिहार के शिवहर जिले के गाँव तरियानी छपरा में और दूसरी बार इसी दिसम्बर में शिवहर जिले में ही. आश्चर्य हुआ जानकर कि महज़ पच्चीस वर्ष पहले बने शिवहर में एक भी महाविद्यालय नहीं है. बिहार के सबसे छोटे जिले के रूप में पहचाने जाने वाले जिले में अनेकानेक बुनियादी सुविधाओं का अभाव दिखाई दिया. लोगों में जागरूकता और सक्रियता की कमी इस स्तर तक देखने को मिली कि शाम सात बजे के बाद बाज़ार पूरी तरह से बंद हो जाता है. लोगों की चहल-पहल थम जाती है. ऐसे थमे-ठहरे शिवहर में लोगों में भले ही अपनी समस्याओं को दूर करने के प्रति ललक देखने को न दिखती हो पर कार में दो-दो हूटर लगाने का उत्साह देखने को मिलता है. आश्चर्य तो तब हुआ जब एक टेम्पो में भी हूटर लगा दिखा. 

05 जनवरी 2018

सोशल मीडिया का विस्तार और हमारी भूमिका

सोशल मीडिया के माध्यम से अपने भावों की, अपने विचारों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता होने के कारण आज बहुतायत लोगों द्वारा इसे पसंद किया जा रहा है. इस विशिष्टता के चलते सोशल मीडिया में वैचारिकी को प्रमुखता भले ही न दी जा रही हो किन्तु इसने लोगों को मुखर अवश्य ही बनाया है. अपने विचारों के प्रसारण के लिए किसी मंच की तलाश को समाप्त कर कोई भी व्यक्ति सहजता से अपनी बात को वैश्विक स्तर तक पहुँचा रहा है. उसके लिए अब न किसी संस्थान की जरूरत है, न किसी सम्पादक की मनमर्जी का सवाल है, न विचारों पर किसी तरह के प्रतिबंध का डर है. अब व्यक्ति पूरी स्वतन्त्रता के साथ अपने विचारों का प्रकटीकरण कर रहा है. उसके सामने किसी तरह का कोई अवरोधक नहीं है. वैचारिक स्वतन्त्रता के इस दौर में जहाँ किसी व्यक्ति को असीमित आसमान मिला है, वहीं निर्द्वन्द्व रूप से एक तरह का घातक हथियार भी उसके हाथ में लग गया है. अपनी वैचारिकी से अधिक अब वह अपनी उग्रता, अपने आक्रोश को प्रकट करने में लगा है.  


इस आक्रोश और उग्रता के बीच इस स्वतन्त्र मंच ने लोगों की अभिव्यक्ति को सहज, सरल बनाया है. लोगों ने अपनी रुचियों को स्थापित करने का रास्ता भी तलाशा है. लोगों ने अव्यवस्थाओं के विरुद्ध एकजुट होना शुरू किया है. शासन, प्रशासन की अच्छाइयों को सराहा तो उनकी कमियों को भी दर्शाया है. सरकार के कार्यों की प्रशंसा हुई तो उसकी बुराई भी की गई है. इसके बाद भी सोशल मीडिया पर मिली यह स्वतन्त्रता अपने साथ एक तरह की नकारात्मकता लेकर भी आई है. स्वतन्त्रता के अतिउत्साह में लोग अपनी वैचारिकी के साथ-साथ इस तरह की कमियों को सामने ला रहे हैं जो किसी भी रूप में समाज-हित में नहीं कही जा सकती हैं. सरकार, शासन, प्रशासन से सम्बन्धित लोगों ने इधर-उधर से, गोपनीय ढंग से जानकारी लेकर उसको सोशल मीडिया पर प्रकट करने का कार्य किया है. सरकारी आँकड़ों, खबरों को तोड़मरोड़ कर विकृत, भ्रामक रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा है. धर्म, जाति को आधार बनाकर अन्य दूसरे धर्मों, जातियों पर टिप्पणी करने का काम अब इस मंच पर बहुतायत में होता दिखता है. समाज के किसी भी वर्ग की स्थिति, उसकी क्षमताओं, जीवनशैली, कार्यक्षमताओं आदि को लेकर भी नकारात्मकता दर्शायी गई, और तो और व्यक्तियों द्वारा अपने स्वयं के जीवन की अंतरंगता को सामने रखा गया. पति-पत्नी के बीच की गोपनीयता को  सार्वजनिक किया गया. रिश्तों की मर्यादा को भूल उन्हें कलंकित करने का कार्य किया गया. इन कदमों को भले ही व्यक्तियों की जागरूकता का पैमाना समझा जाने लगा हो, भले ही इसे तकनीकी विकास की स्वतन्त्रता का मानक समझ लिया गया हो किन्तु जानकारी के स्तर पर, सूचनाओं के स्तर पर यह किसी खतरे से कम नहीं है.

हो सकता है कि बहुत से लोगों को ये कपोलकल्पना जैसा लगे किन्तु यदि गम्भीरता से समूची बात को समझा जाये तो एहसास होगा कि किस तरह हम अनजाने अपने देश की, अपने शासन की, अपने समाज की, अपने परिवार की, अपने आपकी सूचनाओं को विदेशी हाथों में सहजता से पहुँचा रहे हैं. हम सभी इस तथ्य से भलीभाँति परिचित हैं कि सोशल मीडिया के तमाम सारे मंचों का संचालन विदेश से ही होता है. इससे किसी भी रूप में इंकार नहीं किया जा सकता है कि हो सकता है कि उनके द्वारा उनके तमाम उपभोक्ताओं का कोई डाटाबैंक गोपनीय रूप से तैयार किया जा रहा हो. सोशल मीडिया मंचों पर दिए जा रहे आँकड़ों, जानकारियों, तथ्यों का उपयोग वे अपने किसी ऐसे अध्ययन के लिए कर रहे हों जो हमारे समाज, हमारे देश के लिए घातक हो. सोशल मीडिया पर पोस्ट किसी भी सामग्री को विदेशी प्रस्तोता अपने ढंग से प्रयोग कर सम्बन्धित समाज की जानकारी हासिल कर लेता हो. हम सब मुफ्त मिली स्वतन्त्रता और मुफ्त मिले मंच के द्वारा अनायास ही चित्रों, विचारों, तथ्यों द्वारा जानकारी, सूचना आदि विदेशियों को उपलब्ध कराते जा रहे हैं. कहा भी जाता है कि आगामी युद्ध तकनीक, जानकारी, सूचनाओं के आधार पर होना है. और अब ऐसा होता दिख भी रहा है. हम सोशल मीडिया के माध्यम से सहजता से विदेशी मंचों तक सूचना प्रेषित करने में लगे हैं कि हमारे देश में कोई एक वर्ग किसी दूसरे वर्ग के प्रति क्या सोच रखता है. एक जाति के लोग दूसरी जाति के लिए किस तरह की सोच रखते हैं.

किसी भी समाज, किसी भी देश, किसी भी व्यक्ति, किसी भी सरकार को कमजोर साबित करना हो, उसे परास्त करना हो तो उससे सम्बन्धित समस्त सूचनाएँ, जानकारियाँ एकत्र कर लेनी चाहिए. सोचने वाली बात है कि कहीं सोशल मीडिया के द्वारा विदेशी देश ऐसा ही तो नहीं कर रहे? कहीं हम सब विचाराभिव्यक्ति के अतिउत्साह में स्वयं ही तो सभी सूचनाएँ, जानकारियाँ विदेश तो नहीं भेजे दे रहे? सोशल मीडिया पर मिली निर्बाध स्वतन्त्रता के पीछे कारण कुछ भी हो किन्तु हम सभी को ये विचार करना होगा कि सबकुछ पोस्ट कर देने, प्रचारित कर देने की लालसा में हम विदेशों के लिए जासूसी तो नहीं किए जा रहे? सजग होना, सजग रहना  आज के  दौर में अत्यावश्यक है. 

03 फ़रवरी 2017

केन्द्रीय बजट के बारे में

केन्द्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने 01 फरवरी को देश का केन्द्रीय बजट पेश करके वर्षों से चली आ रही परम्परा को तोड़ दिया. अभी तक केन्द्रीय बजट प्रतिवर्ष फरवरी माह के अंतिम कार्यदिवस को पेश किया जाता रहा है. इस बजट के साथ रेल बजट को भी पेश करके एक और परिपाटी को भी तोड़ा गया है. अभी तक रेल बजट को केन्द्रीय बजट से अलग पेश किया जाता रहा है. इससे पूर्व सन 2000 में तत्कालीन वित्तमंत्री यशवंत सिंह ने भी बजट से जुड़ी एक परम्परा को तोड़ा था. वर्ष 2000 तक केंद्रीय बजट को फरवरी महीने के अंतिम कार्य-दिवस को शाम पाँच बजे घोषित किया जाता था. ऐसा औपनिवेशिक काल से चला आ रहा था, जब ब्रिटिश संसद दोपहर में बजट पारित करती थी जिसके बाद भारत ने इसे शाम को पेश करना आरम्भ किया. यह परंपरा सर बेसिल ब्लैकैट ने 1924 में शुरु की थी. इसके पीछे का कारण रात भर जागकर वित्तीय लेखा-जोखा जोखा तैयार करने वाले अधिकारियों को आराम बताया जाता था. अटल बिहारी बाजपेयी की एनडीए सरकार (बीजेपी द्वारा नेतृत्व) के तत्कालीन वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने परम्परा को तोड़ते हुए 2001 के केंद्रीय बजट के समय को बदलते हुए पूर्वान्ह ग्यारह बजे घोषित किया. 


बजट शब्द की उत्पति लैटिन शब्द बुल्गा से हुई, इसका अर्थ है चमड़े का थैला. बुल्गा से फ्रांसीसी शब्द बोऊगेट की उत्पति हुई. जिसके बाद अंग्रजी शब्द बोगेट अस्तित्व में आया, इससे बजट शब्द बना. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 में भारत के केन्द्रीय बजट को वार्षिक वित्तीय विवरण के रूप में निर्दिष्ट किया गया है. यह भारतीय गणराज्य का वार्षिक बजट होता है, जिसे प्रत्येक वर्ष फरवरी के अंतिम कार्य-दिवस में भारत के वित्तमंत्री द्वारा संसद में पेश किया जाता रहा है. इसके पश्चात् भारत के वित्तीय वर्ष की शुरूआत अर्थात 1 अप्रैल से बजट को लागू करने से पहले इसे सदन द्वारा पारित करना आवश्यक होता है. भारत देश का पहला बजट 7 अप्रैल 1860 को ब्रिटिश सरकार के वित्त मंत्री जेम्स विल्सन ने पेश किया था. जबकि आज़ादी के ठीक पहले अंतरिम सरकार का बजट लियाकत अली खां ने पेश किया था. यह बजट 9 अक्टूबर 1946 से लेकर 14 अगस्त 1947 तक की अवधि के लिए था. स्वतंत्र भारत का प्रथम केन्द्रीय बजट 26 नवम्बर 1947 को आर.के. षणमुखम चेट्टी द्वारा प्रस्तुत किया गया था. इसमें 15 अगस्त 1947 से लेकर 31 मार्च 1948 के दौरान साढ़े सात महीनों को शामिल किया गया था. आर.के. षणमुखम चेट्टी ने ही अपने बजट में पहली बार अंतिरम शब्द का प्रयोग किया था. तब से लघु अवधि के बजट के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया जाने लगा. भारतीय गणतंत्र की स्थापना के बाद पहला बजट 28 फरवरी 1950 को जान मथाई ने पेश किया था. इस बजट में ही योजना आयोग की स्थापना का वर्णन किया था. 

बजट छपने के लिए भेजे जाने से पहले वित्त मंत्रालय मे हलवा खाने की रस्म निभाई जाती है. इस रस्म के बाद बजट पेश होने तक वित्त मंत्रालय के संबधित अधिकारी किसी के संपर्क में नहीं रहते हैं. यहाँ तक कि उनको अपने परिवार से दूर रहकर वित्त मंत्रालय में ही रुकना पड़ता है. 1958-59 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने बजट पेश किया उस समय वित्त मंत्रालय उनके पास था ऐसा करने वाले वे देश के पहले प्रधानमंत्री बने. मोरारजी देसाई ने अब तक सर्वाधिक दस बार बजट पेश किया है. इनमें आठ केन्द्रीय बजट तथा दो अंतरिम बजट हैं. अपने जन्मदिन पर बजट पेश वाले वह एकमात्र प्रधानमंत्री हैं. उनके इस्तीफा देने के बाद इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री के साथ-साथ वित्त मंत्रालय का पदभार भी संभाला. वित्त मंत्री के पद को हासिल करने वाली वे पहली महिला भी बनी. 


26 जनवरी 2014

भारतीय ध्वज की विकास-यात्रा और भारतीय ध्वज संहिता




भारतीय आन-बान-शान का प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज तीन रंगों से बना हुआ है इसी कारण इसे हम तिरंगा कह कर भी पुकारते हैं। ध्वज में सबसे ऊपर केसरिया रंग, बीच में सफ़ेद और सबसे नीचे गहरा हरा रंग समानुपातिक रूप में होता है। सफ़ेद पट्टी में बीचों-बीच गहरे नीले रंग का एक चक्र भी बना होता है, जिसको सारनाथ में स्थापित सिंह के शीर्षफलक के चक्र में दिखने वाले चक्र के रूप में परिभाषित किया गया है। इस चक्र में 24 तीलियाँ होती हैं। ध्‍वज को साधारण भाषा में झंडा भी कहा जाता है। झंडे की लम्‍बाई और चौड़ाई का अनुपात 3:2 होता है। राष्‍ट्रीय ध्‍वज को 22 जुलाई 1947 को भारत के संविधान द्वारा अपनाया गया था।
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राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के संभी रंगों का अपना विशेष महत्त्व है. केसरिया रंग वैराग्य का रंग है। आज़ादी के दीवानों ने इसको अपने ध्वज में सबसे ऊपर इसी सोच के कारण स्थान दिया कि आने वाले दिनों में देश के नेता स्वार्थ छोड़ कर देश के विकास में खुद को समर्पित कर दें। तिरंगे का सफ़ेद रंग प्रकाश और शांति के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया जाता है। हरे रंग को प्रकृति से सम्बंधित करके इसके माध्यम से संपन्नता को दर्शाया गया है। तिरंगे के केंद्र में स्थित चक्र गतिशीलता के साथ-साथ  अशोक चक्र धर्म के 24 नियमों की याद दिलाता है।
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पहला भारतीय ध्वज –   सन 1906 में पहली बार भारत का गैर आधिकारिक ध्‍वज फ़हराया गया। इसे सन 1904 में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा बनाया गया था। तत्पश्चात 7 अगस्त 1906 को बंगाल के विभाजन के विरोध में कलकत्ता में इसे कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया गया था। हमारा पहला ध्वज लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बना हुआ था। सबसे ऊपर की हरी पट्टी रखी गई थी जिसमें 8 आधे खिले हुए कमल के फूल थे। झंडे में सबसे नीचे लाल पट्टी में सूरज और चाँद बनाए गए थे। बीच की पीली पट्टी पर वन्दे मातरम् लिखा हुआ था।

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दूसरा भारतीय ध्वज-- दूसरा ध्वज भीकाजी कामा और उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा सन 1907 में फहराया गया था। कुछ लोगों मानना है कि ऐसा कार्य सन  1905 में हुआ था। बताया जाता है कि सुबह साढ़े आठ बजे इंडिया गेट पर लोगों की भीड़ ने  करतल ध्वनि के बीच यूनियन जैक को उतारकर इसी भारतीय राष्ट्रीय झंडे को फहराया था। इस दूसरे ध्वज में कुछ बदलाव भी किये गए, जिनमें सबसे ऊपर की हरी पट्टी का रंग हरे से केसरिया कर दिया गया और उसमें कमल के फूलों का स्थान सात तारों, जिन्हें सप्तऋषि के समकक्ष माना गया, ने ले लिया। सबसे नीचे की पट्टी का रंग भी लाल से परिवर्तित करके हरे में बदल दिया गया. शेष ध्वज पहले की तरह ही रहा। इस ध्‍वज को बर्लिन में हुए समाजवादी सम्‍मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
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तीसरा भारतीय ध्वज -- भारतीय राजनीतिक संघर्ष सन 1917 तक आते-आते एक निश्चित मोड़ लिया। एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने अपने आंदोलन के दौरान इसे फहराया था। इस ध्‍वज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियाँ एक के बाद बनी हुई थीं और सप्‍तऋषि आकृति में इस पर सात सितारे बने हुए थे। बांये हिस्से में ऊपरी किनारे पर यूनियन जैक और दूसरे दायें कोने में सफ़ेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।




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चौथा भारतीय ध्वज -- सन 1916 में एक ऐसे ध्वज की कल्पना की गई जो सभी भारतवासियों को एकसूत्र में बाँध सके। इस पहल को देखते हुए एक नेशनल फ़्लैग मिशन का गठन किया गया। सन 1921 में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान आंध्र प्रदेश के एक युवक ने एक झंडा बना कर महात्मा गांधी को दिया। इसमें दो रंगों को शामिल किया गया था। लाल और हरे रंग को दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्‍दू और मुस्लिम के प्रतिनिधित्‍व के रूप में प्रदर्शित किया गया था। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्‍व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्‍ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए। इसी के चलते ध्वज का यह चौथा रूप सामने आया।
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पाँचवाँ भारतीय ध्वज -- वर्ष 1931 को ध्‍वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष कहा जा सकता है। राष्ट्रीय ध्वज में रंग को लेकर तरह-तरह के वाद-विवाद चलते रहे। काफ़ी तर्क वितर्क के बाद भी जब सब एकमत नहीं हो पाए तो सन 1931 में अखिल भारतीय कांग्रेस के ध्वज को मूर्त रूप देने के लिए 7 सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई। तिरंगे ध्‍वज को हमारे राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्‍ताव पारित किया गया। इस ध्‍वज का स्‍वरूप वर्तमान ध्वज की तरह ही (तीन रंगों – केसरिया, सफ़ेद और हरा को शामिल किया गया) रखा गया और मध्‍य में गांधी जी के चलते हुए चरखे को दर्शाया गया था। यह स्‍पष्‍ट रूप से बताया गया था कि इसका कोई साम्‍प्रदायिक महत्‍व नहीं है। 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे मुक्‍त भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया। स्‍वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्‍व बना रहा।
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वर्तमान भारतीय ध्वज -- आज़ादी के परवानों ने इसी ध्वज के तले अनेक आंदोलन किए और 1947 में अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। आज़ादी की घोषणा से कुछ दिन पहले राष्ट्रीय ध्वज को नया रूप देने के लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई गई और तीन सप्ताह के भीतर ही 14 अगस्त को इस कमेटी ने अखिल भारतीय कांग्रेस के ध्वज को ही राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान्यता देने की सिफ़ारिश की। इसमें सिर्फ इतना परिवर्तन किया गया कि बीच की सफ़ेद पट्टी में चरखे के स्थान पर चक्र को प्रतिस्थापित किया गया। 15 अगस्त 1947 को यही तिरंगा हमारी आज़ादी और हमारे देश की आज़ादी का प्रतीक बन गया।
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तिरंगे का सम्मान : ध्वज के सम्मान की बात भी स्पष्ट कर दी गई कि ध्वज फहराने के समय किस आचरण संहिता का ध्यान रखा जाना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज कभी भूमि पर नहीं गिरना चाहिए और ना ही धरातल के संपर्क में आना चाहिए। सन 2005 के पहले तक इसे वर्दियों और परिधानों में उपयोग में नहीं लाया जा सकता था, लेकिन सन 2005 में फिर एक संशोधन के साथ भारतीय नागरिकों को इसका अधिकार दिया गया लेकिन इसमें ध्यान रखने वाली बात ये है ये किसी भी वस्त्र पर कमर के नीचे नहीं होना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज कभी अधोवस्त्र के रूप में नहीं पहना जा सकता है।
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भारत का राष्ट्रीय झंडा, भारत के लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिरूप है। यह हमारे राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। सभी के मार्गदर्शन और हित के लिए भारतीय ध्वज संहिता-2002 में सभी नियमों, रिवाजों, औपचारिकताओं और निर्देशों को एक साथ लाने का प्रयास किया गया है। ध्वज संहिता-भारत के स्थान पर भारतीय ध्वज संहिता-2002 को 26 जनवरी 2002 से लागू किया गया है।
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झंडा फहराने का सही तरीका
* जब भी झंडा फहराया जाए तो उसे सम्मानपूर्ण स्थान दिया जाए। उसे ऐसी जगह लगाया जाए, जहाँ से वह स्पष्ट रूप से दिखाई दे।

* सरकारी भवन पर झंडा रविवार और अन्य छुट्टियों के दिनों में भी सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाता है, विशेष अवसरों पर इसे रात को भी फहराया जा सकता है, जिसके अलग से प्रावधान किये गए हैं।

* झंडे को सदा स्फूर्ति से फहराया जाए और धीरे-धीरे आदर के साथ उतारा जाए। फहराते और उतारते समय बिगुल बजाया जाता है तो इस बात का ध्यान रखा जाए कि झंडे को बिगुल की आवाज के साथ ही फहराया और उतारा जाए।

* जब झंडा किसी भवन की खिड़की, बालकनी या अगले हिस्से से आड़ा या तिरछा फहराया जाए तो झंडे को बिगुल की आवाज के साथ ही फहराया और उतारा जाए।

* झंडे का प्रदर्शन सभा मंच पर किया जाता है तो उसे इस प्रकार फहराया जाएगा कि जब वक्ता का मुँह श्रोताओं की ओर हो तो झंडा उनके दाहिने ओर हो।

* झंडा किसी अधिकारी की गाड़ी पर लगाया जाए तो उसे सामने की ओर बीचोंबीच या कार के दाईं ओर लगाया जाए।

* फटा या मैला झंडा नहीं फहराया जाता है।

* झंडा केवल राष्ट्रीय शोक के अवसर पर ही आधा झुका रहता है।

* किसी दूसरे झंडे या पताका को राष्ट्रीय झंडे से ऊँचा या ऊपर नहीं लगाया जाएगा, न ही बराबर में रखा जाएगा।

* झंडे पर कुछ भी लिखा या छपा नहीं होना चाहिए।

* जब झंडा फट जाए या मैला हो जाए तो उसे एकांत में पूरा नष्ट किया जाए।
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आइये हम सब अपने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को सम्मान दें और देश की आज़ादी के लिए अपनी जान न्योछावर कर देने वाले शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि प्रदान करें। जय हिन्द....