आज
भले ही सारे काम अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार किये जाते हों मगर इसके निर्माण के 57
वर्ष पूर्व राजा विक्रमादित्य के काल में भारतीय वैज्ञानिकों ने भारतीय
कैलेंडर विकसित कर लिया था. इस भारतीय या कहें कि हिन्दू कैलेंडर का आरम्भ हिन्दू पंचांग
के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से माना जाता है. इसके अलावा बारह
महीनों का एक वर्ष और सात दिनों का एक सप्ताह रखने का प्रचलन भी विक्रम संवत से ही
शुरू हुआ था. इस कैलेण्डर में महीने का हिसाब सूर्य और चंद्रमा की गति पर आधारित है.
विक्रम कैलेंडर की इसी धारणा को बाद में यूनानियों के माध्यम से अरब और अंग्रेजों ने
अपनाया. इसी कैलेण्डर के आधार पर भारत के अन्य राज्यों ने भी अपने-अपने कैलेंडर का
निर्माण किया.
चैत्र
माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ होने वाले वर्ष को नव संवत्सर भी कहते हैं.
संवत्सर के पाँच प्रकार- सौर, चंद्र, नक्षत्र,
सावन और अधिमास हैं. विक्रम संवत में इन सभी का समावेश है. मेष,
वृषभ, मिथुन, कर्क आदि सौरवर्ष
के माह हैं. यह वर्ष भी 365 दिनों का होता है. इसमें वर्ष का
प्रारंभ सूर्य के मेष राशि में प्रवेश से माना जाता है. चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ आदि चंद्रवर्ष के माह हैं. चंद्र वर्ष
354 दिनों का होता है, जो चैत्र माह से
शुरू होता है. सौरमास 365 दिन का और चंद्रमास 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन
का अंतर आ जाता है. इन दस दिनों को चंद्रमास ही माना जाता है. समय के साथ ऐसे बढ़े हुए दिनों को मलमास या अधिमास
कहते हैं. चंद्र वर्ष में चंद्र की कलाओं में वृद्धि होती है तो यह बारह के स्थान
पर तेरह माह का हो जाता है. जब चंद्रमा शुक्ल प्रतिपदा के दिन से बढ़ना शुरू करता है
तभी से हिंदू नववर्ष की शुरुआत मानी गई है.
आप
सभी को नव संवत्सर की शुभकामनायें.
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