ऐतिहासिकता लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
ऐतिहासिकता लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

27 सितंबर 2021

अपनी ऐतिहासिक धरोहरों के प्रति संवेदित नहीं नागरिक

किसी भी समाज की ऐतिहासिक धरोहरों के द्वारा उस समाज के बारे में आसानी से जाना जा सकता है. बहुत सारे देश हैं जो आज भी अपनी हजारों साल पुरानी धरोहरों को सुरक्षित और संरक्षित रखे हुए हैं. बहुत बार पढ़ने में आता है कि फलां देश के किसी शहर के नागरिकों ने अपने किसी ऐतिहासिक महत्त्व के वृक्ष को कटने से बचाने के लिए आन्दोलन किया. कभी समाचार सुनाई देता है कि किसी देश के नागरिकों ने स्वेच्छा से अपनी ऐतिहासिक धरोहरों के साफ़-सफाई का जिम्मा ले लिया है. ऐसा समाचार पढ़ते-सुनते-देखते समय मन में एक सवाल कौंधता है कि क्या ऐसा हमारे देश के नागरिक नहीं कर सकते?


इस सवाल के सापेक्ष पहली बात यह कि यह सारे नागरिकों के सन्दर्भ में नहीं है. दूसरी बात कि इस सवाल के साथ ही आप स्वयं अपने आसपास देखिये और महसूस करिए कि क्या हमारे सभी नागरिक अपनी ऐतिहासिक धरोहरों, इमारतों के प्रति जिम्मेवारी का भाव लिए हैं? आइये, अब आगे बढ़ते हैं. हमारे देश में ऐतिहासिक महत्त्व की इमारतों, स्मारकों की कहीं कोई कमी नहीं. बहुत सारे किले, महल, मंदिर, स्मारक आदि हमारी ऐतिहासिकता की कहानी स्वयं कहते हैं. इन ऐतिहासिक महत्त्व की धरोहरों में से बहुतायत में ऐसी मिलेंगीं जहाँ पर किसी न किसी रूप में देश के नागरिकों ने अपनी नकारात्मक सक्रियता के निशान छोड़ दिए हैं. कहीं किसी आशिक का तीर घुसा हुआ दिल देखने को मिल जायेगा तो कहीं किसी दीवार पर किसी के प्रेम का नाम खुदा हुआ मिल जायेगा. कहीं किसी इमारत के कोने पर पीक की नक्काशी देखने को मिल जाएगी तो कहीं किसी ने रंगों से करामात दिखाई होगी. कहीं कुछ तोड़ा गया होगा तो कहीं से कुछ उखाड़ा गया होगा.


क्या हम नागरिकों में वाकई सामाजिक सोच समाप्त होती जा रही है? क्या हम नागरिकों में अपने इतिहास के प्रति गरिमा बोध मिटता जा रहा है? क्या वाकई हम नागरिक अपने इतिहास को कलंकित करने वाला समझने लगे हैं? क्या हमें अपनी ऐतिहासिक धरोहरों से प्रेम-स्नेह नहीं रह गया है? जो धरोहरें हैं उनमें से बहुतों के प्रति यदि सरकार संवेदित नहीं है तो इनके प्रति क्षेत्रीय नागरिक भी असंवेदित है. कहीं धन के लालच में इमारत को नुकसान पहुँचाया जा रहा है तो कहीं विद्वेष की भावना से धरोहर को क्षतिग्रस्त किया जा रहा है. ऐसी विषम स्थिति में यदि किसी व्यक्ति के अपने व्यक्तिगत प्रयासों से कोई धरोहर सुरक्षित, सुसज्जित नजर आती है तो दिल वाकई प्रसन्न हो उठता है.


जनपद जालौन के रामपुरा में वहाँ के कछवाह राजाओं की धरोहर, उनका किला और उसका बहुतायत साजो-सामान उनके वारिस कुँवर केशवेन्द्र सिंह द्वारा आज भी सुरक्षित, संरक्षित, सुसज्जित करके रखा गया है. अभी हाल ही में किले को देखने का, वहाँ भ्रमण करने का अवसर मिला. जल्द ही इस बारे में आपके साथ अपना अनुभव साझा किया जायेगा. 


कुँवर केशवेन्द्र सिंह 


.

15 सितंबर 2018

झाँसी रानी का विवाह-स्थल


बुन्देलखण्ड क्षेत्र के कण-कण में ऐतिहासिकता, सांस्कृतिकता, पौराणिकता, दिव्यता, भव्यता समाहित है. झाँसी के गणेश बाजार स्थित महाराष्ट्र गणेश मंदिर में भी इनका समावेश देखने को मिलता है. भगवान गणेश को समर्पित इस मंदिर का अपना ही ऐतिहासिक महत्त्व है. इसी मंदिर में सन 1842 में झाँसी के राजा गंगाधर राव का विवाह रानी लक्ष्मीबाई के साथ संपन्न हुआ था. उस समय रानी लक्ष्मीबाई को मणिकर्णिका के नाम से जाना जाता था. विवाह पश्चात् औपचारिक रूप से उन्हें लक्ष्मीबाई नाम दिया गया. यह मंदिर झाँसी किले के प्रवेश द्वार पर स्थित है. इस कारण इसे किले का, निवासियों का, शहर का रक्षक माना जाता है.


इस मंदिर की वास्तुकला के आधार पर लगाया जाता है कि इसका निर्माण सन 1764 के आसपास हुआ होगा. सन 1857 की क्रांति में रानी लक्ष्मीबाई से बदला लेने के लिए अंग्रेजों ने इस मंदिर को भी ध्वस्त करने का प्रयास किया किन्तु वे इसमें पूरी तरह से सफल न हो सके. इसके बाद भी उन्होंने मंदिर के एक बहुत बड़े भाग को नष्ट कर दिया था. ऐसा बताया जाता है कि कतिपय आर्थिक कारणों से मंदिर को गिरवी रखना पड़ा था. बाद में तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर गोविन्द आत्माराव ढवले के प्रयासों से सन 1917 में इस मंदिर को मुक्त करवाया गया. उसी के बाद इसकी देखरेख के लिए महाराष्ट्र गणेश मंदिर समिति की स्थापना 22 नवम्बर 1917 को की गई. सार्वजनिक प्रयासों और सहायता से मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया और इसकी अनाधिकृत रूप से कब्जाई संपत्ति को वापस लिए गया. दस साल बाद 05 अगस्त 1927 को महाराष्ट्र गणेश समिति को नियमानुसार पंजीकृत करवाया गया. इस सम्बन्ध में एक शिलालेख वहाँ स्थित है.


इस मंदिर के प्रांगण में भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा के साथ-साथ रिद्धि एवं सिद्धि की भी प्रतिमाएँ स्थापित हैं. मराठी समुदाय के अलावा आमजनमानस में भी इस मंदिर के प्रति आस्था है. राजा और रानी दोनों के मराठी होने के कारण इस मंदिर को महाराष्ट्र गणेश मंदिर के नाम से जाना गया, आज भी यह मंदिर इसी नाम से आम नागरिकों में जाना जाता है.


मंदिर का अंदरूनी हिस्सा 



रिद्धि, सिद्धि संग विराजे श्रीगणेश 

मंदिर प्रांगण 

प्रवेश द्वार 
एक प्रवेश द्वार ये भी