25 मार्च 2023

भावनात्मकता से दूर होता समाज

आये दिन खबरें आ रही हैं युवाओं की मौत की. बहुत बड़ी संख्या में मौत का शिकार बन रहे युवाओं में बहुत कम ऐसे हैं जो सामान्य जीवन व्यतीत करते हुए मौत की नींद सो गए. समाचारों, जानकारियों के अनुसार बहुत बड़ी संख्या में अवसाद के कारण, किसी बीमारी के कारण, हार्ट अटैक के कारण, आत्महत्या करके युवा मौत का शिकार बन रहे हैं. इन युवाओं की उम्र बहुत अधिक नहीं है. इनमें से बहुत तो किशोरावस्था के होंगे. बहरहाल, इन युवाओं की उम्र कुछ भी रही हो, वह चिंता का विषय हो उससे बड़ी चिंता का विषय उनका असमय चले जाना होना चाहिए. किसी भी युवा की मौत पर कुछ दिन का मातम मना लिया जाता है, उसके कामों के कारण उसे याद कर लिया जाता है और फिर सभी अपने-अपने काम पर लग जाते हैं. इस तरफ ध्यान देने की कोई आवश्यकता महसूस नहीं की जा रही कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में युवाओं की मौत क्यों हो रही है? सभी युवा आत्महत्या नहीं कर रहे हैं मगर बहुत बड़ी संख्या ऐसे युवाओं की है हो हार्ट अटैक का शिकार बने हैं. ये भी सोचने का विषय होना चाहिए कि आखिर ऐसी किस तरह की जीवन शैली समाज में चलन में आती जा रही है कि तीस से चालीस वर्ष तक के युवा भी हृदयाघात का शिकार होने लगे हैं?




वैसे यदि हम सकारात्मकता के साथ अपने आसपास निगाह डालें, अपनी ही दिनचर्या पर विचार करें, अपने संपर्क और लोगों से मेल-मुलाक़ात पर ध्यान दें तो हमें खुद एहसास होगा कि किस तरह से हम सभी लगातार एकाकी जीवन जीने की तरफ बढ़ रहे हैं. दिन-दिन भर सोशल मीडिया पर आभासी संपर्क भले बना रहे मगर व्यक्तिगत रूप से हम लोग आपस में बहुत कम मिल रहे हैं. बातचीत तो लगभग बंद सी ही है. अब बातचीत का सहारा सोशल मीडिया के तमाम मंच बन गए हैं. सुबह-शाम के सन्देश पर उसी के अनुसार स्माइली भेजकर सामने वाले को जवाब भी दे दिया जाता है. जिस औपचारिकता से सन्देश भेजा गया होता है, उसी औपचारिकता से भेजी गई स्माइली को भी स्वीकार कर लिया जाता है. एक पल रुक कर यह भी विचार नहीं किया जाता है कि कम से कम एक बार सामने वाले को फोन लगाकर बात कर ली जाये, उसके हालचाल ले लिए जाएँ.


यह एक सार्वभौम सत्य है कि किसी भी व्यक्ति के मन का, उसकी मानसिकता का, हावभाव का पता मोबाइल पर भेजे जाने वाले, पाए जाने वाले संदेशों से, स्माइली से कदापि नहीं हो सकता है. सन्देश, फोटो, वीडियो या स्माइली आदि किसी भी तरह से व्यक्ति के तात्कालिक मनोभावों को नहीं बता सकते. इसका अंदाजा तो बस आपस में बातचीत के द्वारा हो सकता है. बात करने के लहजे से, सामने वाले के बोलने के अंदाज से समझ में आसानी से आता है कि वह खुश है या दुखी है. बातचीत को हम सभी लोग जैसे समाप्त ही कर चुके हैं. मोबाइल के युग में, इंटरनेट के युग में आज एक ही घर में आपस में बातचीत न के बराबर हो रही है. ऐसे में जाहिर है कोई युवा, किशोर यदि किसी भी तरह की समस्या में घिरा है तो इसकी जानकारी नहीं हो पाती है. वर्तमान दौर में प्रत्येक व्यक्ति को अनेक तरह की समस्याओं से सामना करना पड़ता है. किसी को पढ़ाई की समस्या है तो किसी के सामने कैरियर की दिक्कत है. कोई पारिवारिक समस्याओं से दो-चार हो रहा है तो कोई आर्थिक रूप से तंगहाली से गुजर रहा है. ऐसे में भावनात्मक सहारा, संबल न मिल पाने के कारण युवा, किशोर या तो अवसाद में ग्रसित हो जाते हैं या फिर वे हताशा में कोई गलत कदम उठा लेते हैं.


जीवन सिर्फ जिन्दा रहने के लिए नहीं है वरन खुलकर आनंद लेने के लिए है. हताशा, निराशा, असफलता के दौर तो सबके साथ आते जाते हैं मगर यदि उसको भावनात्मक संबल मिल जाये तो वह इन सबसे सहजता से उबर आता है. अपने युवाओं को, किशोरों को असमय मौत के मुँह में जाने से रोकने के लिए आइये हम सब फिर से उसी दुनिया को बनाने का प्रयास करें जहाँ मोबाइल, इंटरनेट ने हमारे रिश्तों को, संबंधों को, भावनात्मकता को नहीं खाया था. 







 

22 मार्च 2023

पंजाब में आतंकी आग लगाने का मोहरा है अमृतपाल

किसी समय पंजाब में खालिस्तान के नाम पर जबरदस्त खून-खराबा मचा हुआ था. जिसे पंजाब पुलिस ने सेना और केंद्रीय सुरक्षा बलों की मदद से पूरी तरह से खत्म कर दिया था. सुधार भरे दौर में खालिस्तान के बचे-खुचे समर्थकों ने जाकर पाकिस्तान में शरण ली थी. पाकिस्तान द्वारा उनको लगातार पालने-पोसने का काम चलता रहा. पाकिस्तान का ऐसा करने के पीछे का उद्देश्य भारत विरोधी गतिविधियों को संचालित करना है. इसके लिए कभी उसके द्वारा जम्मू-कश्मीर में गड़बड़ करवाई जाती है, अब वही काम वह पंजाब में करवा रहा है.


पिछले कुछ समय से पंजाब में खालिस्तान के नाम पर उत्पात फिर से दिखने लगा है. इसी उत्पात के बीच एक नाम बहुत तेजी से उभर कर आया, अमृतपाल सिंह. इसके उभरने के पीछे इसका न केवल खालिस्तानी अलगाववादी होना है बल्कि स्वयं को जरनैल सिंह भिंडरावाले का अनुयायी होने का दावा करना है और उसके समर्थकों द्वारा उसे ‘भिंडरावाले 2.0 कहना भी है. अमृतपाल द्वारा अमृतसर के अजनाला पर आक्रमण करना, पुलिस को मजबूर करके अपने साथी को थाने से छुड़वा लेना, हथियार लेकर स्वर्ण मंदिर जाना आदि घटनाएँ ऐसी रहीं जिनके द्वारा अमृतपाल एकदम से सुर्ख़ियों में आ गया. अमृतपाल की ऐसी हरकतों के अलावा ऐसी बहुत सी गतिविधियाँ हैं जो देश-विरोधी हैं. उसके द्वारा आईएसआई द्वारा पाकिस्तान से मँगाए गए हथियारों के वितरण में मदद करना, अवैध रूप से चलाए जा रहे नशामुक्ति केन्द्रों और अमृतसर के पड़ोस के जल्लुपुर खेड़ा में एक गुरुद्वारे में हथियार जमा करना, हथियारों के खुले प्रदर्शन के सम्बन्ध में सरकार के आदेश की अवहेलना करना आई ऐसी गतिविधियाँ हैं जो देश के लिए खतरा हैं. कोई बड़ी वारदात करने के पहले कट्टरपंथी संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ का प्रमुख और खालिस्तानी समर्थक अमृतपाल सिंह फरार हो गया. पंजाब पुलिस लगातार उसकी गिरफ्तारी के लिए ऑपरेशन चला रही है. उस पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून भी लगाया है. 




केन्द्रीय जाँच एजेंसियों ने पंजाब पुलिस को लगातार चेतावनी भी दी थी कि अमृतपाल सिंह का पंजाब में आना बड़ा खतरा बन सकता है. खुफिया एजेंसियों की जाँच में नया खुलासा हुआ है कि अमृतपाल को पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई ने जॉर्जिया में हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी थी. वह पंजाब आने से पहले दुबई से जॉर्जिया गया था. प्राइवेट आर्मी के रूप में ‘आनंदपुर खालसा फोर्स’ बनाने की तैयारी भी इसी ट्रेनिंग का हिस्सा थी. उसे पंजाब में गड़बड़ी कर देश का माहौल खराब करने की पूरी ट्रेनिंग जॉर्जिया में ही दी गई.


मात्र 19 साल की उम्र में 2012 में काम करने के लिए पंजाब से दुबई गया युवक अमृतपाल किसान आन्दोलन के दौरान दीप सिद्धू के साथ दिल्ली बॉर्डर पर आया था. यहीं से उसने दोबारा केश रखकर दस्तारबंदी की और भिंडरावाले के पैतृक गाँव में दस्तारबंदी का बड़ा कार्यक्रम किया. किसान आंदोलन में 26 जनवरी 2021 को लाल किले पर हुई हिंसा में दीप सिद्धू का नाम सामने आया था. उस वक्त लाल किले पर खालसा पंथ का झंडा ‘निशान साहिब’ फहराया गया था. पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले सितम्बर 2021 को दीप सिद्धू ने ‘वारिस पंजाब दे’ नामक संगठन की स्थापना की. राजनैतिक एजेंडा ना बताते हुए दीप सिद्धू ने ‘वारिस पंजाब दे’ का उद्देश्य पंजाब के हक की लड़ाई को आगे बढ़ाना बताया था. हालांकि विधानसभा चुनाव में दीप सिद्धू ने सिमरनजीत सिंह मान की खालिस्तान समर्थक पार्टी का समर्थन किया था. पंजाब चुनाव से ठीक पहले एक कार दुर्घटना में सिद्धू की मौत होने के बाद अमृतपाल ‘वारिस पंजाब दे’ का प्रमुख बन गया. इसके बाद वह पंजाब में धार्मिक यात्रा चलाने के साथ-साथ युवाओं को अमृत छकाने लगा और खालिस्तान के नाम पर ग्रामीण युवाओं को जोड़ने लगा. पाकिस्तान से मिलती सहायता से अमृतपाल ने बेरोजगारी, मँहगाई और रूस-यूक्रेन युद्ध से उपजे असमंजस के हालातों से जूझते युवाओं का फायदा उठा कर उनके मन में खालिस्तान राज्य की माँग को जगा दिया.


ऐसा माना जा रहा है कि अमृतपाल सिंह को आईएसआई द्वारा सहायता दी जा रही है, ताकि पंजाब में एक नया भिंडरांवाले को फिर से खड़ा किया जाए, पंजाब को फिर से आतंकवाद की आग में झुलसाया जाये. आईएसआई ने भारत-विरोध, देश-विभाजन हेतु सदैव किसी न किसी प्यादे को भरपूर मदद की है. भिंडरावाले, बुरहानबानी से लेकर अमृतपाल तक उसकी यही कहानी है. अमृतपाल धार्मिक शिक्षाओं को देने के नाम पर पंजाब के युवाओं को खालिस्तान के लिए उकसाने का काम कर रहा था. अमृतपाल सिंह यूके में रहने वाले खालिस्तानी आतंकी अवतार सिंह खंडा का करीबी है. ऐसा भी कहा जाता है कि सरकार की ओर से प्रतिबंधित बब्बर खालसा इंटरनेशनल के प्रमुख परमजीत सिंह पम्मा, इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन के प्रमुख लखबीर सिंह रोड़े के साथ भी उसके नजदीकी सम्बन्ध हैं.

  

दरअसल जम्मू-कश्मीर से धारा 370 समाप्त का समाप्त होना पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई की हार मानी जा रही है. अपनी खीझ को और भारत को तोड़ने की मानसिकता से उसके द्वारा एकबार फिर खालिस्तान की माँग को हवा दी जा रही है. यह भी देखने में आया है कि जो खालिस्तान समर्थक इंग्लैंड, कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया सहित अन्य देशों में हैं, उनके द्वारा भारतीय दूतावास के सामने समय-समय पर उग्र प्रदर्शन किया जाता है.


केन्द्र सरकार और पंजाब सरकार को अमृतपाल के मामले में किसी भी तरह से ढील देने की आवश्यकता नहीं है. खालिस्तान समर्थक एक व्यक्ति द्वारा गृहमंत्री तक को धमकी देने के बाद भी उस पर कोई कड़ी कार्यवाही नहीं होना, पंजाब में शासन-प्रशासन के लिए मुसीबत बन चुके एक व्यक्ति को वहाँ के मुख्यमंत्री द्वारा नजरंदाज किया जाना समझ से परे है. अमृतपाल को महज एक व्यक्ति समझकर गंभीरता न दिखाना सुखद संकेत नहीं है. एक तरफ उसके समर्थकों द्वारा उसमें भिंडरावाले का रूप देखा जाना, दूसरी तरफ पंजाब में बहुत सारे आपराधिक गैंग का वर्चस्व होना, ड्रग्स की समस्या होना, पंजाब सरकार द्वारा इन आतंकियों पर कार्रवाई करने में ढुलमुल नीति का अपनाया जाना राज्य को आतंकवाद की तरफ ही ले जाता है. हालाँकि अमृतपाल फरार है, लेकिन उसके संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ से जुड़े सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है. पुलिस ने उसके समर्थकों से अनेक अत्याधुनिक हथियार बरामद किये हैं, जो पंजाब में, देश में आतंकी उत्पात मचाने के उसके मंसूबों की गवाही देते हैं. देखा जाये तो राज्य में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति सामान्य नहीं है. इससे पहले कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाए, पूरे पंजाब में आग लग जाए, खालिस्तान समर्थक हथियार लेकर आतंक मचाने लगें उससे पहले समस्या से निपटना होगा.

 






 

19 मार्च 2023

राजनीति में दागियों को नकारिये

राजनीति गन्दी हैसंसद डाकुओं, लुटेरों से भर गई हैसंविधान में हमारा विश्वास नहीं जैसे जुमले आये दिन सुनने को मिल जाते हैं. कविता का मंच हो, साहित्य-विमर्श हो या धारावाहिक-फ़िल्मी कार्यक्रम हो सभी में राजनीति को बेकार बताया जाता है. आज राजनीति को गाली देना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता माना जाता हैखुद को जागरूक बुद्धिजीवी समझना होता है. सांसदों, मंत्रियों, विधायकों सहित तमाम राजनैतिक व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा देना कहीं न कहीं भविष्य के लिए संकटसूचक है. राजनीति के प्रति इस तरह की बनती अवधारणा नई पीढ़ी के मन-मष्तिष्क को नकारात्मक रूप में प्रभावित कर रही है. उनको लगने लगा है कि देश की वर्तमान दशा की जिम्मेवार एकमात्र रूप से राजनीति है. आने वाली पीढ़ी, जिसके कन्धों पर देश का राजनैतिक अस्तित्व टिका हुआ है, उसको ये समझाया ही नहीं जा रहा है कि कोई भी लोकतान्त्रिक प्रणाली बिना राजनीति के आगे नहीं बढ़ सकती है.

 

एक पल को इस बात पर विचार किया जाये कि यदि एक नियत समय बाद निर्वाचन प्रणाली द्वारा निर्वाचित करने का अधिकार जनता से छीन लिया जाये तो क्या स्थिति बनेगी? सोचकर ही एक तरह का भय पूरे शरीर में तैर जाता है. ये तो भला हो निर्वाचन प्रणाली का कि जिसके माध्यम से एक निश्चित समयावधि पश्चात् जनता अपने प्रतिनिधि का निर्वाचन करके भ्रष्ट प्रतिनिधि को हटा सकती है, उसके स्थान पर किसी दूसरे प्रतिनिधि को निर्वाचित कर सकती है. इसी के साथ इस बात पर भी विचार किया जाये कि वर्तमान में आम जनमानस में जिस तरह से राजनीति के प्रति नफरत का, नकारात्मकता का भाव पैदा किया जा रहा है; देश की किसी भी समस्या के लिए सिर्फ और सिर्फ राजनीति को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है, उससे विधायिका को कमजोर किया जा रहा है या सशक्त बनाया जा रहा है?

 



इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि वर्तमान में जनप्रतिनिधि अपने दायित्वों से मुकरते जा रहे हैं. राजनीति में पदार्पण करने वाला अत्यंत अल्प समय में ही बलशाली होकर सामने आ जाता है. कई-कई अपराधों में लिप्त लोग भी माननीय की श्रेणी में शामिल होकर जनता के समक्ष रोब झाड़ते दिखाई देते हैं. इसके बाद भी सुखद पहलू ये है कि इन लोगों को नकारने का एक अधिकार अभी भी जनता के पास है. यहाँ समझना होगा कि निर्वाचन एक नियत समय पर होना ही है. ऐसे में स्पष्ट है कि जो भी निर्वाचन के लिए सामने आएगा, उसमें से ही किसी एक को निर्वाचित किया जायेगा. आने वाली पीढ़ी के सामने राजनीति के सकारात्मक पक्षों को रखते हुए बताना होगा कि ख़राब राजनीति नहीं है बल्कि अच्छे लोगों के राजनीति से दूर होने के कारण उसमें कतिपय बुरे लोग शामिल हो गए हैं.

 

राजनीति की वर्तमान व्यवस्था को दोष देने के पूर्व यदि हम अपने क्रियाकलापोंअपनी जागरूकता पर निगाह डालें तो हम ही स्वयं में सबसे बड़े दोषी नजर आयेंगे. हमारे देश की संसद और तमाम विधानसभाओं में एक निश्चित समयान्तराल के बाद चुनाव होता है. चुनाव का निर्धारित समय किसी लिहाज से टाला नहीं जा सकता है और सदन की निर्धारित सीटों को अपने निश्चित समय पर भरा ही जाना है. ऐसे में यदि अच्छे लोग उन्हें भरने को आगे नहीं आयेंगे तो जो भी सामने आयेगा वही आने वाले निर्धारित समय के लिए सदन का निर्वाचित सदस्य होगा. ऐसी स्थिति में दोष हमारा ही है कि हमने स्वयं अपने को अच्छा माना भी है और राजनीति से पीछे खींचा भी है. 

 

इसके साथ ही हम सब अपने पारिवारिक क्रियाकलापों पर विचार करें और बतायें कि जिनका सीधे तौर पर राजनीतिक क्षेत्र से सम्बन्ध नहीं है क्या उन्होंने अपने बेटे-बेटी को राजनीति में कैरियर बनाने को प्रोत्साहित किया? अपने बच्चों को राजनीति के क्षेत्र में कभी आदर्श रहे लोगों के बारे में जानकारी दी? क्या कभी अपने बच्चों के मन में राजनीति के अच्छे लोगों के प्रति सकारात्मक बीज बोने का काम किया? नहीं न, असल में हमारे देश की बिडम्बना है कि एक क्लर्कएक चपरासीएक मजदूर अपनी संतान को आईएएस बनाने के सपने देखता है जबकि उसका दूर-दूर तक आईएएस से कोई सम्बन्ध नहीं होता है किन्तु अच्छे-अच्छे बुद्धिजीवियों कोजिनका देश के विकास के प्रति कोई दायित्व हैउन्हें भी अपने बच्चों को राजनीति से दूर करते हुए देखा है. ऐसे में हम गाली किसे और क्यों दे रहे हैं?

 

हमारा प्रयास हो कि हम अपने बच्चों में राजनीति के प्रति जागरूकता पैदा करें. उन्हें समझायें कि इस क्षेत्र को भी कैरियर के रूप में अपनाया जा सकता है. आज की पीढ़ी को समझाने की आवश्यकता है कि सिर्फ मल्टीनेशनल कम्पनियों के लुभावने पैकेज को प्राप्त कर लेना ही शिक्षा का उद्देश्य नहीं होना चाहिएराजनैतिक क्षेत्र में भी शिक्षा का लाभ लिया जा सकता है. यदि हम आने वाले समय में देशहित को ध्यान में रखकर युवाओं को सक्रिय राजनीति में उतार सके तो यकीन मानिये कि आपराधिक तत्वों को जेलों में जगह मिलेगी और देश के समस्त सदन सकारात्मकसक्रियतापूर्णउत्साहीजागरूककर्मठचिन्तशील राजनेताओं से सुशोभित दिखेंगे.

 

इन बिन्दुओं के आलोक में न केवल जनता को बल्कि समस्त राजनैतिक दलों को एकजुट होने की आवश्यकता है. देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था कि और मजबूत करने के लिए आवश्यक है कि सभी अंग समवेत रूप में कार्य करें. राजनीति की गंदगी को दूर करने का प्रयत्न करें न कि भावी पीढ़ी के मन में राजनीति के प्रति नकारात्मक भाव उत्पन्न करें. हम सभी को इस बात को बहुत भली-भांति गाँठ बांधनी होगी कि यदि आज हम खुले मंच से, सार्वजनिक रूप से मंत्रियों, सांसदों, विधायकों आदि को, राजनीति को गरियाने का काम कर लेते हैं तो इसके पीछे हमारी लोकतान्त्रिक शक्ति ही है. राजनीतिज्ञों के भीतर निश्चित समयावधि के बाद जनता के मध्य जाने का डर होता है. सोच कर देखिये कि जिस तरह से हम सब राजनीति को, राजनीतिज्ञों को गरियाने का काम करते हैं यदि कल को जिम्मेवार युवा पीढ़ी इस दिशा में आगे न बढ़ी, देश की राजनीति को संभालने के लिए आगे न आई तो हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहाँ होगी? हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था कहाँ होगी? राजनीति को नहीं उसमें चले आये दागी लोगों को गरियाने का, उनको बाहर निकालने का काम किया जाये.

 

 





 

16 मार्च 2023

पिताजी के साथ स्मृति यात्रा

कुछ तारीखें ऐसी होती हैं जिनको लाख कोशिशों के बाद भी भुलाना संभव नहीं होता है. वे तारीखें अपने आप सम्बंधित घटनाओं को किसी चलचित्र की तरह आँखों के सामने रख देती हैं. हमारे अपने जीवन में ऐसी कोई एक-दो नहीं बल्कि बहुत सारी तारीखें हैं, जिनको चाह कर भुलाया नहीं जा सकता और यदि भूलने की कोशिश भी करते हैं तो उनको भूल नहीं पाते हैं. ऐसी ही अनेक तारीखों की तरह आज, 16 मार्च की तारीख है. आज के दिन हमारे सिर से पिताजी का साया हमेशा के लिए हट गया था. सामान्य परम्परा में यह मन को संतुष्टि देने वाली बात होती है कि पिताजी भले ही शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, पर वे आत्मिक रूप में हमारे साथ हैं. यह सोच, यह मानसिकता खुद को कमजोर होने से बचाती है.


बहरहाल, पिताजी का जाना हमारे लिए गहरी चोट जैसा था. खुद को नवजीवन की राह पर उतारे अभी महज एक वर्ष ही बीता था, अभी खुद ही जिम्मेवार होने जैसा कोई एहसास अपने में जगा नहीं पाए थे कि बहुत बड़ी जिम्मेवारी हमारे कंधों पर आ गई थी. विगत 18 सालों में कोई दिन ऐसा नहीं बीता कि पिताजी की कमी को महसूस न किया हो, इसके साथ ही किसी न किसी रूप में उनको अपने साथ बने रहने का भाव भी बनाये रखा है. उनके न होने के भाव ने जहाँ बहुत बार भावनात्मक रूप से कमजोर किया तो उनके साथ रहने के भाव ने आत्मविश्वास बनाये रखा.


बहुत कुछ सोचा था पिताजी के बारे में लिखने को मगर आँखों के धुँधलेपन ने ऐसा करने नहीं दिया. बैठे-बैठे तमाम एल्बम, अनेक फोटो देखकर बीते दिनों को याद कर लिया गया. अब फोटो के रूप में बस यही यादें शेष हैं, बस यही यादें ही साथ हैं. 




























 

12 मार्च 2023

संस्कारहीनता की तरफ बढ़ती पीढ़ी

तकनीकी विस्तार दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है. इंटरनेट ने घर-घर पर कब्ज़ा करने के साथ-साथ लगभग प्रत्येक व्यक्ति के मन-मष्तिष्क पर कब्ज़ा कर लिया है. दैनिक जीवन के छोटे-छोटे से काम के साथ-साथ बड़े-बड़े काम भी इंटरनेट के माध्यम से निपटाए जाने लगे हैं. शिक्षा हो या फिर व्यापार, घर की खरीददारी हो या फिर कार्यालय का कोई काम सभी में अब इंटरनेट की भूमिका प्रमुख हो गई है. ऐसा लगता है जैसे बिना इंटरनेट के एक पल भी बिताना कठिन है. अब न केवल शैक्षिक, व्यापारिक, सामाजिक, राजनैतिक क्षेत्रों में इंटरनेट ने जबरदस्त हस्तक्षेप किया है बल्कि उसने मनोरंजन के नाम पर घर के भीतर तक सेंध लगा ली है. बच्चों के कार्यक्रम हों या फिर बड़ों के अपने धारावाहिक, सभी में इंटरनेट के माध्यम से दिखाए जाते कार्यक्रमों ने घर के दरवाजे से प्रवेश करते हुए लोगों के बेडरूम में, स्टडी रूम में घुसपैठ कर ली है. 


मनोरंजन के नाम पर बीते कुछ वर्षों में जिस तरह से ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म ने अपना अशालीन रंग दिखलाया है उसका सर्वाधिक नकारात्मक असर बच्चों पर, किशोरों पर देखने को मिल रहा है. तकनीकी भरे दौर में हर हाथ में स्मार्ट फोन और इंटरनेट के होने के कारण समूचा विश्व सबकी मुठ्ठी में समाहित है. मुठ्ठी में समाये इस विश्व में अब कुछ भी गोपन नहीं रह गया है. इसी अगोपन ने ओटीटी के बहुसंख्यक कार्यक्रमों, वेबसीरीज की अश्लीलता को भी सार्वजनिक कर दिया है. इन वेबसीरीज के पल-पल बदलते दृश्यों में, बात-बात पर गालियों भरे संवादों के आने ने बच्चों, किशोरों के दिल-दिमाग में गालियों के प्रति एक अजब सा आकर्षण पैदा कर दिया है. ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म पर बनने वाले कार्यक्रम हों या फिर फ़िल्में, सभी में वास्तविकता दिखाने के नाम पर गालियों को जैसे ठूँसा जाने लगा है. इसके साथ-साथ सोशल मीडिया पर बने अनेकानेक चैनलों पर भी सार्वजनिक रूप से गालियों का दिया जाना होता है, अश्लील भाव-भंगिमा, शब्दों के साथ प्रस्तुतियाँ दी जा रही हैं. इनके इस तरह से सार्वजनिक होते रहने का दुष्परिणाम यह निकल रहा है कि गालियों को लेकर, अश्लील बातचीत को लेकर समाज में जिस तरह की शर्म, लिहाज बना हुआ था, वह लगभग समाप्त हो गया है. कम उम्र के युवाओं में बात-बात पर गालियाँ दिया जाना आम हो गया है. बच्चों में, किशोरों में अपने हमउम्र दोस्तों के साथ बातचीत में गालियों का प्रयोग करने के पीछे मानसिकता उनके साथ वैमनष्यता करने जैसी नहीं होती है. जरा-जरा सी बात पर अशालीन शब्दों का प्रयोग करने के पीछे उनकी मंशा सामने वाले को अपमानित करने की नहीं होती है. वे ऐसा महज उस आकर्षण के वशीभूत करते हैं, जिसे उन्होंने विभिन्न कार्यक्रमों में, सोशल मीडिया के मंचों पर देखा होता है.  




समाज में एक सामान्य सी धारणा बनी हुई है कि एक बच्चा आज्ञाकारी होगा. वह बड़ों का आदर-सम्मान करने वाला होगा. युवावस्था आने तक वह अपने भीतर ऐसे गुणों को धारण कर चुका होगा जो समाज, परिवार के हित में होंगे. बहुतायत में ऐसा करने वाले बच्चे मिलते भी हैं. किशोरावस्था का दौर अत्यंत ही संवेदित और बेहद महत्वपूर्ण होता है. किसी भी बच्चे का व्यक्तित्व विकास इसी दौर में होता है. इसी कारण से इस दौर में बच्चों का गालियों की दिशा में जाना, अश्लील शब्दावली की तरफ भटकना चिंतनीय है. बहुतेरे किशोर इन्हीं सबके चलते अनैतिक संबंधों के बनाने की हद तक चले जाते हैं. ऐसे में किशोर उम्र में उनकी तरफ विशेष ध्यान देना आवश्यक है.


ऐसे में सवाल यही उठता है कि बच्चों में, किशोरों में इस तरह के अशालीन व्यवहार को करने के पीछे उत्प्रेरक बने इन कार्यक्रमों से बचने का क्या रास्ता है? यह बात वर्तमान दौर में पूरी तरह से सही है कि वैश्विक खुलेपन के दौर में अब किसी विषय को, किसी जानकारी को परदे में रख पाना संभव नहीं रह गया है. तकनीक के बहाव भरे इस दौर में इन बच्चों की ऊर्जा को, उनके आकर्षण को उचित दिशा में मोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिए. यह विचार करना अनिवार्य होना चाहिए कि जिस तरह के कार्यक्रम इस आयुवर्ग के बच्चों को उकसा रहे हैं, उनसे बच्चों को दूर कैसे रखा जाये. इस बिन्दु पर आकर स्वयं अभिभावकों को विचार करने की आवश्यकता है कि कहीं उनके द्वारा तो इन बच्चों के लालनपालन में कोई कमी तो नहीं रह जा रही है?


वर्तमान में जिस तेजी से नगरीकरण तथा औद्योगिकरण ने हर व्यक्ति को अपने चपेट में लिया है, उसने सभी को धन कमाने की अंधी दौर में धकेल दिया है. इससे भी परिवार अपने ही बच्चों पर नियंत्रण रखने में तथा उनको संस्कारित करने में लगभग असफल हुए हैं. समयाभाव में अपने ही बच्चों को उनकी वैयक्तिक स्वंतत्रता के नाम पर बच्चों को, किशोरों को समय से पूर्व बड़ा हो जाने दिया है. इसने बच्चों में नैतिक मूल्यों का क्षरण किया है.


इस बात को परिवारों को, अभिभावकों को समझना होगा कि बच्चे ही देश का भविष्य हैं. उनका संस्कारवान होना, शालीन होना, सभ्य होना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि वे इस समाज की, इस देश की धरोहर हैं. किसी भी समाज और देश का भविष्य इन्हीं के कंधों पर अपनी विकासयात्रा को पूरा करता है. ऐसी स्थिति में न केवल सरकारों की जिम्मेवारी है बल्कि परिवार की, समाज की, अभिभावकों की भी जिम्मेवारी है कि वे बच्चों के, किशोरों के, युवाओं के सर्वांगीण विकास के लिये एक स्वस्थ्य सामाजिक, सांस्कृतिक वातावरण प्रदान करें. मनोरंजन के नाम पर जिस तरह से अशालीनता, अश्लीलता, गालियाँ, अनैतिक संबंधों का प्रदर्शन सार्वजनिक रूप से किया जा रहा है, उस पर नियंत्रण लगाया जाये.