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22 फ़रवरी 2023

हिंडनबर्ग रिपोर्ट और अडानी ग्रुप

जनवरी में हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी ग्रुप पर एक रिपोर्ट सार्वजानिक की थी. इस रिपोर्ट ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी. उस दिन से आज तक संसद से लेकर सड़क तक इसी रिपोर्ट की चर्चा हो रही है. रिपोर्ट आने के बाद से अडानी के शेयरों में काफी गिरावट आई और इस ग्रुप की मार्केट वैल्यू भी गिर गई. इसके साथ ही निवेशकों को भी नुकसान सहना पड़ रहा है. हिंडनबर्ग एक अमेरिकन इन्वेस्टमेंट कंपनी है जो फोरेंसिक वित्तीय अनुसंधान का काम करती है. हिंडनबर्ग रिसर्च की वेबसाइट के अनुसार यह कंपनी किसी भी अन्य कंपनी के निवेश, इक्विटी, क्रेडिट और डेरिवेटिव पर शोध करती है. इसके साथ-साथ कंपनी शेयर मार्केट की बारीकियों का विश्लेषण करके, कई सूत्रों की मदद से किसी कंपनी में हो रही धोखाधड़ी को सबसे सामने लेकर आती है. 


हिंडनबर्ग रिसर्च की स्थापना सन 2017 में नाथन एंडरसन ने की थी. इंटरनेशनल बिजनेस में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद एंडरसन ने एक डाटा कंपनी में रिसर्च सिस्टम्स का काम शुरू किया. इसी वर्ष एंडरसन द्वारा अपनी शॉर्ट-सेलिंग कंपनी को शुरू किया गया. हिंडनबर्ग रिसर्च नाम से शुरू इस कंपनी का मुख्य कार्य अकाउंटिंग में अनियमितताओं को देखना, अहम पदों पर अयोग्य व्यक्तियों की नियुक्ति, अघोषित लेन-देन, किसी तरह की ग़ैर-क़ानूनी, अनैतिक व्यापार या वित्तीय रिपोर्टिंग को तैयार करना रहा है. एक रिपोर्ट के अनुसार सन 2020 के बाद से हिंडनबर्ग द्वारा तीस कंपनियों की रिसर्च रिपोर्ट को प्रस्तुत किया है. यह कोई संयोग नहीं कि उसकी रिसर्च रिपोर्ट आने के बाद से सम्बंधित कंपनी के शेयर औसतन पंद्रह प्रतिशत तक गिए गए. शेयरों का गिरना मात्र इतने तक ही नहीं रहा. आने वाले छह महीने में उन कंपनियों के शेयरों में औसतन पच्चीस प्रतिशत से अधिक की गिरावट दर्ज की गई, जिनकी रिपोर्ट को हिंडनबर्ग द्वारा प्रस्तुत किया गया.




यदि इस कंपनी के मूल में जाकर देखा जाये तो यह एक तरह की शॉर्ट सेलर है. शॉर्ट सेलर से तात्पर्य ऐसे शेयर निवेशक से है जो शेयरों की खरीद और बिक्री तब करता है जब शेयरों के दामों के भविष्य में गिरने की संभावना होती है. ऐसी स्थिति में कई बार शॉर्ट सेलर अपने पास शेयर न होते हुए भी इन्हें बेचता है. ऐसा वह शेयर खरीदने के बजे उनको उधार लेकर बेचता है. यह एक तरह का जुआ कहा जा सकता है. यदि शेयरों की गिरावट का और उनके बढ़ने का अंदाजा सही निकला तो शॉर्ट सेलर को लाभ ही लाभ होता है. हिंडनबर्ग पर इसी तरह का शेयर कारोबार करने का आरोप लगता रहा है. कहा जाता रहा है कि हिंडनबर्ग द्वारा अपनी रिसर्च रिपोर्ट सम्बंधित कंपनी के शेयर खरीदने के लिए ही सार्वजनिक की जाती है. हिंडनबर्ग उस कंपनी के शेयर गिराकर इसी तरह से लाभ लेती है.


हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में अडानी ग्रुप पर कुछ सवाल उठाए हैं. इस रिपोर्ट में सवाल उठाया गया है कि गौतम अडानी के छोटे भाई राजेश अडानी को ग्रुप का प्रबंध निदेशक क्यों बनाया गया है जबकि उनके ऊपर कस्टम टैक्स चोरी, फर्जी इंपोर्ट डॉक्यूमेंटेशन और अवैध कोयला आयात करने का आरोप है. इसके अलावा और भी कई सवाल हैं, जिनके बारे में अडानी ग्रुप द्वारा किसी भी तरह का स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया है. हिंडनबर्ग द्वारा रिपोर्ट सार्वजनिक किये जाने के बाद से अडानी ग्रुप को भारी गिरावट देखनी पड़ी है. मात्र दो दिनों उसका 4.1 लाख करोड़ का मार्केट कैप साफ हो गया. इस ग्रुप के शेयरों में लगभग बीस प्रतिशत तक की गिरावट देखने को मिली.


हिंडनबर्ग के द्वारा सार्वजनिक की गई रिपोर्ट से अडानी ग्रुप पर सकारात्मक या नकरातमक क्या परिणाम पड़ेगा ये एक अलग बात है मगर उस रिपोर्ट से भारत सरकार की बहुत सी महत्त्वाकांक्षी योजनाओं पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. लगभग बीस हजार करोड़ रुपये की धारावी पुनर्विकास परियोजना के द्वारा साढ़े छह लाख झुग्गीवासियों के पुनर्वास का काम अगले सात साल में पूरा करना अडानी ग्रुप की मुख्य योजना है. इसके अलावा अगले एक दशक में सौ अरब डॉलर का निवेश करने की घोषणा, जिसमें से सत्तर प्रतिशत ग्रीन एनर्जी पर खर्च करने का वादा, अडानी डिफ़ेंस एंड एयरोस्पेस के द्वारा ड्रोन सहित अपने रक्षा उत्पादों का निर्यात भी उनकी परियोजनाओं में शामिल है. भारतीय वायु सेना के विमानों की समय-समय पर देख-रेख का काम भी अडानी ग्रुप की कंपनी द्वारा किया जाता है. इन परियोजनाओं के साथ-साथ अन्य कई योजनायें ऐसी हैं जिनके बीच में रुकने पर अथवा उनकी गति में अवरोध आने पर देश के विकास में भी प्रभाव देखने को मिल सकता है.


यदि अडानी ग्रुप के व्यवसाय को देखा जाये तो इसकी कंपनियों को भारतीय स्टेट बैंक सहित देश की अनेक बैंकों ने 81,200 करोड़ रुपये का ऋण अडानी ग्रुप को दे रखा है. भारतीय रिजर्व बैंक को भारतीय स्टेट बैंक ने बताया है कि उसके द्वारा अडानी ग्रुप को 23000 करोड़ रुपये का ऋण दिया गया है. इसी तरह से पंजाब नेशनल बैंक द्वारा 7000 करोड़ का ऋण दिया गया है. हिंडनबर्ग की रिसर्च रिपोर्ट आने के बाद से जहाँ एक तरफ निवेशकों में घबराहट का माहौल बना वहीं शेयर बाजार में भी गिरावट देखने को मिली. इस हड़बड़ी के बीच भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन की ओर से कहा गया कि अडानी ग्रुप को दिए गए ऋण को लेकर लोगों को डरने की जरूरत नहीं है. अडानी ग्रुप में उनका निवेश सुरक्षित है.


अडानी ग्रुप द्वारा बाद में हिंडनबर्ग रिपोर्ट के जवाब में कहा कि यह सुनियोजित हमला है जिसके द्वारा अमेरिकी कम्पनियों को मदद की जा रही है. यहाँ भले ही हिंडनबर्ग को एक शॉर्ट सेलर के रूप में देखा जाता हो, भले ही अनेक विशेषज्ञों द्वारा कहा जा रहा हो कि उसकी रिपोर्ट अन्य दूसरी कम्पनियों को लाभ देने के लिए सार्वजनिक की गई है फिर भी भारत सरकार को, भारतीय रिजर्व बैंक को इस पर गंभीरता से कार्य करने की आवश्यकता है. आखिर देश की बैंकों का बहुत सारा धन अडानी ग्रुप में लगा है, बहुत सारे निवेशकों का धन इस ग्रुप की कम्पनियों के शेयरों में लगा है. हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट सही है अथवा गलत इस पर बन रहे असमंजस भरे माहौल को दूर करना सरकार और अन्य सुरक्षा एजेंसियों की जिम्मेवारी है. 






 

09 दिसंबर 2022

रेपो रेट और भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के फैसलों की घोषणा की गई. इस समिति ने इस बार भी मँहगाई को नियंत्रित करने के लिए रेपो रेट को बढ़ाने का फैसला किया है. मौद्रिक नीति समिति ने अपनी बैठक में तरलता समायोजन सुविधा अर्थात लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी (एलएएफ) के अन्तर्गत रेपो रेट को 35 आधार अंक या 0.35 प्रतिशत बढ़ाने का निर्णय लिया. समिति के छह सदस्यों में से पाँच सदस्यों ने रेपो रेट बढ़ाने के फैसले का समर्थन किया. इस बढ़ोतरी को मिला कर देखा जाये तो पिछले सात महीनों में भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से ब्याज दरों में पाँचवीं बार वृद्धि की गई है. बैंक ने इससे पूर्व मई में 0.40 प्रतिशत जून, अगस्त और सितंबर में 0.50 प्रतिशत की बढ़ोतरी की थी. इस वृद्धि के बाद अब रिजर्व बैंक की रेपो रेट 5.4 प्रतिशत से बढ़कर 6.25 प्रतिशत हो गई है.


रेपो रेट को बढ़ाने का निर्णय अचानक से नहीं लिया गया. जब सितम्बर माह में चौथी बार रेपो रेट में बढ़ोत्तरी की गई थी, उसी समय रिजर्व बैंक गवर्नर ने संकेत दिए थे कि यदि मँहगाई पर नियंत्रण न लगा तो आने वाले समय में रेपो रेट को बढ़ाया जा सकता है. इस बार तीन दिनों तक मौद्रिक नीति समिति की बैठक चलने के बाद रेपो रेट को बढ़ाने का फैसला किया गया. इस बढ़ोत्तरी की घोषणा करते हुए रिजर्व बैंक गवर्नर ने कहा कि अगले चार महीनों में मँहगाई दर चार प्रतिशत से ऊपर बने रहने की संभावना है. उन्होंने यह भी कहा है कि देश में ग्रामीण माँग में सुधार दिख रहा है. कंज्यूमर कॉन्फिडेंस में भी सुधार हुआ है. गवर्नर के अनुसार वित्तीय वर्ष 2023 में जीडीपी ग्रोथ 6.8 प्रतिशत रह सकता है.




भारतीय अर्थव्यवस्था में रेपो रेट शब्द अब आम होता जा रहा है. सात महीनों में पाँच बार इसमें वृद्धि से आम आदमी भले ही इस शब्द से परिचित हो गया हो मगर वह इसकी कार्य-प्रणाली से, इसके वास्तविक सन्दर्भों से अपरिचित ही है. सामान्यजन के लिए अक्सर यह समझना कठिन हो जाता है कि रेपो रेट के बढ़ने या घटने से आम आदमी पर क्या प्रभाव पड़ता है. रेपो रेट के द्वारा किस तरह से मँहगाई को नियंत्रित किया जा सकता है. भारतीय रिजर्व बैंक एक विशिष्ट दर पर वाणिज्यिक बैंकों को धन उधार देता है. इसी के आधार पर बैंकों द्वारा उपभोक्ताओं को ब्याज दर का निर्धारण किया जाता है. यदि आसान शब्दों में कहें तो रेपो रेट का मतलब है रिजर्व बैंक द्वारा अन्य बैंकों को दिए जाने वाले कर्ज की दर. बैंकों द्वारा अपने उपभोक्ताओं को देने के लिए, अन्य वित्तीय कार्यों के निष्पादन हेतु भारतीय रिजर्व बैंक से एक तरह का ऋण लिया जाता है. रिजर्व बैंक एक निश्चित रेट पर या कहें कि दर पर अन्य बैंकों को ऋण उपलब्ध कराती है. उसी को रेपो रेट कहा जाता है. बाद में बैंक इसी रेट पर अपने ग्राहकों को ऋण प्रदान करते हैं. रेपो रेट अधिक होने से ग्राहकों को अधिक ब्याज दर पर ऋण मिलता है जबकि रेपो रेट कम होने पर बैंक अपने ऋण पर ग्राहकों से कम ब्याज दर वसूल करते हैं. रेपो रेट का निर्धारण मौद्रिक नीति समिति की दो मासिक बैठक में किया जाता है.


यहाँ यह जानना आवश्यक है कि भारतीय रिजर्व बैंक सभी वाणिज्यिक बैंकों को ऋण नहीं देता है. उसके द्वारा सबसे पहले वाणिज्यिक बैंकों की प्रतिभूतियों और बांडों का सत्यापन किया जाता है. इसके पश्चात् ही रिजर्व बैंक द्वारा ऋण देने की प्रक्रिया शुरू की जाती है. जब तक वाणिज्यिक बैंकों द्वारा उधार ली गई राशि का भुगतान नहीं किया जाता है, तब तक ये प्रतिभूतियाँ अथवा बांड रिजर्व बैंक के पास बंधक रहते हैं. किसी कारण से यदि वाणिज्यिक बैंक ऋण को नहीं चुका पाता है तो रिजर्व बैंक को उन प्रतिभूतियों को बेचने का अधिकार होता है.


देखा जाये तो रेपो रेट देश के आर्थिक विकास के लिए एक आवश्यक उपकरण होता है. देश की मुद्रास्फीति पर भी यह महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है. इसके माध्यम से अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति और तरलता को भी नियंत्रित करने में सहायता मिलती है. रेपो रेट अधिक होने की स्थिति में बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से उधार लेने की लागत मँहगी हो जाती है. ऐसी स्थिति अर्थव्यवस्था में निवेश और मुद्रा आपूर्ति को धीमा कर देती है. परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना सहज हो जाता है. ऐसे कदम से मँहगाई को भी नियंत्रित करने में मदद मिलती है. यही कारण है कि विगत सात माह में रिजर्व बैंक द्वारा पाँच बार रेपो रेट को बढ़ाया गया है.


रेपो रेट समग्र अर्थव्यवस्था पर कई तरह के प्रभावों का कारण बन सकता है चाहे वह बैंकिंग क्षेत्र पर प्रभाव हो, औसत नागरिक पर प्रभाव हो या भारतीय अर्थव्यवस्था अन्य बिन्दुओं पर प्रभाव हो. किसी भी तरह की मौद्रिक नीतियों में परिवर्तन से सीधे तौर पर प्रभावित होने वाला महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बैंकिंग का होता है. यह बैंकों के लिए एक बड़ी राहत की खबर होती है जब रिजर्व बैंक रेपो रेट को कम करने का फैसला करता है. रेपो रेट कम होने के कारण वाणिज्यिक बैंक रिजर्व बैंक से कम दर पर उधार ले सकते हैं. इसके ठीक उलट स्थिति रेपो रेट बढ़ने पर होती है. रेपो रेट के बढ़ने या फिर घटने का सीधा प्रभाव उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ता है. इसके द्वारा गृह ऋणव्यवसाय ऋण और अन्य ऋण दर परिवर्तन पर प्रभाव पड़ता है. ऐसा होने से मुद्रा प्रवाह में स्थिरता या कमी आती है. इसके द्वारा बहुत हद तक मँहगाई को नियंत्रित किया जा सकता है.


रिजर्व बैंक द्वारा बढ़ाये जाने वाले रेपो रेट से मँहगे बैंक ऋण उधारकर्ता को ऋण लेने से हतोत्साहित करते हैं. यह बाजार में धन की आपूर्ति को कम करता है और इस प्रकार प्रणाली में तरलता को स्थिर करता है. यह भले ही खपत, विस्तार और उत्पादन में कम पैसे की आपूर्ति के साथ एक गिरावट है किन्तु इसके द्वारा रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति की दर को नियंत्रण में रखने के लिए आर्थिक विकास और बढ़ती मुद्रास्फीति के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करता है. बाजार में तरलता में कमी आने पर, मुद्रा की गति कम रहने पर, नकदी का प्रवाह कम रहने के कारण लोगों की क्रय शक्ति पर भी प्रभाव पड़ता है. इसके द्वारा भी मँहगाई को नियंत्रित किया जा सकता है. संभव है कि प्रथम दृष्टया रेपो रेट के बढ़ने से ब्याज दरों में बढ़ना अर्थव्यवस्था के लिए, आम आदमी के लिए अहितकर लगे किन्तु दीर्घकालिक स्थिति से निपटने के लिए यह सर्वाधिक अनुकूल कदम कहा जाता है. 





 

26 फ़रवरी 2018

भ्रष्टाचार-मुक्ति के लिए नैतिकता चाहिए


शिक्षा समाप्ति के बाद दिमाग में प्रशासनिक सेवा में जाने का कीड़ा कुलबुला रहा था. उसके साथ-साथ खुद को आर्थिक आधार पर खड़ा करने की सोच भी काम कर रही थी. नब्बे के दशक में बहुत सारी स्थितियाँ सहायक सिद्ध होती थीं तो बहुत सी स्थितियाँ विपरीत दिशा में काम करती थीं. उनकी सहायक और असहायक स्थितियों से जूझते हुए प्रशासनिक परीक्षाओं की तैयारी के साथ-साथ अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियाँ चलती रहतीं. उरई जैसे छोटे शहर में प्रतियोगी परीक्षाओं का माहौल जिस तरह का था उसके अनुसार खुद को सक्षम बनाते हुए आगे बढ़ने की कोशिश चलती रहती. इसी कोशिश के कई प्रतियोगी परीक्षाओं में साक्षात्कार देने की स्थिति भी बनी, ये और बात है कि अंतिम रूप से सफलता उनमें किसी में भी न हाथ लगी.


ऐसी ही एक स्थिति उस समय बनी जबकि बैंकिंग भर्ती बोर्ड के अंतर्गत भारतीय स्टेट बैंक में सेवाएँ देने के लिए साक्षात्कार से सामना करना पड़ा. कई सारे सवालों-जवाबों के आदान-प्रदान के बीच उस साक्षात्कार लेने वाले बोर्ड के अध्यक्ष ने किसी बात पर कहा कि बैंक में कोई अवसर ही नहीं, कोई भ्रष्टाचार करेगा कैसे? उस समय उनकी बात पर सहमति भी व्यक्त की. बैंक को तत्कालीन स्थितियों में इस कारण भी हमको बहुत सहज नौकरी दिखती थी क्योंकि हमारे तीनों चाचा लोग भारतीय स्टेट बैंक में अपनी सेवाएँ दे रहे थे. उनका सहज तरीके से अपनी नौकरी करना, परिवार को समय देना और बाकी के उत्तरदायित्वों का निर्वहन भी सहजता से होता दिखता था. ये और बात है कि समय के साथ-साथ बैंक की नौकरी भी कष्टप्रद साबित होने लगी. बहरहाल, नब्बे के दशक के उस दौर में बैंक में किसी तरह के घोटाले की, भ्रष्टाचार की बात कोई सोचता नहीं था. हालाँकि इसी दौर में देश का सबसे बड़ा शेयर घोटाला हुआ था, जिसे बैंक के नियमों का फायदा उठाकर अंजाम दिया गया था तथापि इसमें भी बैंकों की कार्यप्रणाली पर संदेह नहीं किया गया था.

अभी पिछले दिनों पंजाब नेशनल बैंक और अब ओरिएंटल बैंक और कॉमर्स में 390 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया है. कहा जा रहा है कि इसकी शिकायत लगभग छह महीने पहले ही की जा चुकी है मगर मामला अब दर्ज किया गया. फ़िलहाल इन घोटालों के पूर्व भी जबकि देश नोटबंदी जैसे कड़े सरकारी कदम से खुद को आगे बढ़ाने में लगा था तब कुछ बैंकों की कार्यप्रणाली ने, उनके अधिकारियों के रवैये ने ऐसा माहौल बनाया जिससे आम आदमी को विश्वास हो चला था कि बैंक भी घोटाले कर सकती हैं. नोटबंदी में जिस तरह से बैंकों और उनके अधिकारियों ने मिलीभगत से धन की अदला-बदली की उससे बैंक की निष्पक्ष कार्यप्रणाली पर से भरोसा उठने लगा था. इस उठते भरोसे को उस समय भी हवा मिली जबकि विजय माल्या करोड़ों का कर्ज लेकर देश से फरार हो गया. इसके बाद जैसे ही ये दो घोटाले सामने आये, आम जनमानस में धारणा बन गई कि बैंक और उनके अधिकारियों के सारे नियम-कानून आम आदमी के लिए हैं, सामान्यजन के लिए ही हैं. प्रभावशाली लोगों के लिए, रसूखदार लोगों के लिए बैंकों में भी किसी नियम का कोई मतलब नहीं है.

एक बात स्पष्ट है कि किसी भी संस्थान में तब तक कोई घोटाला, किसी भी तरह का भ्रष्टाचार नहीं हो सकता है जबकि उस सिस्टम में बैठा कोई जिम्मेवार स्वयं ही उसके लिए कोई कार्य न करे. बैंक से लोन का निकलना किसी विजय माल्या, किसी नीरव मोदी की हैसियत से बहुत बाहर की बात है. सरकारी नियमों, कायदों में कमियाँ निकालकर उसी कमी का फायदा दिलाने का काम वही व्यक्ति कर सकता है जो उस सम्बंधित सिस्टम से जुड़ा हुआ है. ऐसे में बैंक हों या फिर कोई भी संस्थान सभी में नियमों-कानूनों की अपनी स्थिति है मगर उसके बीच से सुराख़ खोजने का काम उसी के वर्तमान या पूर्व अधिकारी करते हैं. ऐसे में अपने उसी साक्षात्कार की घटना याद आती है तो लगता है कि संभव है कि नब्बे के दशक में जबकि औद्योगीकरण का दौर आरम्भ हुआ था, नई आर्थिक नीतियां अपना स्वरूप गढ़ने में लगी थीं, वैश्वीकरण की परिभाषा को नया लिबास पहनाया जा रहा था तब व्यक्ति में संस्कार, नैतिक मूल्य किसी न किसी रूप में जीवित बचे थे. आज पूर्ण रूप से खुद को आधुनिक और भौतिकवादी बनाने के साथ-साथ व्यक्तियों ने अपने-अपने नैतिक मूल्यों को तिलांजलि देने का काम भी किया है. यही कारण है कि आज हमारे बीच के लोग ही हमको नकली खाद्य-सामग्री बेचते हैं, जहरीला दूध बच्चों को पिलाते हैं, बिना गुणों की औषधि से इलाज किया जा रहा है, हर तरफ नकली, मिलावटी सामानों की भरमार है.

ये अवगुण अचानक नहीं जन्मे हैं. इनके जन्मने में हमारे आसपास का वातावरण बहुत प्रभावी रहा है. पड़ोसी को आये दिन आर्थिक तरक्की करते देखकर, उसके मकान को बढ़ता देखकर, उसकी कारों का काफिला लम्बा होता देखकर दूसरा इन्सान भी उसी दिशा में कार्य करने लगता है. इसके लिए वो किसी भी कदम को उठाने से नहीं चूकता है. इसी भागमभाग में वह कब घोटालों, रिश्वत, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने लगता है उसे खुद पता नहीं चलता है. सीधी सी बात है, जब तक कि व्यक्ति स्वयं में नैतिक मूल्यों का विकास नहीं करता है तब तक समाज से किसी भी तरह के घोटाले, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी को दूर करना असंभव ही है. आने वाले समय में शायद ही कोई संस्था ऐसी शेष रहे जो भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, घोटालों की चपेट में न आये. वैसे समाज के हित में यही है भी. आखिर जब तक भ्रष्टाचार का पैमाना पूरी तरह से नहीं भरेगा, जब तक एक-एक आदमी भ्रष्ट नहीं हो जायेगा तब तक समाज से भ्रष्टाचार का खात्मा करना सहज, संभव नहीं.

17 फ़रवरी 2018

बैंक भी घोटाला करने की राह पर


पंजाब नैशनल बैंक में 11 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक का घोटाला सामने आया है. ये घोटाला मुंबई की एक ब्रांच में हुआ. यह बैंक की मार्केट वैल्यू का क़रीब एक-तिहाई और साल 2017 की आख़िरी तिमाही के मुनाफ़े का 50 गुना है. इस घोटाले में हीरा कारोबारी नीरव मोदी और उसके साथी दोषी पाए गए हैं साथ ही पंजाब नेशनल बैंक के कुछ अधिकारियों की भी मिलीभगत सामने आई है. नीरव मोदी और उनके साथियों ने सन 2011 में बिना तराशे हुए हीरे आयात करने के लिए पंजाब नेशनल बैंक की मुंबई स्थित एक ब्रांच से संपर्क किया. सम्बंधित शाखा से गारंटी पत्र या लेटर ऑफ़ अंडरटेकिंग (LoU) जारी किये गए.  


कोई बैंक विदेश से आयात को लेकर होने वाले भुगतान के लिए गारंटी पत्र या लेटर ऑफ़ अंडरटेकिंग (LoU) जारी करता है. इसका ये मतलब होता है कि बैंक किसी कंपनी के विदेश में मौजूद सप्लायर को 90 दिन के लिए भुगतान करने को राज़ी हो जाता है और बाद में पैसा कंपनी को चुकाना होता है. कुछ इसी तरह का काम नीरव मोदी और उसके दोस्तों की कंपनियों के लिए किया गया. पंजाब नेशनल बैंक के कुछ कर्मचारियों ने कथित तौर पर नीरव मोदी की कंपनियों को फ़र्ज़ी LoU जारी किए और ऐसा करते वक़्त उन्होंने बैंक मैनेजमेंट को अंधेरे में रखा. इन्हीं फ़र्ज़ी LoU के आधार पर भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं ने पंजाब नेशनल बैंक को लोन देने का फ़ैसला किया. रिपोर्ट्स के मुताबिक बैंक अधिकारी गोकुलनाथ शेट्टी और सिंगल विंडो ऑपरेटर खरात ने कंपनियों द्वारा जारी किये LoU की जानबूझकर कोर बैंकिंग सिस्टम में एंट्री नहीं की गई ताकि बैंक उच्च अधिकारियों को इसके बारे में जानकारी ही ना हो पाए.
इस तरह का फर्जीवाड़ा करने वालों ने एक क़दम आगे जाकर सोसाइटी फ़ॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फ़ाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन या स्विफ़्ट (SWIFT) का नाजायज़ फ़ायदा उठाना शुरू किया. स्विफ्ट एक तरह का इंटर-बैंकिंग मैसेजिंग सिस्टम है जो विदेशी बैंक पैसा जारी करने से पहले लोन ब्योरा पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसमें एक तरह का पासवर्ड या कोड इस्तेमाल किया जाता है. इस सिस्टम से यह पता चलता है कि जो संदेश बैंकों के पास आ रहे हैं वे आधिकारिक संदेश हैं. इसके इस्तेमाल से दोनों बैंक शाखाओं में आपस में विश्वास बना रहता है. जिससे वे बिना किसी अविश्वास के लेन-देन का कार्य करते रहते हैं. बैंक के कुछ अधिकारियों ने अपने उच्च अधिकारियों से बिना कोई इजाज़त लिए स्विफ़्ट तक अपनी पहुंच का फ़ायदा उठाया. शाखा प्रबंधक द्वारा लेनदेन के लिए वैश्विक वित्तीय संदेश सेवा स्विफ्ट का इस्तेमाल किया. स्विफ्ट एकाउंट का उपयोग किये जाने के चलते भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं को कोई शक़ नहीं हुआ और उन्होंने नीरव मोदी की कंपनियों को फ़ॉरेक्स क्रेडिट जारी कर दिया.
नीरव मोदी और उसके सहयोगियों की कम्पनियाँ बीती पांच जनवरी तक इसी विधि से पीएनबी के साथ लेनदेन करती रही. चूँकि हर नए लैटर ऑफ़ अंडरटेकिंग को पिछले से ज्यादा बनाकर बैंक से ऋण लिया जाता. इससे पिछले ऋण को चुकता कर नए ऋण का उपयोग किया जाने लगता. इससे दूसरे बैंक भी कंपनियों से संतुष्ट दिखे. इस फर्जीवाड़े का खुलासा तब हुआ जब पीएनबी के शाखा प्रबंधक गोकुलना‌थ शेट्टी सात साल तक एक ही पद पर रहने के बाद रिटायर हुए. यह बैंकिग गाइडलाइन सीवीसी का उल्लंघन करता है क्योंकि नियमानुसार बैंकों को नियमित रूप से दो या तीन साल पर तबादला करना होता है. जबकि पीएनबी की यह कोर ब्रांच और संवदेनशील ब्रांच होने के बाद भी यहां के मैनेजर का ट्रांसफर होने के बाद भी रोका जाता रहा.
इसी वर्ष 16 जनवरी को नीरव मोदी से जुड़ी कंपनियों डायमंड्स आर यूएस, सोलर एक्सपोर्ट्स, स्टेलर डायमंड्स ने बैंक को संपर्क कर बायर्स क्रेडिट की मांग की जिससे वे अपने विदेश के कारोबारियों को भुगतान कर सकें. नये ब्रांच मैनेजर ने इसके उनसे उतनी ही नकदी की मांग की तो कंपनियों के अधिकारियों ने जवाब दिया कि वे सन 2010 से इस तरह की सुविधा पाते आये हैं. उन्होंने इसके लिए कभी नकद भुगतान नहीं किए. इसके बाद ही सारा मामला पकड़ में आया. जानकारी से पता चला कि इस मामले में सं‌लिप्त एक एलओयू (LoU) की कीमत 9.539.3 करोड़ रुपये है. इसी के साथ 1799.3 करोड़ रुपये का एक फॉरेन लेटर ऑफ क्रेडिट भी जारी किया गया. इसमें सोलर एक्सपोर्ट्स 2152.8 करोड़, स्टेलर डायमंड्स 2134.7 करोड़, डायमंड्स आर यूएस 2110.6 करोड़, गीतांजलि गेम्स 2144.3 करोड़, गिली इंडिया 566.6 करोड़ व नक्षत्र व चांदरी को 321.1 व 9.1 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं. ये रकम एक विदेशी बैंक के साथ पंजाब नेशनल बैंक के खाते में दी गई थी जिसे नोस्ट्रो एकाउंट कहते हैं. पैसा इस एकाउंट से नीरव मोदी के विदेश में मौजूद उन सप्लायर्स को भेजा गया जो बिना तराशे हुए हीरे सप्लाई करने का काम करते हैं. जब ये फ़र्ज़ी LoU मैच्योर होने लगे तो पंजाब नेशनल बैंक के भ्रष्ट कर्मचारियों ने सात साल तक दूसरे बैंकों की रकम का इस्तेमाल इस लोन को रिसाइकिल करने के लिए किया. इस सारी धोखाधड़ी से तब पर्दा हटा जब पंजाब नेशनल बैंक के भ्रष्ट कर्मचारी-अधिकारी रिटायर हो गए और नीरव मोदी की कंपनी के अफ़सरों ने जनवरी में दोबारा इसी तरह की सुविधा शुरू करने की गुज़ारिश की. नए अधिकारियों ने ये ग़लती पकड़ ली और स्कैम से पर्दा हटाने के लिए आंतरिक जांच शुरू कर दी. पंजाब नेशनल बैंक ने खुलासा किया कि उसने 1.77 अरब डॉलर (करीब 11,400 करोड़ रुपये) के घोटाले को पकड़ा है. इस मामले में अरबपति हीरा कारोबारी नीरव मोदी ने कथित रूप से बैंक की मुंबई शाखा से फ़र्ज़ी गारंटी पत्र (LoU) हासिल कर अन्य भारतीय ऋणदाताओं से विदेशी ऋण हासिल किया. इस संबंध में बैंक ने अपने 10 कर्मचारियों को निलंबित कर दिया है और इस मामले की शिकायत केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) से की है.