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31 मई 2021

फाउंटेन पेन और बेटियों का लेखन

कहते हैं कि हरेक चित्र के पीछे कोई न कोई कहानी छिपी रहती है. ऐसा सच भी लगता है क्योंकि फोटो खींचते समय कोई न कोई विचार, कोई न कोई विषय, कोई न कोई मामला उस चित्र के साथ जुड़ा हुआ होता है. अक्सर लोग चित्र खींचने के बाद उससे जुड़ी हुई कहानी को विस्मृत कर देते हैं. ऐसा बहुत बार हमारे साथ भी होता है. यह कोई अनोखी अथवा अचंभित करने वाली प्रक्रिया नहीं है. इसके पीछे ऐसा होने के कारण फोटो का बहुत ज्यादा खींचा जाना है.


आज हर हाथ में स्मार्ट फोन होने के कारण और उनमें एक से एक बढ़कर, बहुत ज्यादा मेगापिक्सल वाले कैमरा होने के कारण भी फोटो का खींचा जाना आम बात हो गई है. ऐसे में बहुत बार सबको फोटो खींचते देखकर भी फोटो खींचने का मन होने लगता है. ऐसी स्थिति में ध्यान ही नहीं रहता है कि सम्बंधित फोटो के साथ कौन सी विशेष बात अथवा घटना जुड़ी हुई थी.


बहरहाल, इधर लॉकडाउन की फुर्सत के कारण दोनों बेटियों ने हमारे पेन, फाउंटेन पेन के खजाने को खूब निहारा, खंगाला. उसी में उनको फाउंटेन पेन दिखाए भी और उनके लिखने के लाभ भी बताये. फाउंटेन पेन से जुड़े अपने अनुभव भी उनको सुनाये. ऐसे में वे दोनों भी फाउंटेन पेन से लिखने का मन बना कर हैण्डराइटिंग में जुट गईं. दोनों ने फाउंटेन पेन से हिन्दी और अंग्रेजी में एक-एक पेज लिख कर दिखाया. दोनों की राइटिंग अच्छी लगी तो सोचा कि इससे जुड़ी यह बात लिखते हुए उसे आप सबके बीच भी लगा दिया जाये.


देखिये और आकलन कीजियेगा.


तीनों बेटियाँ 


छोटी बेटी का हिन्दी लेखन 

छोटी बेटी का अंग्रेजी लेखन 

बड़ी बेटी का हिन्दी लेखन 

बड़ी बेटी का अंग्रेजी लेखन 


29 सितंबर 2020

तकनीकी दौर में हस्तलिपि का सुखद एहसास

कहा जाता है कि जिसका हस्तलेख सुन्दर होता है, उसकी मनःस्थिति भी सुन्दर होती है. पता नहीं यह कितना सच है मगर एक बात अपने व्यक्तिगत अनुभव से अवश्य कह सकते हैं कि सुन्दर, स्वच्छ हस्तलेख व्यक्ति का आत्मविश्वास अवश्य बढ़ाता है. आज के दौर में जबकि कम्प्यूटर, मोबाइल आदि के आने से कागज, कलम का उपयोग लोगों ने कम कर दिया है जिससे सुन्दर हस्तलिपि से परिचय होना भी कम हो गया है. ऐसी स्थिति के बाद भी यदि आँखों के सामने से हस्तलिपि में कोई कागज़ गुजरता है तो सुखद एहसास जगा जाता है.


हमने स्वयं हस्तलिपि सुन्दर बनी रहे, इसके लिए लगातार अभ्यास किया है. पिछली पोस्ट में आपसे चर्चा भी हुई थी कि पिताजी के लिखे अक्षरों की नक़ल कर-कर के, उनका अभ्यास कर-कर के अपने हस्तलेख को सुधारने का प्रयास किया. यह प्रयास आज तक चल रहा है. बीच में कुछ स्थिति ऐसी बनी जिसके चलते कुछ अक्षरों को लिखने का ढंग बदल गया, लिखने की शैली में कुछ अंतर आ गया इसके बाद भी प्रयास यही है कि अक्षर पिताजी के बनाये हुए अक्षरों जैसे बनें.


आज इस पोस्ट में अपनी एक कविता, जो हमने आज ही लिखी है, का चित्र लगा रहे साथ ही पिताजी की हस्तलिपि का. देखकर साफ़ समझ आ रहा है कि आज भी पिताजी जैसी राइटिंग हम बना नहीं पाए.


ये हमारी हस्तलिपि में हमारी कविता 

ये पिताजी की हस्तलिपि 


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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

27 सितंबर 2020

प्रयास पिताजी की तरह की हस्तलिपि लेखन का

अपनी प्रशंसा सुनना किसे ख़राब लगता होगा? हमें भी नहीं लगता और खासतौर से उस प्रशंसा को अत्यंत सहज भाव से स्वीकार करते हैं जो हमारी हस्तलिपि (हैण्ड राइटिंग) को लेकर होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि हमारी इस राइटिंग को सुधारने के पीछे हमारे मन्ना चाचा (श्री नरेन्द्र सिंह सेंगर) तथा पिताजी (श्री महेन्द्र सिंह सेंगर) का योगदान है.


मन्ना चाचा की बैंक में सेवाओं का बहुत सारा समय कालपी, कोंच, कानपुर में बीता. इस कारण उनका नियमित रूप से उरई आना होता था. वे हम लोगों को बॉल पेन से लिखते देख लेते तो बहुत गुस्सा होते थे. फाउंटेन पेन से लिखने की आदत उनके द्वारा ही डलवाई हुई है. हम लोगों के लिए वे सुन्दर से फाउंटेन पेन भी लाया करते थे. (पेन इकठ्ठा करने का हमें जो शौक लगा है वो भी उन्हीं की देन कहा जायेगा क्योंकि उनके पास भी बहुत बेहतरीन पेनों का संग्रह आज भी है. इसमें कुछ विदेशी पेन भी शामिल हैं)


इसके अलावा किसी अक्षर को कैसे लिखा जाएगा, इसका अभ्यास पिताजी का लिखा हुआ देख कर किया करते थे. वकालत पेशे से सम्बद्ध होने के कारण पिताजी को बहुत से कागजों को लिखना होता था. बहुत से लिखे हुए कागज़ उनके द्वारा फाड़कर रद्दी में फेंके जाते थे. हम उन्हीं फटे टुकड़ों को उठाकर चोरी-चोरी पिताजी के बनाये अक्षरों की घंटों नक़ल किया करते थे.


आज फेसबुक पर टहलते हुए एक चैलेंज (#handwritingchallenge) दिखाई दिया. हमारे अनेक मित्रों ने, जो हमारी हस्तलिपि से परिचित हैं, हमारे प्रति अपना स्नेह व्यक्त किया. अपनी हस्तलिपि के पहले आज अपने पिताजी की हस्तलिपि के कुछ हिस्से आपके सामने. हमारा आज भी प्रयास रहता है पिताजी की तरह अक्षर बनाने का मगर बचपन से लेकर अभी तक सफल नहीं हो सके. कुछ अक्षर तो बन जाते हैं मगर कुछ अक्षर हमें मुँह चिढ़ाते हुए आगे बढ़ जाते हैं.





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#हिन्दी_ब्लॉगिंग