कहा जाता है कि जिसका हस्तलेख सुन्दर होता है, उसकी मनःस्थिति भी सुन्दर होती है. पता नहीं यह कितना सच है मगर एक बात अपने व्यक्तिगत अनुभव से अवश्य कह सकते हैं कि सुन्दर, स्वच्छ हस्तलेख व्यक्ति का आत्मविश्वास अवश्य बढ़ाता है. आज के दौर में जबकि कम्प्यूटर, मोबाइल आदि के आने से कागज, कलम का उपयोग लोगों ने कम कर दिया है जिससे सुन्दर हस्तलिपि से परिचय होना भी कम हो गया है. ऐसी स्थिति के बाद भी यदि आँखों के सामने से हस्तलिपि में कोई कागज़ गुजरता है तो सुखद एहसास जगा जाता है.
हमने स्वयं हस्तलिपि सुन्दर बनी रहे, इसके लिए लगातार अभ्यास किया है. पिछली पोस्ट में आपसे चर्चा भी हुई थी कि पिताजी के लिखे अक्षरों की नक़ल कर-कर के, उनका अभ्यास कर-कर के अपने हस्तलेख को सुधारने का प्रयास किया. यह प्रयास आज तक चल रहा है. बीच में कुछ स्थिति ऐसी बनी जिसके चलते कुछ अक्षरों को लिखने का ढंग बदल गया, लिखने की शैली में कुछ अंतर आ गया इसके बाद भी प्रयास यही है कि अक्षर पिताजी के बनाये हुए अक्षरों जैसे बनें.
आज इस पोस्ट में अपनी एक कविता, जो हमने आज ही लिखी है, का चित्र लगा रहे साथ ही पिताजी की हस्तलिपि का. देखकर साफ़ समझ आ रहा है कि आज भी पिताजी जैसी राइटिंग हम बना नहीं पाए.
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (30-09-2020) को "गुलो-बुलबुल का हसीं बाग उजड़ता क्यूं है" (चर्चा अंक-3840) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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हाथ से लिखने की कला लोग भूलते जा रहे हैं, किन्तु इसके महत्व को कभी नकारा नहीं जा सकता
जवाब देंहटाएंहस्तलिपि के महत्व को बनाए रखने का प्रयास किया जाना चाहिए...सही मे आजकल तो इसका जरूरत ही नहीं रही।
जवाब देंहटाएंअभी और मेहनत करनी होगी। पिताजी की हस्तलिपि जैसा एक दिन ज़रूर लिखेंगे। वैसे अक्षर मोतियों-से हैं। कविता बहुत सुन्दर।
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