30 सितंबर 2020

बेटियों को सबल, सक्षम बनने को प्रेरित किया जाए

समाज की बेटियों के साथ किसी भी वारदात पर हम सभी शासन-प्रशासन को दोष देना शुरू कर देते हैं. अपने गिरेबान में झाँकिये और बताइये कि हम में से कितने लोग अपनी बेटियों को जूडो-कराटे की, मुक्केबाजी की, एथलेटिक्स की, बॉडी बिल्डिंग की ट्रेनिंग दिलवाते हैं? कितने हैं जिनकी बेटियाँ एकबार में दो-चार किलोमीटर दौड़ लें, बिना हाँफे, बिना पेट पकड़े? कितनी बेटियाँ हैं जो एक-दो पुरुष अपराधियों को देखकर आत्मविश्वास नहीं खोएँगी? कितनी बेटियाँ हैं जो चिल्लाएँ तो उनकी आवाज़ सौ-दो सौ मीटर तक जा सके?


अपनी बेटियों को सौन्दर्य प्रसाधन, जीरो फिगर, स्लिम फीचर, नाजुक मनोस्थिति से मुक्त करवाइए. उनमें प्रतिकार की शक्ति भरिये, विरोध की आवाज़ सशक्त करिए, आताताइयों पर हमला करने की ट्रेनिंग दीजिए. खुद को सशक्त भी बनाना जरूरी है क्योंकि बेटियाँ हमारी हैं. उन्हीं बेटियों की शादी के लिए आप सरकार के भरोसे नहीं बैठते तो उनकी सुरक्षा के लिए सरकार के भरोसे क्यों बैठते हैं?


जब भी बेटियों को सक्षम, सशक्त बनाने की बात करते हैं तो उसके पीछे यही विचार क्यों किया जाता है कि वे गैंगरेप जैसी वारदात का शिकार होंगी? क्यों मन में आता है चार-छह मनचले उसे घेरे हैं और बिटिया को सबसे लड़ना, मार पीट करना है? सामान्य रूप से देखिए और विचार करिए, आप ऐसे अनुभव से गुजरे होंगे---


बाजार में स्कूटी सेल्फ स्टार्ट न होने की दशा में बेटी दस-बारह किक मारकर हाँफ जाती है और फिर स्कूटी स्टार्ट करवाने के लिए किसी अंकल, किसी भैया को पुकारती है।


यात्रा करते समय दो भारी बैग लिए चल रही बिटिया चढ़ते, उतरते समय किसी मददगार हाथ की चाह रखती है।


किसी दुकान पर सामान लेने को खड़ी बेटी देर तक पीछे खड़ी रहती है क्योंकि वह अपने सामने खड़े लोगों को धकिया कर आगे निकलने की शक्ति नहीं रखती।


ऐसे बहुत से सामान्य उदाहरण रोज ही आपके सामने, हमारी बेटियों के सामने आते होंगे। क्या इनसे निपटने के लिए भी फाँसी जैसा कानून चाहिए? क्या इनके समाधान के लिए भी संस्कार पाठशाला चाहिए? क्यों बेटी का अर्थ छुईमुई से लगाया जाए? क्यों उसे कोमलांगी बनाए रखा जाए? क्रीम, पाउडर, काजल के साथ-साथ उसे दौड़ने, कूदने, शारीरिक अभ्यास करने की क्यों न दी जाए?


बेटियों की समस्या हर बार मनचलों से निपटने की नहीं, बहुत बार इन छोटी-छोटी बातों से निपटने की भी होती है। जिस दिन हमारी बेटियाँ अपनी सामान्य दिक्कतों से निपटना सीख जाएँगीं, उस दिन किसी लम्पट की हिम्मत नहीं उनकी तरफ आँख उठाकर देखने की। हमारी सजग, सशक्त, सक्षम बेटियाँ उन अपराधियों को धूल चटा देंगीं।


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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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