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27 मई 2017

तीन वर्ष के मोदी

राष्ट्रीय राजनीति का अनुभव न होने के बाद भी जिस तेजी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न केवल राष्ट्रीय राजनीति में वरन अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अपने आपको स्थापित किया है वह प्रशंसनीय है. गुजरात मुख्यमंत्रित्व काल में उनकी छवि गुजरात दंगे और मुस्लिम विरोधी प्रचारित होने के चलते अमेरिका द्वारा उनको वीजा देने से इंकार कर दिया गया था. बाद में न सिर्फ अमेरिका ने वरन वैश्विक समुदाय ने मोदी जी की राजनैतिक सूझबूझ का लोहा माना और उनके माध्यम से देश के साथ मधुर संबंधों को मधुरतम बनाया. तीन वर्ष पहले प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते समय नरेन्द्र मोदी के सामने अनेकानेक चुनौतियाँ थीं. देश में अनेक समस्याओं के साथ-साथ विपक्षी बौखलाहट वाली भी एक समस्या प्रमुख थी. देश भर में छाई नमो लहर ने शेष दलों को जैसे हाशिये पर खड़ा कर दिया था. जाति, धर्म के नाम पर चलने वाली राजनीति को बहुत हद तक मतदाताओं ने आइना दिखा दिया था. ऐसे ने विपक्षियों में बौखलाहट आना स्वाभाविक था. इस बौखलाहट से निपटते हुए मोदी जी के सामने उसी गुजरात मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करना था, जिसके सहारे वे लगातार गुजरात की राजनीति में अपना सिक्का जमाये हुए थे. भ्रष्टाचार-रिश्वतखोरी को दूर करना, कार्यप्रणाली को सही करना, जीवनशैली को सुचारू बनाना, हाशिये पर खड़े लोगों के हितार्थ काम करना, अल्पसंख्यकों के मन से नकारात्मकता को दूर करना, देश के चारित्रिक बदलाव की पहल करना आदि ऐसे काम थे जो सहजता से संपन्न होने वाले नहीं थे.


चुनौतियों के साथ काम करना संभवतः मोदी जी के साथ-साथ परछाईं की तरह लगा रहता है. राज्य की राजनीति में इसने कभी पीछा नहीं छोड़ा और राष्ट्रीय राजनीति में भी चुनौतियाँ साथ में आईं. उन्होंने इन चुनौतियों के साथ बड़ी ही सहजता से आगे बढ़ते हुए देश को नई ऊँचाइयों पर ले जाने का संकल्प लिया हुआ था. इसी संकल्प के जरिये वे संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा भारतीय विरासत योग को अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर स्थापित करने में सफल रहे. इसी तरह उन्होने देश के भीतर वर्षों से सुसुप्तावस्था में पड़े स्वच्छता विषय को जागृत किया. लाल किले से उनका स्वच्छता सम्बन्धी अभियान लगातार आगे बढ़ता नजर आ रहा है. मोदी जी की दृष्टि में जहाँ एक तरफ औद्योगिक विकास था वहीं आम जनमानस के विकास की बात भी वे करने में लगे थे. औद्योगिक घरानों को विशेष लाभ देने के आरोपों के बीच उन्होंने जनधन योजना के द्वारा समाज के हाशिये पर खड़े लोगों को देश की मुख्य विकासधारा से जोड़ने का काम किया. स्वच्छता को आधार बनाकर मोदी जी ने जिस तरह से शौचालय निर्माण का अभियान गाँव-गाँव तक पहुँचा दिया है वैसा विगत के वर्षों में देखने को कदापि नहीं मिला था. केंद्र सरकार ने उनके नेतृत्व में दिखाया कि वर्तमान सरकार जन-जन की सरकार है. जन-धन योजना, सामाजिक सुरक्षा बीमा योजना, अटल पेंशन योजना, उज्ज्वला योजना, बैंक खातों में सब्सिडी का आना, रसोई गैस की सब्सिडी का स्वेच्छा से त्याग करना आदि वे उदहारण हैं जो उनकी दूरगामी सोच को दर्शाते हैं. इन योजनाओं के पीछे का मूल उद्देश्य समाज में आदमी-आदमी के बीच के फर्क को कम करना, मिटाना रहा है. ऐसी योजनाओं के द्वारा सरकार ने आमजन को जोड़ने का काम किया, स्टार्टअप जैसे कार्यक्रम चलाकर देश के युवाओं को नई दिशा दी है, मेक इन इण्डिया के द्वारा विदेशी निवेशकों को आकर्षित किया है.


इसके बाद भी अभी चुनौतियाँ बहुत सारी हैं. तीन सालों में मोदी जी ने अभी जनमानस में विश्वास जमाया है. देश भर में फैली अव्यवस्था को दूर कर पाने में वे अभी सफल होते नहीं दिखे हैं. सबका साथ, सबका विकास के नारे को यदि वास्तविकता में लागू करना है तो मोदी जी को आमूलचूल परिवर्तन करने होंगे. ऐसे परिवर्तन करने की क्षमता उनमें है भी. ऐसा उन्होंने नोटबंदी करके दिखाया है, पाकिस्तान के प्रति कठोर रवैया अपनाकर प्रदर्शित किया है. इसके बाद भी उन्हें अभी और कड़े फैसले लेने की जरूरत है. कश्मीर समस्या, नक्सलवाद, कानून व्यवस्था, चिकित्सा, शिक्षा, कृषि, राजनैतिक वैमनष्यता आदि ऐसी स्थितियाँ हैं जिनसे पार पाने की जरूरत है. विगत तीन वर्षों में मोदी जी ने जिस तरह से अपने कार्यों को, अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाया है उससे उनकी मुस्लिम विरोधी छवि कम हुई है. अल्पसंख्यकों में भी विश्वास जगा है. इसी विश्वास के चलते ही मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक जैसे संवेदनशील विषय पर मोदी जी का साथ चाहा है. देखा जाये तो विगत के कई-कई वर्षों की अनियमितता ने देश में कार्यशैली को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है. लोगों की सोच को भी नकारात्मक बनाया है. किसी भी काम के पीछे राजनैतिक दलों का लामबंद होना समझ में आता है किन्तु आम जनमानस को समझना होगा कि उसके लिए क्या सही है, क्या गलत है. मोदी सरकार अभी भी जनमानस की समस्याओं को सुलझाने के साथ-साथ राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों से जूझने के साथ-साथ मीडिया के नकारात्मक प्रचार-प्रसार से भी दो-चार हो रही है. ऐसे में आने वाले दो साल मोदी सरकार के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण होंगे. उन्हें न केवल जनता की समस्याओं को दूर करना है वरन देश के भीतर बैठे देश-विरोधियों की हरकतों को भी बढ़ने से रोकना है.

30 अगस्त 2014

कामगार महिलाओं को मदद करेगी 'जन-धन योजना'



इक्कीसवीं सदी में भी जातिगत विभेद, जातिगत असमानता से जूझ रहे समाज में ‘अमीर-गरीब’ के रूप में एक तरह का वर्ग-विभेद स्पष्ट रूप से बनता जा रहा है. जातियों की उच्चता को दिए जा रहे सम्मान की भांति धनबल को भी सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा है, भले ही धनार्जन किसी भी रूप में ही क्यों न किया गया हो. ऐसे धनाड्य लोगों के सम्मान में उनकी जाति कभी बाधक नहीं बनती है. इसी तरह उपेक्षा का शिकार गरीबों को होना पड़ रहा है, भले ही वे किसी भी जाति-धर्म के क्यों न हों. इस आर्थिक असमानता को समाप्त करने के पुरजोर प्रयास लगातार सरकारों द्वारा किये जाते रहे हैं. कभी किसी योजना के द्वारा, कभी किसी आरक्षण के द्वारा किन्तु आर्थिक असमानता को समाप्त करना तो दूर, कम करने में भी सफलता नहीं मिली.
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा ‘सबका साथ, सबका विकास’ की दृष्टि के साथ आरम्भ की गई ‘प्रधानमंत्री जन-धन योजना’ को आर्थिक असमानता दूर करने के सन्दर्भ में देखा जा सकता है. बैंक खाता-रहित व्यक्ति को बैंक में खाता खोलने को प्रोत्साहित करना, उसके लिए जीवन-बीमा का, इंश्योरेंस का निर्धारण करने के साथ-साथ नियमित खाता सञ्चालन की स्थिति में ऋण, ओवरड्राफ्ट की सुविधा मिलना आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में एक कदम है. यहाँ ये मान बैठना कि किसी गरीब का बैंक खाता खुलते ही उसकी गरीबी दूर हो जाएगी, उसकी आर्थिक स्थिति संभाल जाएगी, इसकी गंभीरता को ख़तम करना ही होगा. इसके जो लाभ भविष्य में सामने आयेंगे वे तो हैं ही किन्तु वर्तमान में हमारे विचार से इस योजना से वे तमाम महिलाएं लाभान्वित हो सकेंगी जो छोटे-छोटे काम करके धनार्जन कर रही हैं किन्तु उनके पास बचत का कोई ठोस जरिया नहीं है. कई जगहों पर स्वयं सहायता समूह इस तरह के काम करते देखे गए हैं पर कई बार ये आपसी मतभेदों का शिकार होकर समाप्त होते भी देखे गए हैं. ऐसी महिलाएं अपनी मेहनत की कमाई को अपने शराबी पति-बेटे से बचा सकेंगी, जमा पूँजी के आधार पर बैंक से आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकेंगी. इसके अलावा मनरेगा मजदूरों को भुगतान में, किसानों को मंडियों में अपनी फसल बेचने के पश्चात् भुगतान में, तमाम ठेकेदारों के नियन्त्रण में काम कर रहे मजदूरों के भुगतान में, किसानों, श्रमिकों, मजदूरों, ग्रामीणों आदि को मिलने वाले मुआवजे में इस खाते की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी. इसके द्वारा दलालों, बिचौलियों आदि से इन लोगों के धन को बचाने में भी मदद मिलेगी.
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हालाँकि कुछ लोगों द्वारा इस योजना को लेकर संशय पैदा किया जा रहा है. ओवरड्राफ्ट, ऋण आदि की सुविधा पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं, लोगों में नियमित खाता सञ्चालन को लेकर उदासीनता की बात की जा रही है, हो सकता है कि इस तरह की कुछ गड़बड़ देखने को मिले किन्तु जिस अनुपात में इसके लाभ दिख रहे हैं, कामगार महिलाओं को आर्थिक समृद्ध होने का एक मंच मिल रहा है, उसे देखते हुए इस तरह के खतरे उठाने ही पड़ेंगे. देश की अर्थव्यवस्था में सभी वर्गों के योगदान के लिए, लोगों में बचत करने की मानसिकता विकसित करने के लिए, बैंकिंग तथा आमजन में आपसी तालमेल विकसित करने हेतु इस योजना का स्वागत किया जाना चाहिए और ऐसे खतरों को उठाकर आगे बढ़ने का हौसला भी पैदा करना चाहिए. 
चित्र गूगल छवियों से साभार