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01 जुलाई 2019

भगवान न सही मगर भगवान जैसा ही है डॉक्टर


आज, 01 जुलाई को डॉक्टर्स डे है, ऐसी जानकारी हुई. डॉक्टर, यह एक ऐसा शब्द है जिससे हमारा सम्बन्ध बचपन से ही रहा है. बचपन से इसलिए क्योंकि हमारे मामा-मामी चिकित्सा क्षेत्र से ही रहे हैं. मामी जनपद जालौन मुख्यालय उरई में स्थित जिला चिकित्सालय में कार्यरत थीं और मामा उरई में अपना क्लिनिक बनाये हुए थे. जिला चिकित्सालय, उरई के सरकारी आवास में उनका निवास हुआ करता था. इस निवास में लगभग रोज ही इस कारण जाना हुआ करता था क्योंकि उसी के बगल में बने राजकीय इंटर कॉलेज में हमारा पढ़ना हुआ करता था. इसके अलावा किसी न किसी कार्यक्रम में, किसी पारिवारिक आयोजन में अथवा पारिवारिक मुलाकातों के क्रम में वहाँ जाना हुआ करता था. इसी आने-जाने के कारण से बचपन से ही अनेक डॉक्टर्स से संपर्क बना रहा.


मामा-मामी के अलावा हॉस्पिटल से हमारा संपर्क होश संभालने से लेकर आज तक बना हुआ है. हमारा पैतृक गाँव और ननिहाल जनपद जालौन में ही है. यहाँ से बहुत से लोगों का चिकित्सकीय परामर्श हेतु उरई आना हुआ करता है. इसके अलावा शहर के भी बहुत से लोगों को मेडिकल सुविधा उपलब्ध करवाए जाने के कारण डॉक्टर्स से मिलना होता रहता है. बहुतायत में लोगों की सहायता के लिए और कभी-कभार खुद के लिए, अपने परिजनों के लिए हॉस्पिटल जाना होता रहता है. यदि कहा जाये कि अभी तक के जीवन का बहुत बड़ा भाग हॉस्पिटल में गुजरा है तो अतिश्योक्ति न होगी. लोगों की सहायता करने के, अपने और परिजनों के इलाज के सम्बन्ध में हॉस्पिटल, डॉक्टर्स से संपर्क बना रहने के अलावा अपने 'बिटोली' प्रोजेक्ट के कारण भी इस क्षेत्र से सम्बन्ध बना हुआ है. बिटोली अभियान के पहले संचालित कन्या भ्रूण हत्या निवारण सम्बन्धी कार्यक्रम में तो हम यहाँ की पीसीपीएनडीटी समिति के सदस्य भी रहे हैं. इससे भी लगातार डॉक्टर्स से संपर्क बना रहा. जिला चिकित्सालय के साथ-साथ निजी प्रैक्टिस करने वाले, अल्ट्रासाउंड वाले डॉक्टर्स से भी संपर्क बना रहा. बहुतों से संपर्क आज भी बना हुआ है. इन सबके अलावा हमारे मित्र, हमारे छोटे-बड़े भाई-बहिन भी चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े हुए हैं, जिनके चलते भी डॉक्टर्स लगातार संपर्क में हैं.

लगातार और नियमित संपर्क के चलते कहा जा सकता है कि इस क्षेत्र में अच्छे और बुरे दोनों तरह के डॉक्टर्स से सामना हुआ. आप सबका भी सामना ऐसे लोगों से होता होगा, हुआ भी होगा. बुरे स्वभाव के डॉक्टर्स का विरोध करने के बाद भी आवश्यकता होने पर हम सभी डॉक्टर्स के पास ही जाते हैं. इन्सान के एक उम्र को पार करने के बाद डॉक्टर्स जैसे उसके लिए अनिवार्य हो जाता है. ऐसे में अच्छा-बुरा जानने के बाद भी हम सभी डॉक्टर्स के पास जाने को मजबूर होते हैं. यहाँ एक बाद ध्यान रखने वाली होती है कि डॉक्टर्स भी इन्सान हैं. मानवीय कमियाँ उनमें भी विद्यमान रहती हैं, भले ही उनके धरती पर भगवान का स्थान दिया जाता हो. उनकी तमाम कमियों के बाद भी समाज को स्वस्थ रखने का काम उन्हीं डॉक्टर्स के द्वारा किया जा रहा है. न सही बुरे स्वभाव के डॉक्टर्स के लिए वरन अच्छे स्वभाव के डॉक्टर्स के लिए हम सभी मंगल कामना तो कर ही सकते हैं.

भगवान न करे कि अभी किसी को शारीरिक कष्ट का सामना करना पड़े मगर यदि ऐसा होता है तो मददगार सिर्फ डॉक्टर्स ही होते हैं. इस बात को ध्यान में रखते हुए उनके प्रति भी वही कोमल भावनाएँ बनाये रखनी चाहिए जो हम अपने किसी निकट परिचित के लिए, आत्मीय परिजन के लिए, घनिष्ट सहयोगी के लिए, अभिन्न मित्र के लिए बनाये रखते हैं.