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08 मार्च 2024

आठ मार्च महिला दिवस पर विचार करिए

आज है अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस और चारों तरफ कार्यक्रमों की औपचारिकता का निर्वहन दिखाई दे रहा है. जगह-जगह संगोष्ठियों, सभाओं, भाषणों, रैलियों आदि की औपचारिकता निभाई जाने लगी है. सरकारी संगठनों के साथ-साथ उन स्वयंसेवी संगठनों की मजबूरी भी है जो महिला-सशक्तीकरण के लिए कार्य कर रहे हैं कि वे इस दिन पर कार्यक्रम करें, सिर्फ करें ही नहीं अवश्य ही करें. यदि भाषणों, रैलियों, कार्यक्रमों से ही विकास होना सम्भव होता तो हमारा मानना है कि सबसे अधिक विकास हम भारतवासियों ने ही किया होता. आये दिन की भाषणबाजियों और सभाओं के बाद भी विकास वहीं का वहीं है, नारियों की स्थिति वहीं की वहीं है, कन्या भ्रूण हत्या की स्थिति वहीं की वहीं है, स्त्री-पुरुष लिंगानुपात वहीं का वहीं है. केवल भाषणों से नारी की स्थिति को सुधारा नहीं जा सकता है, यह चाहे पुरुषों द्वारा किया जा रहा हो या फिर खुद महिलाओं द्वारा.




कुछ बिन्दु ऐसे है जिन पर बिना किसी पूर्वाग्रह के विचार अवश्य होना चाहिए.


वंश-वृद्धि की लालसा में पुत्र प्राप्ति की चाह रखने वाले बतायें कि क्या जवाहरलाल नेहरू का वंश किसी लड़के के कारण चल रहा है?

स्वामी विवेकानन्द, शहीद भगत सिंह, रानी लक्ष्मीबाई, चन्द्रशेखर आजाद आदि अनेक महापुरुषों का नाम किस लड़के के कारण चल रहा है?

बेटे की चाह में लड़की को मारने वाले अपने लड़के के विवाह के लिए लड़का कहाँ से लायेंगे?

इसी प्रकार से स्त्री-पुरुष लिंगानुपात कम होता रहा तो आने वाले समय में होने वाली स्त्री हिंसा की भयावहता को कौन रोकेगा?

बराबर का दर्जा सिद्ध करती स्त्री आने वाले समय में कम संख्या के कारण अपनी खरीद-बिक्री को कैसे रोक सकेगी? (आज भी कई घटनायें इस तरह की प्रकाश में आईं हैं जहाँ कि परिवारों में पुरुष स्त्रियों को खरीद कर ला रहे है)

लड़कियों की लगातार गिरती संख्या से क्या समाज में अनाचार की और विकट स्थिति पैदा होने वाली नहीं है?


सवाल बहुत हैं पर जवाब.......???


जवाब हमें ही देना होगा, मात्र किसी दिवस की औपचारिकता को पूरा करने के लिए ही आवाज उठाना और फिर शान्त हो जाना नैतिक नहीं है. समाज के सभी वर्गों को प्रयास करने होंगे, एकसाथ करने होंगे. पुरुष-स्त्री को आपसी विभेद को दूर करना होगा. क्या आधुनिकता का, ज्ञान का, अहम का रंग अपने ऊपर चढ़ा चुके स्त्री और पुरुष (दोनों को विचारना होगा) इस बात को समझेंगे?





 

08 जनवरी 2021

अभिभावक जाग जाये तो विद्यार्थी स्वतः ही जाग जायेगा

इन दिनों बिटिया रानी के टेस्ट चल रहे हैं. पढ़ाई की तरह टेस्ट भी ऑनलाइन हो रहे हैं. इससे पहले छमाही परीक्षा भी ऑनलाइन ही हुई थी. वैसे यदि ऑनलाइन न कह कर उस परीक्षा और इस टेस्ट को वर्क फ्रॉम होम जैसी स्थिति कहें तो ज्यादा अच्छा होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि इन दोनों परीक्षाओं के लिए स्कूल से कॉपी मिल गईं थीं. सम्बंधित विषय के पेपर वाले दिन ऑनलाइन पेपर आ जाता स्कूल की वेबसाइट पर या फिर व्हाट्सएप्प ग्रुप पर. पेपर आता ठीक उसी समय जो समय पेपर शुरू होने का होता. विद्यार्थी समय के भीतर पेपर करे, इसका ध्यान अभिभावक को तो रखना ही होता, साथ ही स्कूल से एक व्यवस्था की गई थी, जिसके कारण निर्धारित समय के बाद कोई विद्यार्थी पेपर नहीं कर सकता था.


निश्चित समयावधि में अपना पेपर करने के बाद अगले दस-पंद्रह मिनट में सभी विद्यार्थियों को अपनी उत्तर-पुस्तिका की फोटो खींच उसकी पीडीएफ बनाकर सम्बंधित विषय के अध्यापक को भेजनी होती है. इसके लिए भी एक समय निर्धारित किया गया है. इसके बाद आने वाली उत्तर-पुस्तिकाओं को स्वीकार नहीं किया जाता है. इससे जब विद्यार्थियों द्वारा स्कूल में अपनी सभी विषयों की उत्तर-पुस्तिकाएँ जमा की जायेंगीं तो उनके द्वारा भेजी गई पीडीएफ से उसका मिलान करके आसानी से पता लगा लिया जायेगा कि बच्चों ने समय के बाद तो पेपर नहीं किया है. ऐसी परीक्षा में नक़ल किये जाने की पूरी सम्भावना होती है क्योंकि स्कूल द्वारा किसी भी तरह से कैमरे वाली व्यवस्था न करते हुए अभिभावकों को ही निरीक्षक की भूमिका में बनाया हुआ था. ऐसे में अभिभावकों पर निर्भर करता था कि वे बच्चों से किस तरह की अपेक्षा रखते हैं.  




हम भी निश्चित समय पर पेपर निकाल कर बिटिया रानी को देकर अपनी भूमिका में आ जाते. शिक्षा विभाग से जुड़े होने के कारण हमें स्वयं में ही एक तरह की पारदर्शिता, ईमानदारी बरतनी थी, अपनी बेटी के सामने एक आदर्श उपस्थित करना था. इसे संयोग कहा जाये या फिर पारिवारिक माहौल, न तो बिटिया ने किसी दिन कुछ पूछा और न ही परिवार में किसी ने किसी भी तरह से मदद करने की सोची. छमाही परीक्षाओं की कॉपी की पीडीएफ बनाते समय एक दिन देखा कि एक कॉपी में कुछ सवालों के जवाब छूटे हुए हैं. हमने उसी समय बिटिया से पूछा कि ये सवाल क्यों नहीं किये? उसने सहज भाव से जवाब दिया कि आये नहीं. उसके इस जवाब के मिलते ही अगले पल विचार किया कि हम सभी परिजन तो अपनी ईमानदारी भरी भूमिका निभा रहे हैं, एक बार बिटिया रानी के मन की थाह भी ले ली जाये. उससे कहा कि अरे, अपनी किताब से या नोट-बुक से देख लेती इनके जवाब. बिना एक पल की देरी किये उसने जवाब दिया कि पापा, ये तो चीटिंग हो जाती और चीटिंग करना बुरी बात है. उसके जवाब को सुनकर लगा कि अभी तक संस्कार, शिक्षा गलत दिशा में नहीं ले जा रहे उसे.


नंबर रेस में शामिल होने के लिए कभी भी उस पर दवाब नहीं बनाया. पढ़ने का अनावश्यक बोझ भी कभी नहीं डाला गया. नैसर्गिक रूप से उसके विकास के प्रति हमेशा सजगता दिखाई. ऐसे में नक़ल के प्रति उसकी मनोभावना देखकर ख़ुशी के साथ गर्व भी महसूस हुआ. उच्च शिक्षा क्षेत्र से जुड़े होने के कारण प्रतिवर्ष अभिभावकों को ही अपने बच्चों को अधिक से अधिक अंक दिलवाने के लिए परेशान होते देखते हैं. कभी प्रैक्टिकल के नाम पर, कभी कॉपी जाँचने के समय सिफारिश के साथ लगातार भटकने की स्थिति देखकर लगता है कि हम अभिभावक ही अपनी आने वाली पीढ़ी को बर्बाद करने में लगे हुए हैं. एक बार अभिभावक ही जाग जाये तो विद्यार्थी स्वतः ही जाग जायेगा, सजग, सतर्क हो जायेगा.


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वंदेमातरम्