इन दिनों बिटिया रानी के टेस्ट चल रहे हैं. पढ़ाई की तरह टेस्ट भी ऑनलाइन हो रहे हैं. इससे पहले छमाही परीक्षा भी ऑनलाइन ही हुई थी. वैसे यदि ऑनलाइन न कह कर उस परीक्षा और इस टेस्ट को वर्क फ्रॉम होम जैसी स्थिति कहें तो ज्यादा अच्छा होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि इन दोनों परीक्षाओं के लिए स्कूल से कॉपी मिल गईं थीं. सम्बंधित विषय के पेपर वाले दिन ऑनलाइन पेपर आ जाता स्कूल की वेबसाइट पर या फिर व्हाट्सएप्प ग्रुप पर. पेपर आता ठीक उसी समय जो समय पेपर शुरू होने का होता. विद्यार्थी समय के भीतर पेपर करे, इसका ध्यान अभिभावक को तो रखना ही होता, साथ ही स्कूल से एक व्यवस्था की गई थी, जिसके कारण निर्धारित समय के बाद कोई विद्यार्थी पेपर नहीं कर सकता था.
निश्चित समयावधि में अपना पेपर करने के बाद अगले दस-पंद्रह मिनट में सभी विद्यार्थियों को अपनी उत्तर-पुस्तिका की फोटो खींच उसकी पीडीएफ बनाकर सम्बंधित विषय के अध्यापक को भेजनी होती है. इसके लिए भी एक समय निर्धारित किया गया है. इसके बाद आने वाली उत्तर-पुस्तिकाओं को स्वीकार नहीं किया जाता है. इससे जब विद्यार्थियों द्वारा स्कूल में अपनी सभी विषयों की उत्तर-पुस्तिकाएँ जमा की जायेंगीं तो उनके द्वारा भेजी गई पीडीएफ से उसका मिलान करके आसानी से पता लगा लिया जायेगा कि बच्चों ने समय के बाद तो पेपर नहीं किया है. ऐसी परीक्षा में नक़ल किये जाने की पूरी सम्भावना होती है क्योंकि स्कूल द्वारा किसी भी तरह से कैमरे वाली व्यवस्था न करते हुए अभिभावकों को ही निरीक्षक की भूमिका में बनाया हुआ था. ऐसे में अभिभावकों पर निर्भर करता था कि वे बच्चों से किस तरह की अपेक्षा रखते हैं.
हम भी निश्चित समय पर पेपर निकाल कर बिटिया रानी को देकर अपनी भूमिका में आ जाते. शिक्षा विभाग से जुड़े होने के कारण हमें स्वयं में ही एक तरह की पारदर्शिता, ईमानदारी बरतनी थी, अपनी बेटी के सामने एक आदर्श उपस्थित करना था. इसे संयोग कहा जाये या फिर पारिवारिक माहौल, न तो बिटिया ने किसी दिन कुछ पूछा और न ही परिवार में किसी ने किसी भी तरह से मदद करने की सोची. छमाही परीक्षाओं की कॉपी की पीडीएफ बनाते समय एक दिन देखा कि एक कॉपी में कुछ सवालों के जवाब छूटे हुए हैं. हमने उसी समय बिटिया से पूछा कि ये सवाल क्यों नहीं किये? उसने सहज भाव से जवाब दिया कि आये नहीं. उसके इस जवाब के मिलते ही अगले पल विचार किया कि हम सभी परिजन तो अपनी ईमानदारी भरी भूमिका निभा रहे हैं, एक बार बिटिया रानी के मन की थाह भी ले ली जाये. उससे कहा कि अरे, अपनी किताब से या नोट-बुक से देख लेती इनके जवाब. बिना एक पल की देरी किये उसने जवाब दिया कि पापा, ये तो चीटिंग हो जाती और चीटिंग करना बुरी बात है. उसके जवाब को सुनकर लगा कि अभी तक संस्कार, शिक्षा गलत दिशा में नहीं ले जा रहे उसे.
नंबर रेस में शामिल होने के लिए कभी भी उस पर दवाब नहीं बनाया. पढ़ने का अनावश्यक बोझ भी कभी नहीं डाला गया. नैसर्गिक रूप से उसके विकास के प्रति हमेशा सजगता दिखाई. ऐसे में नक़ल के प्रति उसकी मनोभावना देखकर ख़ुशी के साथ गर्व भी महसूस हुआ. उच्च शिक्षा क्षेत्र से जुड़े होने के कारण प्रतिवर्ष अभिभावकों को ही अपने बच्चों को अधिक से अधिक अंक दिलवाने के लिए परेशान होते देखते हैं. कभी प्रैक्टिकल के नाम पर, कभी कॉपी जाँचने के समय सिफारिश के साथ लगातार भटकने की स्थिति देखकर लगता है कि हम अभिभावक ही अपनी आने वाली पीढ़ी को बर्बाद करने में लगे हुए हैं. एक बार अभिभावक ही जाग जाये तो विद्यार्थी स्वतः ही जाग जायेगा, सजग, सतर्क हो जायेगा.
101% सही कहा गुरुजी
जवाब देंहटाएंक्योंकि बच्चे को सबसे पहले शिक्षा मां और पिता से ही मिलती है