08 जुलाई 2024

नरेन्द्र मोदी की रूस यात्रा के निहितार्थ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को अपनी दो दिवसीय यात्रा पर रूस पहुँचे. यहाँ वे रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ भारत-रूस द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे. तीसरे कार्यकाल की उनकी यह पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा है. ऐसे समय में जबकि नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री के रूप में तीसरा कार्यकाल है; रूस-यूक्रेन युद्ध लम्बे समय से बेनतीजा चल रहा है; रूस और चीन के बीच सम्बन्ध दोस्ताना दिख रहे हैं, यह यात्रा महत्त्वपूर्ण हो जाती है. यह यात्रा उनकी पिछली परम्परा से हटकर है, इसलिए भी उनकी इस यात्रा को अलग नजरिये से देखा जा रहा है. नरेन्द्र मोदी ने पूर्व के दोनों कार्यकालों में पहली द्विपक्षीय यात्रा में पडोसी देशों को महत्त्व दिया था. पहले और दूसरे कार्यकाल में उनकी यात्रा क्रमशः भूटान और मालदीव की हुई थी. ऐसे में इस बार उनका पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा के लिए रूस जाना कूटनीतिक, व्यापारिक, सामरिक केन्द्र में है.

 

रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते भी मोदी की रूस यात्रा महत्त्वपूर्ण है. मोदी ने वर्ष 2022 में उज्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में पुतिन संग द्विपक्षीय वार्ता के दौरान यूक्रेन से युद्ध समाप्त करने को कहा था. पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के साथ मोदी ने कई बार टेलीफोन पर बातचीत करते हुए युद्ध समाप्ति हेतु कूटनीतिक दबाव बनाना जारी रखा है. चूँकि इस बार भारत शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के कजाकिस्तान शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं हुआ. रक्षा मामलों के विशेषज्ञों की राय है कि भारत इस उम्मीद के साथ एससीओ में शामिल हुआ था कि उसका प्रभाव मध्य एशिया में बढ़ेगा किन्तु इसमें चीन के बढ़ते हस्तक्षेप के कारण ऐसा नहीं हो सका. इसके अलावा पाकिस्तान भी अब एससीओ का सदस्य है. ऐसे में चीन के बढ़ते प्रभाव और हस्तक्षेप के कारण भारत को अपनी स्थिति महत्त्वपूर्ण न लगी होगी. विशेष बात ये है कि रूस और चीन इस संगठन के सदस्य हैं. ऐसे में इस रूस यात्रा में सम्भव है कि मोदी द्वारा चीन के बढ़ते प्रभावों का मुद्दा भी उठाया जाये.

 



रूस भारत का सबसे पुराना और भरोसेमंद मित्र, सहयोगी है. रूस के द्वारा अनेक मुश्किल पलों में भारत का साथ दिया गया. आज भी भारत के साथ उसके गहरे व्यापारिक सम्बन्ध हैं. दोनों देशों में लम्बे समय से रणनीतिक साझेदारी के अन्तर्गत रक्षा, अंतरिक्ष और आर्थिक समझौतों पर सहमति है. भारत द्वारा भी रूस के साथ अपनी मित्रता और भरोसे को बनाये रखा गया है. रूस पर लगे प्रतिबंधों के बावजूद भारत-रूस का आयात-निर्यात सम्बन्ध बना हुआ है. भारत से निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में फार्मास्यूटिकल्स, कार्बनिक रसायन, विद्युत मशीनरी और यांत्रिक उपकरण, लोहा और इस्पात शामिल हैं जबकि रूस से आयात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में तेल और पेट्रोलियम उत्पाद, उर्वरक, खनिज संसाधन, कीमती पत्थर और धातु, वनस्पति तेल आदि शामिल हैं. व्यापारिक संबंधों की महत्ता को वाणिज्य विभाग के आँकड़ों से समझा जा सकता है. उसके अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 65.70 बिलियन डॉलर में भारत का निर्यात 4.26 बिलियन डॉलर और आयात 61.44 बिलियन डॉलर रहा जो अपने सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया है.

 

व्यापारिक महत्त्व के रूप में अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) भी प्रमुख है. भारत और रूस दोनों के लिए यह सम्पर्क मार्ग अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह गलियारा माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्गों का 7200 किमी लंबा मल्टी-मोड नेटवर्क है. भारत, ईरान और रूस ने इससे सम्बंधित समझौते पर हस्ताक्षर किए थे ताकि ईरान और सेंट पीटर्सबर्ग के माध्यम से हिन्द महासागर और फारस की खाड़ी को कैस्पियन सागर से जोड़ने वाला सबसे छोटा परिवहन मार्ग प्रदान करने के लिए एक गलियारा बनाया जा सके. हाल ही में रूस ने पहली बार इसके द्वारा भारत को कोयला ले जाने वाली दो ट्रेनें भेजी हैं. यद्यपि यह मार्ग अभी पूर्ण रूप से शुरू नहीं हुआ है तथापि जब यह मार्ग पूरी तरह चालू हो जाएगा तो भारत और रूस के बीच व्यापारिक गतिविधियाँ तेज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.

 

पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा रूस पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने का उद्देश्य रूस को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अकेला करना था मगर भारत ने रूस का साथ देते हुए कहा कि पश्चिमी देशों द्वारा रूस के साथ किये जा रहे सौतेले व्यवहार के पक्ष में भारत नहीं है. ऐसे में भारत ने रूस के साथ व्यापारिक सम्बन्धों के साथ-साथ सामरिक सम्बन्धों को भी बनाये रखा. सामरिक महत्त्व में भारत द्वारा रूस से एस-400 मिसाइलों की खरीदारी महत्त्वपूर्ण विषय है. टी-90 टैंक, एसयू 30, एके 203 राइफलें भी भारत में ही संयुक्त उत्पादन में निर्मित हो रही हैं. इस तरह के रक्षा सम्बन्धों के साथ-साथ सहयोगात्मक विदेश नीति के कारण भारत-रूस सम्बन्धों का वैश्विक दृष्टि से व्यापक प्रभाव है.

 

विगत कुछ समय से वैश्विक स्तर पर युद्ध की स्थितियाँ चारों तरफ बनती दिखाई देने लगी हैं. बहुसंख्यक देशों के बीच तनाव भी नजर आ रहा है. ऐसे में वैश्विक व्यवस्था को अमेरिका, चीन, पश्चिमी देशों की अनावश्यक अराजकता, आक्रामकता, विस्तारवाद जैसी स्थितियों से बचाने के लिए शक्ति संतुलन की आवश्यकता है. नरेन्द्र मोदी सम्बन्धों को प्रगाढ़ बनाते हुए भारतीय सम्बन्धों को पश्चिमी देशों, यूरोपीय देशों सहित अमेरिका के साथ संतुलन बनाये रखने हेतु लगातार प्रयासरत हैं. निश्चित ही रूस की इस यात्रा से भारत के साथ-साथ सकल विश्व को भी सकारात्मक सन्देश प्राप्त होगा.


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