बुन्देलखण्ड
क्षेत्र के कण-कण में ऐतिहासिकता, सांस्कृतिकता, पौराणिकता, दिव्यता, भव्यता
समाहित है. झाँसी के गणेश बाजार स्थित महाराष्ट्र गणेश मंदिर में भी इनका समावेश
देखने को मिलता है. भगवान गणेश को समर्पित इस मंदिर का अपना ही ऐतिहासिक महत्त्व
है. इसी मंदिर में सन 1842 में झाँसी के राजा गंगाधर राव का
विवाह रानी लक्ष्मीबाई के साथ संपन्न हुआ था. उस समय रानी लक्ष्मीबाई को
मणिकर्णिका के नाम से जाना जाता था. विवाह पश्चात् औपचारिक रूप से उन्हें
लक्ष्मीबाई नाम दिया गया. यह मंदिर झाँसी किले के प्रवेश द्वार पर स्थित है. इस
कारण इसे किले का, निवासियों का, शहर का रक्षक माना जाता है.
इस
मंदिर की वास्तुकला के आधार पर लगाया जाता है कि इसका निर्माण सन 1764 के आसपास हुआ होगा. सन 1857 की क्रांति में रानी
लक्ष्मीबाई से बदला लेने के लिए अंग्रेजों ने इस मंदिर को भी ध्वस्त करने का
प्रयास किया किन्तु वे इसमें पूरी तरह से सफल न हो सके. इसके बाद भी उन्होंने
मंदिर के एक बहुत बड़े भाग को नष्ट कर दिया था. ऐसा बताया जाता है कि कतिपय आर्थिक
कारणों से मंदिर को गिरवी रखना पड़ा था. बाद में तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर गोविन्द
आत्माराव ढवले के प्रयासों से सन 1917 में इस मंदिर को मुक्त
करवाया गया. उसी के बाद इसकी देखरेख के लिए महाराष्ट्र गणेश मंदिर समिति की
स्थापना 22 नवम्बर 1917 को की गई.
सार्वजनिक प्रयासों और सहायता से मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया और इसकी अनाधिकृत
रूप से कब्जाई संपत्ति को वापस लिए गया. दस साल बाद 05 अगस्त
1927 को महाराष्ट्र गणेश समिति को नियमानुसार पंजीकृत करवाया
गया. इस सम्बन्ध में एक शिलालेख वहाँ स्थित है.
इस
मंदिर के प्रांगण में भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा के साथ-साथ रिद्धि एवं सिद्धि की
भी प्रतिमाएँ स्थापित हैं. मराठी समुदाय के अलावा आमजनमानस में भी इस मंदिर के
प्रति आस्था है. राजा और रानी दोनों के मराठी होने के कारण इस मंदिर को महाराष्ट्र
गणेश मंदिर के नाम से जाना गया, आज भी यह मंदिर इसी नाम से आम नागरिकों में जाना जाता
है.
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मंदिर का अंदरूनी हिस्सा |
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रिद्धि, सिद्धि संग विराजे श्रीगणेश |
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मंदिर प्रांगण |
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प्रवेश द्वार |
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एक प्रवेश द्वार ये भी |
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