05 अगस्त 2025

फटकार के बाद भी नहीं रुकेंगे विवादित बोल

सर्वोच्च अदालत ने एक बार फिर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को उनकी टिप्पणी के लिए फटकार लगाई है. राहुल गांधी द्वारा भारत-चीन सेनाओं के बीच हुई झड़प को लेकर टिप्पणी की गई थी कि चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों को पीट रहे हैं. इस बयान पर बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन के पूर्व निदेशक उदय शंकर श्रीवास्तव ने राहुल गांधी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का केस दर्ज करवाया था. इस मामले में हो रही सुनवाई पर न्यायालय ने कहा कि एक भारतीय विश्व में सबसे वीर भारतीय सेना के विषय में ऐसा कैसे कह सकता है कि वो चीन से पिट रही है. राहुल गांधी के साथ इस तरह की घटना तीसरी बार हुई है जबकि उनको न्यायालय से फटकार मिली है. चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों को पीट रहे हैं के बयान के साथ-साथ उनको इस बात के लिए भी फटकारा गया है कि चीन ने भारत की दो हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर रखा है. इस बयान पर अदालत ने उनसे सवाल किया कि आखिर उन्हें यह कैसे पता चला कि चीन ने भारत की जमीन पर कब्जा कर लिया है?

 

राहुल गांधी के द्वारा इस तरह का विवादित बयान पहली बार नहीं दिया गया है. पिछली लम्बी समयावधि में उनके द्वारा दिए गए अनेकानेक बयानों को देखकर लगता है कि इस तरह की बयानबाज़ी करना जैसे उनकी आदत बन चुका है. स्मरण रहे कि इससे पहले एक मामले में उनको सजा भी सुनाई गई थी जिसके चलते राहुल गांधी को लोकसभा की सदस्यता भी गँवानी पड़ी थी. राहुल गांधी ने अप्रैल 2019 कर्नाटक में एक चुनावी रैली में कहा था कि ललित मोदी, नीरव मोदी, नरेन्द्र मोदी का सरनेम कॉमन क्यों है? सारे चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है? इस बयान पर समूचे मोदी समुदाय को बदनाम करने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ भाजपा नेता पूर्णेश मोदी ने आपराधिक मानहानि का केस दर्ज कराया था. इसी मामले में राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई गई थी, जिसके चलते उनको लोकसभा की सदस्यता छोड़नी पड़ी थी. इसी तरह नवम्बर 2022 में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान इस बयान पर कि सावरकर ने अंग्रेजों को माफीनामा लिखकर महात्‍मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को धोखा दिया था, राहुल गांधी को वीर सावरकर के खिलाफ आपत्तिजनक बयानबाजी करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की फटकार सुननी पड़ी थी.

 



अपनी बयानबाज़ी के कारण, विवादित बोलों के कारण राहुल गांधी को लगातार न्यायालयों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं, सर्वोच्च न्यायालय से डाँट भी खानी पड़ रही है, इसके बाद भी उनके विवादित बयान देने सम्बन्धी आदत में किसी तरह की कमी नहीं आई है. राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद में कथित दलाली को लेकर की गई गलतबयानी के कारण उनको सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा देकर माफी माँगनी पड़ी थी. राहुल गांधी को समझना चाहिए कि वे वर्तमान में लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं और ऐसे में उनका दायित्व बनता है कि वे जनहित मामलों पर, सरकार की गलत नीतियों पर अपनी बात को संसद में खुलकर रखें. बजाय ऐसा करने के उनके द्वारा कभी संसद के भीतर, कभी संसद के बाहर तो कभी सोशल मीडिया पर अनावश्यक टिप्पणी की जाती है. उनके ऐसा करने में वे दलगत विचारधारा का विरोध करते-करते देश का विरोध करने लगते हैं. अपनी इस बयानबाज़ी में वे सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ खुलकर बोलने की बजाय प्रधानमंत्री के लिए भद्दी, अपमानजनक भाषा-शैली का प्रयोग करने लगते हैं.

 

भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस और उसके वरिष्ठ नेताओं द्वारा राहुल गांधी को एक परिपक्व नेता के रूप में, जिम्मेदार पदाधिकारी के रूप में प्रतिष्ठित किया जाने लगा था. इसके पीछे की रणनीति उनको प्रधानमंत्री पद के लिए स्वीकार्य बनाना, नरेन्द्र मोदी के सापेक्ष स्थापित करना रहा है. उनके विवादित बयानों के बाद दर्ज मामलों, न्यायालयों के रुख, सर्वोच्च न्यायालय की फटकारों के शुरूआती मामलों के बाद ऐसा समझा गया था कि राहुल गांधी अब सँभलकर बयानबाज़ी करेंगे मगर उनके विवादित बोलों को देखकर लगता है कि उन पर अदालतों के बर्ताव का कोई असर नहीं हुआ है. ऐसी स्थिति में अब यह सम्भावना कम ही है कि सर्वोच्च न्यायालय की वर्तमान फटकार के बाद राहुल गांधी भविष्य में राष्ट्रीय हितों पर बात करना पसंद करेंगे, विवादित बोलों से बचने की कोशिश करेंगे. ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि विगत कई वर्षों के उनके व्यवहार, बर्ताव, भाषा-शैली को देखकर लगता है कि वे अभी भी राजशाही मानसिकता से ग्रसित हैं. उनके द्वारा भले ही अपने भाषण में कहा गया हो कि वे राजा नहीं बनना चाहते, इस तरह की शब्दावली को पसंद नहीं करते मगर उनकी भाषा-शैली, हाव-भाव, बयानबाज़ी किसी भी रूप में राजशाही अंदाज से कम नहीं.

 

पाकिस्तान और चीन को पसंद आने वाले बयान देना, ऑपरेशन सिन्दूर पर सवाल उठाना, डोकलाम विवाद के समय चीनी राजदूत से मिलना, ब्रिटेन और अमेरिका में भारतीय लोकतंत्र का अनादर करना, लोकसभा में चुनाव आयोग पर आरोप लगाते हुए उसे धमकी देना, अमेरिकी राष्ट्रपति के बयानों का समर्थन करते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था को मृत बताना आदि ऐसे मामले हैं जो राहुल गांधी के बयानों की दशा-दिशा निर्धारित करते हैं. अब जबकि सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बाद प्रियंका गांधी सहित उनके अनेक समर्थकों द्वारा न्यायालय की टिप्पणी को निशाना बनाया जा रहा है तब लगता नहीं कि राहुल गांधी के बर्ताव, विशेष रूप से उनकी भाषा-शैली में किसी तरह का बदलाव होगा. संभवतः उन्होंने अपना मन बना रखा है कि वे राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध, प्रधानमंत्री के विरुद्ध विवादित बयानबाज़ी करते ही रहेंगे, इसके लिए भले ही उन पर कानूनी कार्यवाही होती रहे, भले ही न्यायालय से फटकार लगती रहे.

 


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