ऑपरेशन सिन्दूर
पर संसद में क्या चर्चा हुई, क्या
बहस हुई इसे न देखा और न ही सुना क्योंकि पिछले सप्ताह की हरकतें देखकर समझ आ गया था
कि चर्चा तो बस एक बहाना है, असल
में लाइव टीवी के माध्यम से विपक्ष को अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं को,
अपने समर्थकों को ये दिखाना है कि उनका
प्रतिनिधि कितने चिल्ला-चिल्ला के संसद में बहस कर लेता है. ऑपरेशन सिन्दूर,
जो लगभग साफ़-साफ़ तस्वीर दिखा रहा है,
उसके लिए बहस-चर्चा करने वाले विपक्ष ने
कभी भी कुछ विषयों पर खुली बहस-चर्चा करने की हिम्मत नहीं जुटाई.
==>>
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु से
सम्बंधित कई-कई आयोगों के बनाये जाने के बाद भी आज के विपक्ष ने संसद में इसकी चर्चा
करवाने की हिम्मत न जुटाई.
==>>
देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर
शास्त्री की विदेश में मृत्यु होना आज तक संदेहास्पद है मगर इस पर संसद में चर्चा करवाने
के लिए आज के विपक्ष ने कभी जोर न लगाया.
==>>
देश की एक और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी
की हत्या उनके ही आवास पर, उनके
ही सुरक्षा गार्डों द्वारा कर दी गई. सुरक्षा की दृष्टि से आजतक की सबसे बड़ी चूक पर
कांग्रेस ने, आज के विपक्ष ने कभी
संसद में बहस करवाने के बारे में विचार नहीं किया.
==>>
देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी
की हत्या होना भी सुरक्षा एजेंसियों की बड़ी चूक कही जाएगी मगर इस पर कांग्रेस या आज
के विपक्ष ने कभी संसद में चर्चा करवाए जाने पर संसद की कार्यवाही को बाधित नहीं किया.
क्या कभी इन घटनाओं
पर विचार किया जायेगा? क्या इनके
लिए संसद में बहस की कोई गुंजाइश नहीं? क्या आज के विपक्ष की जिम्मेवारी नहीं बनती कि वो इन घटनाओं की सत्यता को देश की
जनता के सामने संसद के माध्यम से लाये? आज का विपक्ष भी कभी सरकार में था. इन घटनाओं से मुँह मोड़ लेने से और सिर्फ शोर
मचाने की मानसिकता से संसद की कार्यवाही को बाधित कर देने से वे लोग अपनी जवाबदेही
से नहीं बच सकते.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें