03 दिसम्बर का आना हुआ और शासन-प्रशासन की तरफ से सभी जगह दिव्यांगजनों के लिए
अंतरराष्ट्रीय विकलांग (दिव्यांग) दिवस को मनाया गया. इस दिवस को लेकर वैसी
चहल-पहल नहीं दिखती जैसी कि अन्य दिवसों को लेकर दिखाई पड़ती है. अभी 01 दिसम्बर को
ही एड्स दिवस पर जागरूकता के लिए रैलियाँ निकाली गईं, कई जगह गोष्ठियाँ, प्रदर्शनियाँ
आयोजित की गईं थीं वैसा कुछ आज देखने को नहीं मिला. इसके पीछे एक मुख्य वजह जो
हमें समझ आती है वो यह कि विकलांगता को लेकर समाज में अभी भी एक तरह की दया का भाव
बना हुआ है. यदि इस दया के भाव को समाज के साथ-साथ पारिवारिक रूप में, सहयोगियों में, मित्रों में भी उपस्थित माना जाये
तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. ऐसा हम स्वयं व्यक्तिगत रूप से अनुभव करते हैं.
बहरहाल, वर्ष 1976 में
संयुक्त राष्ट्र आम सभा द्वारा निर्णय लिया गया कि सन 1981 को विकलांगजनों के अंतरराष्ट्रीय
वर्ष के रुप में मनाया जायेगा. इस दिवस का आरम्भ भले ही वर्ष 1981 से कर दिया गया हो
मगर सन 1992 से संयुक्त राष्ट्र के द्वारा इसे अंतरराष्ट्रीय रीति-रिवीज़ के रुप में
प्रचारित किया जा रहा है. इस दिवस के मनाये जाने का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय,
राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर दिव्यांगजनों
के लिये पुनरुद्धार, रोकथाम,
प्रचार और बराबरी के मौकों पर जोर देने
के लिये योजना बनाना है. विकलांगों के प्रति सामाजिक कलंक को मिटाने और उनके जीवन के
तौर-तरीकों को और बेहतर बनाने के लिये उनके वास्तविक जीवन में बहुत सारी सहायता को
लागू करने के द्वारा तथा उनको बढ़ावा देने के लिये साथ ही विकलांग लोगों के बारे में
जागरुकता को बढ़ावा देने के लिये इसे सालाना मनाने के लिये इस दिन को खास महत्व दिया
जाता है. इसके बाद से ही सन 1992 से इसे पूरी दुनिया में हर साल से लगातार मनाया जा
रहा है.
इस दिवस को मनाये जाने के बाद भी, देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विकलांग शब्द को दिव्यांग में
परिवर्तित कर देने के बाद भी ऐसे लोगों के प्रति समाज की सोच में बहुत ज्यादा
परिवर्तन नहीं हुआ है. आज भी दिव्यांगजनों के प्रति विभेद देखने को मिलता है. समाज
के बहुत से क्षेत्रों में उनके साथ आज भी दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है. कई बार
उनको उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है. आप सब लोगों ने भी महसूस किया होगा
और यदि अभी तक ऐसा कुछ आपकी आँखों के सामने से नहीं गुजरा है तो अपने शहर के ऐसे
केन्द्रों में जाकर देखिये जहाँ विकलांग व्यक्ति रहते हों,
आज भी वे लोग दया, सहानुभूति का पात्र बनते हैं. ऐसे लोग भले
ही शिक्षित हों अथवा अशिक्षित, शहरी हो अथवा ग्रामीण, रोजगार में हो अथवा बेरोजगार सभी के साथ समाज की तरफ से एक दया का भाव
देखने को मिलता है.
ऐसा होने के पीछे को हम व्यक्तिगत रूप से समाज से अधिक दोष विकलांगता से जूझ
रहे लोगों का मानते हैं. कमोबेश बहुतायत विकलांग व्यक्ति समाज से दया, सहानुभूति ही चाहते हैं. कुछ वर्षों
पूर्व इस क्षेत्र में कार्य करने की मंशा से विकलांग शक्ति (जिसे बाद में दिव्यांग
शक्ति कर दिया गया) के नाम से एक अभियान शुरू किया. इसके माध्यम से ऐसे विकलांग
व्यक्तियों को प्रोत्साहित करने का मन बनाया था जिनमें किसी न किसी तरह की प्रतिभा
हो, कोई न कोई हुनर हो. सोचा था कि ऐसे लोगों के हुनर को
समाज के सामने लाकर इनको भी आगे बढ़ने का रास्ता बनाया जाये. इस अभियान से ऐसे
विकलांग व्यक्ति बहुत कम जुड़े जिनको अपनी प्रतिभा का, अपने
हुनर का प्रतिफल चाहिए था. बहुतायत लोगों के लिए भत्ता,
पेंशन, सरकारी अनुदान, लाभ आदि को
प्राप्त करना उनका अभीष्ट था.
ये सही है कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समाज में सभी विकलांग लोगों को शामिल
करने की दिशा में काम करने को प्रेरित करना आज के दिन का उद्देश्य है. ऐसे में
जहाँ दिव्यांगजनों के प्रति उपेक्षा का भाव दूर करना होगा वहीं खुद दिव्यांगजनों
को अपने आपको मजबूर,
कमजोर मानसिकता से ऊपर लाना होगा. दिव्यांगजनों के प्रति उपेक्षा का भाव रखने की स्थिति
ये है कि ज्यादातर लोग ये नहीं जानते कि उनके घर के आसपास कितने लोग दिव्यांग हैं.
लोगों को इसकी भी जानकारी नहीं कि समाज में दिव्यांगजनों को बराबर का अधिकार मिल रहा
है या नहीं. ऐसे में दिव्यांगजनों की वास्तविक स्थिति के बारे में, दिव्यांगजनों के बारे में लोगों को जागरुक करने
के साथ-साथ दिव्यांगजनों में विश्वास पैदा करने के लिए, दिव्यांगजनों को प्रोत्साहित करने
के लिए भी इस दिवस को मनाना बहुत आवश्यक है.


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