28 नवंबर 2025

ई-कचरे का बढ़ता खतरा

जलवायुध्वनिमृदा प्रदूषणों के बीच अपना विकराल रूप धारण कर चुके इलेक्ट्रॉनिक कचरे की तरफ अभी समाज बहुत गम्भीर नहीं दिखता है. आम जनमानस समझने की कोशिश नहीं कर रहा कि इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट भी पर्यावरण के लिए, मानव के लिए खतरा बन गया है. इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट को सामान्य बोलचाल में ई-कचरा के रूप में जाना जाता है. प्रतिवर्ष बहुत बड़ी संख्या में इलेक्ट्रॉनिक उपकरण टूटने, पुराने होने के कारण फेंक दिए जाते हैं, वह ई-कचरा ही है. उचित तरीके से इसका निपटान, पुनर्चक्रण नहीं होने से ये स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा बन जाते हैं. ई-कचरे में कम्प्यूटर, मोबाइल, घरेलू उपकरण, व्यावसायिक उपकरण, माइक्रोवेवरिमोट कंट्रोलबिजली के तारस्मार्ट लाइटस्मार्टवॉच आदि आते हैं.

 

सामाजिक रूप से यह बहुत बड़ी समस्या है क्योंकि समाज का जिस तेजी से डिजिटाइजेशन हो रहा है, उसी तेजी से ई-कचरा उत्पन्न हो रहा है. आधुनिक तकनीक और मानव जीवन शैली में आने वाले बदलाव के कारण ऐसे उपकरणों का उपयोग दिन-प्रति-दिन बढ़ता जा रहा है जो विषैले, हानिकारक पदार्थों के जनक बनते हैं. ट्यूबलाइटसीएफएल जैसी रोज़मर्रा वाली वस्तुओं में पारे जैसे विषैले पदार्थ पाए जाते हैं जो पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं. ऐसा अनुमान है कि पूरी दुनिया में लगभग 488 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न हो रहा है. संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक ई-कचरा मॉनिटर के चौथे संस्करण में बताया गया कि दुनिया में इलेक्ट्रॉनिक कचरे का उत्पादन दर्ज ई-कचरे के पुनर्चक्रण की तुलना में पाँच गुना तेजी से बढ़ रहा है. रिपोर्ट में बताया गया कि 2022 में रिकॉर्ड 62 मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ जो 2010 की तुलना में 82 प्रतिशत अधिक है. इसके 2030 तक 32 प्रतिशत तक बढ़कर 82 मिलियन टन होने की सम्भावना है. विश्व स्तर पर रिकॉर्ड 62 बिलियन किलो ई-कचरा उत्पन्न हुआ जो प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष औसतन 7.8 किलो के बराबर है. 2022 में यूरोप ने प्रति व्यक्ति 17.6 किलो के हिसाब से सर्वाधिक ई-कचरा उत्पन्न किया.

 



ई-कचरे में मरकरीकैडमियम और क्रोमियम जैसे कई विषैले तत्त्व शामिल होते हैं. इनके निस्तारण के असुरक्षित तौर-तरीकों से मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है. इससे अनेक तरह की बीमारियाँ होने की आशंका रहती है. भूमि में दबाने से ई-कचरा मिट्टी और भूजल को दूषित करता है. जब मिट्टी भारी धातुओं से दूषित हो जाती है तो उस क्षेत्र की फसलें विषाक्त हो जाती हैंजो अनेक बीमारियों का कारण बन सकती हैं. भविष्य में कृषियोग्य भूमि को भी अनुपजाऊ हो सकती है. मिट्टी के दूषित होने के बाद ई-कचरे में शामिल पारालिथियमलेड, बेरियम आदि भूजल तक पहुँचती हैं. धीरे-धीरे तालाबोंनालोंनदियों, झीलों आदि का पानी अम्लीय और विषाक्त हो जाता है. यह स्थिति मानवों, जानवरोंपौधों आदि के लिए घातक हो सकती है. ई-कचरा में शामिल विषाक्त पदार्थों का नकारात्मक प्रभाव मस्तिष्कहृदययकृतगुर्दे आदि पर बहुत तेजी से दिखाई देता है. इसके साथ-साथ मनुष्य के तंत्रिका तंत्र और प्रजनन प्रणाली को भी यह प्रभावित कर सकता है.

 

ई-कचरा के निपटान की अपनी स्थितियाँ, अपनी चुनौतियाँ हैं. इस कारण सबसे ज्यादा जोर इसके पुनर्नवीनीकरण पर दिया जा रहा है. पुनर्नवीनीकरण के द्वारा प्लास्टिक, धातु, काँच आदि को अलग-अलग करके उसको पुनरुपयोग योग्य बनाया जाता है. वैश्विक स्तर पर अब 81 देश ऐसे हैं जिन्होंने ई-कचरे से संबंधित कोई नीतिकानून या विनियमन अपनाया है. इन 81 देशों में से 67 ने विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) सिद्धांत लागू किया है, 46 ने अपने नियमों में राष्ट्रीय ई-कचरा संग्रहण लक्ष्य निर्धारित किए हैं और 36 ने राष्ट्रीय स्तर पर ई-कचरा पुनर्चक्रण लक्ष्यों को अपनाया है. भारत भी ई-कचरे से संबंधित कोई नीतिकानून या विनियमन को अपनाने वाले देशों में शामिल है इसके बाद भी यहाँ ई-अपशिष्ट प्रबंधन से सम्बन्धित अनेक चुनौतियाँ हैं. सबसे बड़ी चुनौती जन भागीदारी का बहुत कम होना है. इसके पीछे उपभोक्ताओं की एक तरह की अनिच्छा है जो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की रीसाइक्लिंग के लिये बनी रहती है. इसके अलावा हाल के वर्षों में एक और चुनौती इस रूप में सामने आई है कि देश में बहुत से घरों में ई-कचरे का निस्तारण बड़े पैमाने पर होने लगा है. यह स्थिति तब है जबकि भारत में ई-कचरे के प्रबंधन के लिये वर्ष 2011 से कानून लागू है जो यह अनिवार्य करता है कि अधिकृत विघटनकर्त्ता और पुनर्चक्रणकर्त्ता द्वारा ही ई-कचरा एकत्र किया जाए. इसके लिये वर्ष 2017 में ई-कचरा (प्रबंधन) नियम 2016 अधिनियमित किया गया है.

 

तकनीक, आधुनिक जीवनशैली, आवश्यकता आदि की आड़ लेकर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग भले ही अंधाधुंध तरीके से किया जाने लगा हो मगर यह स्वीकारना होगा ई-कचरा भविष्य के लिए खतरा बनता जा रहा है. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, गैजेट्स का जीवन बहुत लम्बा नहीं होता है और बहुतायत समाज का इन्हीं पर निर्भर होते जाना खतरे का सूचक है. आज की युवा पीढ़ी के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को सुविधा के लिए कम, पैशन के लिए ज्यादा उपयोग किया जा रहा है. ऐसे में उनके द्वारा उपकरणों को जल्दी-जल्दी बदल दिया जाता है. नवीन तकनीक के कारण भी बहुतेरे उपकरण आउटडेटेड हो जाते हैं. यह भी ई-कचरा की मात्रा को बढ़ाने का काम कर रहा है.

 

पर्यावरण की, मानव, जीवों की सुरक्षा की खातिर लोगों को केवल हवा, पानी, भूमि, पेड़-पौधों को बचाने के बारे में ही सजग नहीं होना है बल्कि ई-कचरा के प्रति भी सावधान होने की आवश्यकता है. बेहतर हो कि जीवनशैली को संयमित, नियंत्रित किया जाये. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का अत्यावश्यक होने पर ही उपयोग किया जाये. उनके निस्तारण के लिए औपचारिक क्षेत्र की सहायता ली जाये. सम्भव है कि मानव समाज कुछ हद तक आने वाले खतरे को टाल सके.  


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