13 अगस्त 2025

बदलाव एवं उपलब्धियों भरी सुखद यात्रा

देश के गौरवशाली इतिहास की छत्रछाया में अमृतकाल जैसी अवधारणा संग स्वतंत्रता का उत्सव जोर-शोर से मनाया जा रहा है. यह समय गौरव करने का इसलिए भी है क्योंकि वैश्विक पटल से अनेकानेक सभ्यताएँ लुप्त हो गईं किन्तु भारतीय संस्कृति, सभ्यता तमाम चोटों, आघातों को सहने के बाद भी अपनी वैभवशाली गाथा को साथ लिए आगे बढ़ रही है. बहुत से लोगों के लिए इसे भले राजनैतिक कदम, सरकारी एजेंडा कहा जाता हो मगर स्वतंत्रता के उत्सव को उमंग-उत्साह के साथ ही मनाये जाने की आवश्यकता है. यह एक तरफ जहाँ हमारी प्राचीन वैभवशाली संस्कृति, सभ्यता से परिचय कराता है वहीं वर्तमान युवा पीढ़ी को हमारे वीर-वीरांगनाओं का वह बलिदान याद करवाता है, जिसके चलते आज ऐसे उत्सव मना रहे हैं.

 

स्वतंत्रता के इन वर्षों में बहुत सी उपलब्धियाँ हैं जिनका सुखद एहसास रोम-रोम को पुलकित कर देता है. बावजूद बहुत सारी उपलब्धियों के आज भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो गुलामी के दिनों को, अंग्रेजों के शासन को सही ठहराते हैं. ऐसे में सवाल उठने स्वाभाविक हैं कि क्या वाकई देश ने आज़ादी से अब तक कुछ पाया नहीं है? क्या अभी तक की यात्रा में किसी तरह की कोई उपलब्धि हासिल नहीं हुई है? विगत उपलब्धियों, अनुपलब्धियों को यदि पूर्वाग्रह मुक्त होकर समग्र रूप में देखें तो हम लोगों को निराशा नहीं होगी. यह सबसे बड़ी उपलब्धि कही जाएगी कि जब देश स्वतंत्र हुआ तब देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह कृषि पर निर्भर थी. आज स्थिति यह है कि कृषिप्रधान कहे जाने के बाद भी देश का आर्थिक ढाँचा अकेले कृषि आधारित नहीं है, अन्य क्षेत्रों ने अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान की है. वर्तमान में अर्थव्यवस्था में उत्पादन क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 27 प्रतिशत, सेवा क्षेत्र का योगदान लगभग 54 प्रतिशत है.

 



शिक्षा के बिना उन्नति, विकास की कल्पना करना संभव नहीं. नालंदा, तक्षशिला जैसे शैक्षणिक संस्थानों के नष्ट कर दिए जाने के बाद महसूस हो रहा था कि शायद देश का शैक्षणिक विकास बहुत देर में हो. इस आशंका को विगत वर्षों की यात्रा में गलत सिद्ध किया गया है. प्राथमिक क्षेत्र से लेकर उच्च शिक्षा और शोध क्षेत्र तक देश में पर्याप्त विकास हुआ है. आज़ादी के समय देश में साक्षरता दर लगभग 18.3 प्रतिशत थी जो वर्तमान में लगभग 78 प्रतिशत है. चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में 1950 में देश में केवल 28 मेडिकल कॉलेज थे. नेशनल मेडिकल काउंसिल के अनुसार 2024-25 में 766 मेडिकल कॉलेज हैं, इनमें से 423 सरकारी और 343 निजी मेडिकल कॉलेज हैं. क्या इसे विकास या उपलब्धियों के रूप में नहीं देखा जायेगा? इसके अलावा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय प्रबन्ध संस्थान, कृषि संस्थान, उच्च शैक्षणिक संस्थानों ने भी संख्यात्मक, गुणात्मक रूप में पर्याप्त विकास किया है.

 

आज़ादी के बाद से लगातार अनेकानेक क्षेत्रों में विकास और बदलाव होते रहे हैं. तकनीक के मामले में क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिले. किसी समय दूरसंचार माध्यम की अपनी सीमितता थी वहीं आज इस क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं. समाज में गिने-चुने लोगों के घरों में बेसिक फोन की सुविधा हुआ करती थी जो आज हर हाथ में मोबाइल के रूप में परिवर्तित हो गई है. इंटरनेट सुविधा, उसकी स्पीड के द्वारा न केवल धरती पर वरन अन्तरिक्ष क्षेत्र में भी व्यापक बदलाव देखने को मिले. ज्ञान-विज्ञान में भी देश में हुए बदलाव प्रत्येक नागरिक को गौरवान्वित कर सकते हैं. किसी समय में सेटेलाईट भेजे जाने के लिए हम दूसरे देशों की तकनीक पर निर्भर हुआ करते थे जबकि आज हमारे केंद्र अन्य देशों को यह सुविधा उपलब्ध करवा रहे हैं. परमाणु परीक्षण, टेस्ट ट्यूब बेबी, मंगल ग्रह का अभियान, अन्तरिक्ष स्टेशन पर किसी भारतीय का जाना, बुलेट ट्रेन की तैयारी, ओलम्पिक में पदक जीतना, जम्मू-कश्मीर से धारा 370 का हटना आदि वे स्थितियाँ हैं जिनको उपलब्धि के रूप में ही स्वीकारा जाता है.

 

कहते हैं न कि सफ़ेद पटल पर एक छोटा सा काला बिंदु भी बहुत दूर से चमकता है, कुछ ऐसा हाल इन उपलब्धियों का है, लोगों की मानसिकता का है. ये सच है कि तकनीकी विकास के दौर में हमारे यहाँ सामाजिक विकास में गिरावट देखने को मिली है. साक्षरता का स्तर बढ़ा है मगर स्त्री-पुरुष लिंगानुपात में अंतर भी बढ़ा है, महिलाओं-बच्चियों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएँ बढ़ी हैं. एक तरफ हमें अन्तरिक्ष में अपने कदम रखे हैं तो दूसरी तरफ हमने अपनी ही धरती को जबरदस्त नुकसान पहुँचाया है. कृषि, खाद्यान्न के मामले में हम यदि आत्मनिर्भर होते जा रहे हैं तो हम जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं रख सके हैं. हमारा आर्थिक ढाँचा वैशिक स्थितियों को देखते हुए बहुत सुदृढ़ है मगर लगातार होते घोटालों को हम नहीं रोक सके हैं. मोबाइल, इंटरनेट क्रांति ने समूचे विश्व को एक ग्राम की तरह बना दिया है मगर आपसी भाईचारे-सौहार्द्र को हम मजबूत नहीं कर सके हैं, उसमें अश्लीलता की, अपराध की दीमक लगा दी है.

 

ऐसे कुछ और पहलू भी हैं, जिनके आधार पर बहुत सारे लोग देश की वास्तविक उपलब्धियों को विस्मृत कर जाते हैं. वे भूल जाते हैं हमारी लोकतान्त्रिक शक्ति को जहाँ अंतिम पायदान के व्यक्ति तक को भी अवसर उपलब्ध हैं. ये और बात है कि संवैधानिक नियमों की आड़ में यहाँ एक निर्दलीय विधायक भी मुख्यमंत्री बन जाता है मगर यही संवैधानिक खूबसूरती भी है कि कोई ऑटो चलाने वाला, आदिवासी समाज से आने वाला, अत्यंत पिछड़ी पृष्ठभूमि से आने वाला भी जनप्रतिनिधि बन कर सदन में पहुँचता है, देश का प्रथम नागरिक बनता है. निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि विगत वर्षों की भदलाव भरी यात्रा सुखद रही है, उपलब्धियों भरी रही है. इस यात्रा में यदा-कदा मिलते झटकों को भी सफ़र का हिस्सा समझते हुए उनको स्वीकार करना होगा, उनका भी एहसास करते हुए आगे बढ़ना होगा.


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