अपने पढ़ने के शौक के कारण ऐसा बहुत ही कम होता है कि कोई पुस्तक मँगवाई जाए और बिना पढ़े अलमारी में सज जाए. इसी तरह ऐसा तो बहुत कम ही पुस्तकों के साथ होता है कि आने के बाद कुछ ही घंटों में उसे चट कर दिया जाये. आज ही अपने कर्मकांडी मित्र अनुराग की पुस्तक हाथ लगी. ये बात कहने में कोई गुरेज नहीं कि आज किसी भी व्यस्तता में होते उसे छोड़कर पहला काम अनुराग के उपन्यास को पढ़ना रहता. हुआ भी कुछ ऐसा ही. कॉलेज से लौटते ही कोरियर वाले ने पुस्तक थमाई उसके बाद उसी को पढ़ने का काम शुरू हुआ.
उपन्यास की समीक्षा इस पोस्ट के बाद, अभी कुछ बातें अनुराग और अपने बारे में. 1990 में स्नातक की पढ़ाई के लिए जब ग्वालियर के साइंस कॉलेज में एडमिशन लिया तो हॉस्टल में सबसे पहली मुलाकात अनुराग से ही हुई. उस पहली मुलाकात में बहुत ही संक्षित सी बातचीत हुई मगर उसके बाद डिफ़ॉल्ट सेटिंग में इंस्टाल खुराफातों ने आजतक हमें और अनुराग को लगातार साथ बनाये रखा.
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| हॉस्टल की एक फोटो, 1991 |
हॉस्टल के बहुत से मित्र आज भी साथ हैं, बहुत से सीनियर बड़े भाई की तरह अपना आशीष बनाये हुए हैं, बहुत से जूनियर छोटे भाई की तरह जीवन से जुड़े हुए हैं. सभी भाई किसी न किसी विशेषता के कारण सबसे अलग थे, आज भी अपनी उसी विशेषता के कारण अलग हैं. अनुराग पहले दिन से ही एकदम बिंदास, जिंदादिल, बेख़ौफ़ व्यक्तित्व से भरा हुआ लगा और ऐसा आजतक है. संभवतः इसी डिफ़ॉल्ट सेटिंग के कारण स्थलीय दूरी होने के बाद भी हम दोनों अलग-अलग नहीं हो सके.
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| हॉस्टल मीट, 2017 |
बिंदास, मौजियल स्वभाव के अनुराग के साथ मिलकर कितनी-कितनी खुराफातें रची गईं कहना मुश्किल है. उसकी एक बिंदास फोटो आज भी हमारे कलेक्शन को महकाती-चहकाती है. इसे आशीर्वाद ही कहा जायेगा कि 2017 में हॉस्टल मीट के दौरान मंच से हम लोगों के वार्डन रहे चंदेल सर ने अनुराग और हमारा ही नाम लेकर हमारी शरारतों का जिक्र किया. होली के ठीक पहले अनुराग के साथ मिलकर हाथ ठेला पर बिठाकर अपने एक सीनियर को रेलवे स्टेशन छोड़ने की घटना का जिक्र हम आज तक अपने दोस्तों के बीच किया करते हैं. अनुराग को पत्र मित्र कॉलम में कुमारी अनु के नाम से मिलने वाले हजारों-हजार पत्र आज भी हॉस्टल के साथियों के बीच मौज-मस्ती का बिन्दु बनते हैं.
आज अनुराग के उपन्यास को पढ़ते-पढ़ते तीस साल से अधिक पुराना हॉस्टल का समय बार-बार उभर आता, उस समय की शैतानियाँ सामने आ खड़ी होतीं. कई-कई बार होंठों पर मुस्कान उभर आती, ख़ुशी में आँखें नम हो जातीं.
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| मौज-मस्ती, 2021 |
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| अनुराग के ऑफिस में, 2021 |





इन तस्वीरों के साथ घटनाक्रम भी उभर आए।
जवाब देंहटाएंआज भी पुस्तकों से लगाव होना ही बडी बात है।