किसी भी समाज की ऐतिहासिक धरोहरों के द्वारा उस
समाज के बारे में आसानी से जाना जा सकता है. बहुत सारे देश हैं जो आज भी अपनी
हजारों साल पुरानी धरोहरों को सुरक्षित और संरक्षित रखे हुए हैं. बहुत बार पढ़ने
में आता है कि फलां देश के किसी शहर के नागरिकों ने अपने किसी ऐतिहासिक महत्त्व के
वृक्ष को कटने से बचाने के लिए आन्दोलन किया. कभी समाचार सुनाई देता है कि किसी
देश के नागरिकों ने स्वेच्छा से अपनी ऐतिहासिक धरोहरों के साफ़-सफाई का जिम्मा ले
लिया है. ऐसा समाचार पढ़ते-सुनते-देखते समय मन में एक सवाल कौंधता है कि क्या ऐसा
हमारे देश के नागरिक नहीं कर सकते?
इस सवाल के सापेक्ष पहली बात यह कि यह सारे
नागरिकों के सन्दर्भ में नहीं है. दूसरी बात कि इस सवाल के साथ ही आप स्वयं अपने
आसपास देखिये और महसूस करिए कि क्या हमारे सभी नागरिक अपनी ऐतिहासिक धरोहरों, इमारतों के प्रति जिम्मेवारी का भाव लिए हैं? आइये, अब आगे बढ़ते हैं. हमारे देश में ऐतिहासिक महत्त्व की इमारतों, स्मारकों की कहीं कोई कमी नहीं. बहुत सारे किले,
महल, मंदिर, स्मारक आदि हमारी ऐतिहासिकता
की कहानी स्वयं कहते हैं. इन ऐतिहासिक महत्त्व की धरोहरों में से बहुतायत में ऐसी
मिलेंगीं जहाँ पर किसी न किसी रूप में देश के नागरिकों ने अपनी नकारात्मक सक्रियता
के निशान छोड़ दिए हैं. कहीं किसी आशिक का तीर घुसा हुआ दिल देखने को मिल जायेगा तो
कहीं किसी दीवार पर किसी के प्रेम का नाम खुदा हुआ मिल जायेगा. कहीं किसी इमारत के
कोने पर पीक की नक्काशी देखने को मिल जाएगी तो कहीं किसी ने रंगों से करामात दिखाई
होगी. कहीं कुछ तोड़ा गया होगा तो कहीं से कुछ उखाड़ा गया होगा.
क्या हम नागरिकों में वाकई सामाजिक सोच समाप्त
होती जा रही है? क्या हम नागरिकों में अपने इतिहास के प्रति
गरिमा बोध मिटता जा रहा है? क्या वाकई हम नागरिक अपने इतिहास
को कलंकित करने वाला समझने लगे हैं? क्या हमें अपनी ऐतिहासिक
धरोहरों से प्रेम-स्नेह नहीं रह गया है? जो धरोहरें हैं उनमें
से बहुतों के प्रति यदि सरकार संवेदित नहीं है तो इनके प्रति क्षेत्रीय नागरिक भी
असंवेदित है. कहीं धन के लालच में इमारत को नुकसान पहुँचाया जा रहा है तो कहीं
विद्वेष की भावना से धरोहर को क्षतिग्रस्त किया जा रहा है. ऐसी विषम स्थिति में
यदि किसी व्यक्ति के अपने व्यक्तिगत प्रयासों से कोई धरोहर सुरक्षित, सुसज्जित नजर आती है तो दिल वाकई प्रसन्न हो उठता है.
जनपद जालौन के रामपुरा में वहाँ के कछवाह राजाओं की धरोहर, उनका किला और उसका बहुतायत साजो-सामान उनके वारिस कुँवर केशवेन्द्र सिंह द्वारा आज भी सुरक्षित, संरक्षित, सुसज्जित करके रखा गया है. अभी हाल ही में किले को देखने का, वहाँ भ्रमण करने का अवसर मिला. जल्द ही इस बारे में आपके साथ अपना अनुभव साझा किया जायेगा.
कुँवर केशवेन्द्र सिंह |
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