यात्राएँ हमेशा कुछ न कुछ सिखाती हैं. नए लोगों से मिलना, नए विचारों से सम्पर्क, नयी संस्कृतियों से परिचय. यह सबकुछ व्यक्ति को समृद्ध बनाता है. अनेक लोगों से मिलना-जुलना व्यक्ति को वैचारिक रूप से सशक्त बनाते हुए विविध आयामों में सोचने-समझने की क्षमता में वृद्धि करता है. अपने रहन-सहन, अपने क्षेत्र के अलावा अन्य क्षेत्रों, स्थानों के बारे में जानकारी मिलती है. आज के तकनीकी भरे दौर में भले ही किताबों, इंटरनेट या किसी दूसरे माध्यम को जानकारी का स्त्रोत स्वीकारा जाए किंतु मेल-जोल, यात्राओं से मिला ज्ञान, जानकारी व्यावहारिक होती है. ख़ुद अपनी दृष्टि में किसी जगह का, वहाँ की स्थिति का अवलोकन, विश्लेषण आदि करना ज़्यादा उपयुक्त और सारगर्भित होता है. वहाँ के लोगों से मिलकर उनकी बोली, स्थानीय परम्पराओं, पर्वों, आयोजनों आदि की जानकारी का मिलना अपने आपमें एक ख़ज़ाना होता है.
व्यक्तिगत रूप से यात्राओं के द्वारा हमें अनेकानेक तरह के लाभ हुए हैं. नए लोगों से मिलना, नई जगह की जानकारी करना हमारे स्वभाव में होने के कारण नई-नई जगहों पर जाने का लोभ छोड़ा नहीं जाता है. इस वर्ष ऐसा हुआ कि दो बार बिहार की यात्रा करने का अवसर मिला. पहली बार इसी वर्ष अगस्त माह में बिहार के शिवहर जिले के गाँव तरियानी छपरा में और दूसरी बार इसी दिसम्बर में शिवहर जिले में ही. आश्चर्य हुआ जानकर कि महज़ पच्चीस वर्ष पहले बने शिवहर में एक भी महाविद्यालय नहीं है. बिहार के सबसे छोटे जिले के रूप में पहचाने जाने वाले जिले में अनेकानेक बुनियादी सुविधाओं का अभाव दिखाई दिया. लोगों में जागरूकता और सक्रियता की कमी इस स्तर तक देखने को मिली कि शाम सात बजे के बाद बाज़ार पूरी तरह से बंद हो जाता है. लोगों की चहल-पहल थम जाती है. ऐसे थमे-ठहरे शिवहर में लोगों में भले ही अपनी समस्याओं को दूर करने के प्रति ललक देखने को न दिखती हो पर कार में दो-दो हूटर लगाने का उत्साह देखने को मिलता है. आश्चर्य तो तब हुआ जब एक टेम्पो में भी हूटर लगा दिखा.
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