02 फ़रवरी 2020

घुमक्कड़ी नई-नई जानकारी के लिए


घूमना-फिरना किसे अच्छा नहीं लगता है? नई-नई जगह देखना, नई-नई जानकारियाँ इकठ्ठा करना, अलग तरह की संस्कृति, कला, जीवन-शैली आदि से परिचय होता है. घूमना-फिरना मतलब साफ़ है कि यात्रा करनी है. यात्राएँ केवल एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने का साधन नहीं हैं वरन इनके द्वारा बहुत कुछ सीखने को मिलता है. पर्यटन को भी इसी कारण से सरकारों द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है कि इसी बहाने लोग एक-दूसरे की संस्कृति से परिचित हो सकें. देखा जाये तो किसी स्थान विशेष तक पहुँच जाना ही यात्रा का उद्देश्य नहीं. किसी स्थान विशेष के बारे में जानकारी कर लेना ही पूर्ण पर्यटन नहीं. यात्रा तो एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जाना भर है. पर्यटन किसी स्थान विशेष को घूम लेना भर है. इसके बीच में भी बहुत कुछ होता है जो बहुत कम लोग आत्मसात कर पाते हैं.
घूमने-फिरने का शौक बहुत बुरी तरह से है. अक्सर अपने व्यस्त समय के बीच से भी कुछ समय निकाल कर घुमक्कड़ी कर ली जाया करती है. नई-नई जगह देखने का शौक, नए-नए लोगों से मिलना, उनकी जीवन-शैली के बारे में जानना आदि का शौक लगातार बना हुआ है और इसमें घूमना बहुत मदद करता है. कई बार अत्यधिक व्यस्तता अथवा छुट्टियों की समस्या के चलते अथवा किसी साथ के न मिलने के चलते कहीं दूर घूमना नहीं हो पाता है तो शहर के आसपास ही एक तरह से भटक लेते हैं. ऐसा करना घुमक्कड़ी की भूख को बहुत हद तक शांत करता है. हमारी घुमक्कड़ी के मायने बहुत अलग से हैं. जिस जगह जा रहे होते हैं, उस जगह के बारे में जानकारी, उससे संदर्भित अन्य किसी तरह की जानकारी तो वहाँ पहुँच कर मिल ही जाती है मगर हमारे लिए उस जगह तक पहुँचने के बीच की तमाम जगहों, अनेक लोगों के बारे में जानकारी इकठ्ठा करना भी मुख्य बात होती है. यात्रा का साधन कुछ भी रहे मगर यात्रा शुरू होते ही हाथ में कैमरा अपने एक्शन मोड में आ जाता है. यह एक्शन मोड रात होने पर ही थमता है. 

रास्ते भर की तमाम जगहों के फोटो, जगह-जगह रुकने पर वहाँ से संदर्भित जानकारी के बारे में पता करना, वहाँ के लोगों से बातचीत करना आदि लगातार होता रहता है. यात्राओं का शौक होने के कारण बहुत ज्यादा यात्राएँ नहीं कर सके हैं. अभी तो अपना देश ही पूरी तरह से नहीं घूम सके हैं, विदेश का तो कोई प्लान ही नहीं. अपने क्षेत्र बुन्देलखण्ड और उसके आसपास के अलावा देश के कई भागों में जाना हुआ. हाँ, अभी नॉर्थ-ईस्ट की तरफ जाना नहीं हुआ मगर जहाँ-जहाँ जाना हुआ है वहाँ पूरे मन से जाना होता है. कैमरा साथ होने के कारण मन और भी ज्यादा लगा रहता है. अक्सर ऐसे दृश्य दिखाई पड़ जाते हैं जो सदैव उस जगह की स्मृति को ताजा करते रहते हैं. कभी कोई प्राकृतिक दृश्य, कभी किसी शहर का अजब सा नजारा, कभी ट्रेन की क्रासिंग के पास की स्थिति, कभी किसी जगह के अटपटे से होर्डिंग्स आदि. ये सब हो सकता है कि उस समय बहुत महत्त्वपूर्ण न लगें, उस समय इनके बारे में कुछ विशेष न लगे मगर बाद में ऐसे चित्र बहुत कुछ याद दिलाते हैं.

उदाहरण के लिए नीचे दिया गया चित्र हमारे कन्याकुमारी जाने के समय का है. ये आपको सामान्य से समोसे ही नजर आ रहे होंगे. हमें भी समोसे ही नजर आये थे और खास बात ये कि ये समोसे ही हैं. बस इनकी खासियत ये है कि ये आलू के बजाय प्याज के बने हुए हैं. विजयवाड़ा स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही हम लोग उतरे. एक मित्र को बुलाया था, वह सामने से आ रहा था. उसी समय इन पर नजर पड़ी. जानकारी करने पर मालूम हुआ कि ये समोसे प्याज के बने हैं. खटाक से हमारे कैमरे ने इन्हें अपने आगोश में ले लिया. देखिये, आज ये सब आपके सामने हैं. यदि उस दिन इनकी फोटो न ली होती तो आज ये कैसे आपके सामने होते. बस, यही सब हमारी यात्रा का, हमारी घुमक्कड़ी का अंग बन जाते हैं. स्थान विशेष से ज्यादा यात्रा के दौरान मिले स्थानों, लोगों, वस्तुओं के बारे में हमारी सजगता ही हमें लगातार यात्राओं के लिए, घुमक्कड़ी के लिए उकसाती रहती है. अब जल्दी ही एक नई यात्रा शुरू करनी है क्योंकि बहुत दिन हो गए जबकि किसी नई जगह को अपने कैमरे में कैद नहीं किया है.



1 टिप्पणी: