सामाजिक संरचना
में ऐसी कोई भी स्थिति जो नियंत्रण-मुक्त है, वह अकसर अनावश्यकता को जन्म देने लगती है. वर्तमान में ऐसी
स्थिति सोशल मीडिया के सन्दर्भ में नजर आ रही है. इसके विभिन्न प्लेटफ़ॉर्म एक तरह
के नियंत्रण में होने के बाद भी आम नागरिक के लिए मुफ्त और अनियंत्रित रूप में
उपलब्ध हैं. विचारों का प्रसार करने के साथ-साथ लोगों के मन में भावना रहती है कि
उनके विचारों को स्वीकारने वाले अधिक लोग हों. स्वीकारने जैसी अवस्था कब थोपे जाने
में बदल जाती है पता ही नहीं चलता है. ऐसी वैचारिकी भी अक्सर भ्रामक, तथ्यहीन नजर आती है. अब विचारों के लिए किसी तरह के स्व-अध्ययन की
आवश्यकता नहीं बस इंटरनेट की कृपा से घूम-टहल कर बस इतना देखना है कि खुद के मन की
बात कहाँ लिखी हुई है. उसे कॉपी करना है और शेयर करके दूसरों तक पहुँचाना है.
यदि पिछले कुछ समय
से सोशल मीडिया की विषय-सामग्री पर गौर किया जाये तो सहज एहसास हुआ होगा कि बिना
सोचे-समझे, बिना तथ्यों
की जाँच किये प्रकाशित, शेयर की गई विषय-वस्तु को अंतिम सत्य
मानकर उसका प्रसारण चलता रहता है. आये दिन किसी बालक-बालिका की तमाम तरह के
चिकित्सकीय उपकरणों से घिरी तस्वीर सोशल मीडिया में दिखती है. अत्यंत संवेदित
तरीके से प्रस्तुत पोस्ट पर उसके लिए लाइक, शेयर के माध्यम
से धनराशि जुटाने की चर्चा होती है. तस्वीर के बच्चे को देखकर बहुतायत लोग पोस्ट
को लाइक, शेयर करने में जुट जाते हैं. क्या एक पल को विचार किया है कि आखिर सोशल
मीडिया पर किये जाने वाले लाइक, शेयर पर किसके द्वारा धनराशि
प्रदान की जाती है? क्या इस पर गौर किया कि यदि लाइक, शेयर करने पर धनराशि मिलेगी भी तो वह आखिर किसके खाते में जायेगी? ऐसी बातों पर विचार किये बिना सभी आँखें बंद करके किसी दूसरे के हाथों
में खेलने लग जाते हैं. इसी तरह से आये दिन उन गुमशुदा बच्चों की पोस्ट भी पोस्ट, शेयर होती रहती है जो वर्षों पहले अपने-अपने घरों को सकुशल मिल चुके होते
हैं. ये स्थितियाँ जानकारी का अभाव और स्वयं को सोशल मीडिया के चंगुल में फँसा
होने की तरफ इशारा करती हैं.
इन दिनों सोशल
मीडिया के माध्यम से लोगों के दिमाग से खेलते हुए, उनको तथ्यहीन जानकारी के आकर्षण में फँसाते हुए एक तरह से
व्यवस्था के विरुद्ध खड़ा करने का काम किया जा रहा है. आपने अक्सर ऐसी पोस्ट देखी
होंगी जिसमें ड्राइविंग लाइसेंस को केन्द्रित करते हुए एक निश्चित समयसीमा पश्चात्
नवीनीकरण पर प्रश्न उठाया जाता है. इसी तरह एक अन्य पोस्ट के माध्यम से ड्राइविंग
लाइसेंस बनाये जाने की प्रक्रिया पर सवाल उठाया जाता है. क्या ऐसी पोस्ट को शेयर, लाइक करने के पहले या इस पर अपनी सहमति देने के पहले विचार किया गया कि
आखिर उम्र के एक पड़ाव के बाद व्यक्ति के देखने की, सुनने की
क्षमता कम हो जाती है. बहुत से लोगों के हाथ-पैर में कम्पन होने लगता है. अनेक
व्यक्ति स्मृति-लोप का शिकार होने लगते हैं. इन्हीं स्थितियों, स्वास्थ्य की जाँच के लिए एक निश्चित समय बाद किसी भी वाहन चालक के
लाइसेंस का नवीनीकरण किया जाता है. अन्य पोस्ट के सन्दर्भ में क्या विचार किया गया
कि किसी वाहन का लाइसेंस बनाये जाने के पहले लर्निंग लाइसेंस बनाये जाने की
व्यवस्था है. उसके बाद ही वाहन चालन पश्चात् लाइसेंस अंतिम रूप से चालक को प्रदान
किया जाता है. इसके बाद भी तथ्यात्मक रूप से अनजान बनकर ऐसी पोस्ट के द्वारा लोगों
के दिमाग से खेलने का काम चलता रहता है.
ऐसी ही तथ्यहीन
जानकारियों के चलते सोशल मीडिया पर एकतरफा कुतर्क चलते रहते हैं. उम्र, अनुभव, ज्ञान को दरकिनार करते हुए लोग यहाँ सहजता से मिल जाते हैं. ऐसा व्यक्ति
जिसने किसी विषय को पढ़ना तो दूर कभी देखा भी न हो, उस
पर भी किसी बड़े विशेषज्ञ से ज्यादा गंभीरता से अपनी राय देता है. ऐसा किये जाने से
इंटरनेट पर ऐसी सामग्री का जमावड़ा होता जा रहा है जो विशुद्ध रूप से संशय, भ्रम फ़ैलाने का काम कर रही है. इसी अनावश्यक स्वतंत्रता के चलते सभी को
अपनी बात रखने का, अपने विचार पोस्ट करने का अधिकार
मिला हुआ है. बिना किसी सेंसर के, बिना किसी संपादन के
ऐसी सामग्री इंटरनेट पर दिखाई दे रही है जो न केवल भ्रामक है वरन अराजक भी है. इस
तरह की अराजक और भ्रामक स्थिति में आने वाली उस पीढ़ी का भी नुकसान होने वाला है जो
इंटरनेट की सामग्री को ही प्रमाणित मानती है. उसके लिए पुस्तकों का, बुजुर्गों के ज्ञान का कोई अर्थ ही नहीं है. ऐसी स्थिति में अधकचरे ज्ञान
से, अशिक्षित लोगों के विचारों से सोशल मीडिया हरा-भरा
बना हुआ है. आने वाले समय में यही भ्रामक और तथ्यहीन सामग्री ही सामाजिक क्षति
करवाएगी.
आज भले ही इसके
मायने समझ न आ रहे हों मगर आने वाले समय में इसी तरह की सामग्री के सहारे लोगों के
दिमाग को, उनके
ज्ञान को गुलाम बनाया जा सकेगा. आवश्यक नहीं कि प्रत्येक कालखंड में सेना, हथियार से ही गुलामी लायी जाए. वर्तमान समय तकनीक का है और आने वाला इससे
भी ज्यादा तकनीक का, विज्ञान का, जानकारियों का, तथ्यों का होगा. ऐसे में एक गलत
अथवा भ्रामक सामग्री भी किसी हथियार से कम साबित नहीं होगी. आज के लिए न सही मगर
आने वाले कल के लिए, आने वाली पीढ़ी के लिए आज तथ्यों की
गलतियों को, भ्रम को, अराजकता
को सँभालना होगा. सोशल मीडिया पर होती अनावश्यक उछल-कूद को नियंत्रित करना होगा.
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