02 अक्तूबर 2024

इजरायल-ईरान संघर्ष के भारतीय सन्दर्भ

हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की मौत के बाद भी इजराइल ने लेबनान में चरमपंथी समूह के ठिकानों पर बमबारी जारी रखी. उसने साफ कहा था कि वह हमले बंद नहीं करेगा और इजराइल के हितों पर हमला करने वाले किसी भी देश को नष्ट कर देगा. इजरायल द्वारा हिजबुल्लाह पर ताबड़तोड़ हमलों के बाद आशंका व्यक्त की जा रही थी कि कहीं इसकी परिणति ईरान द्वारा इजरायल पर हमला करने के रूप में न हो. यह आशंका मंगलवार शाम को सच साबित भी हुई जबकि ईरानी सेना ने इजरायल पर बैलिस्टिक मिसाइलों की बौछार कर दी. उसकी सेना द्वारा हमले में मुख्‍य रूप से सेना और सुरक्षा एजेंसी को निशाना बनाया गया. हमले के बाद इजरायली मीडिया ने बताया कि ईरान ने इजरायल पर 180 के आसपास बैलिस्टिक मिसाइलें दागी हैं. इस हमले के तुरंत बाद इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि ईरान ने उस पर हमला करके बहुत बड़ी गलती की है. उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. नेतन्याहू के इस बयान के बाद दोनों देशों के मध्य सीधे युद्ध की आशंका तीव्र हो गई है. माना जा रहा है कि इजरायल किसी भी वक्त ईरान पर सीधा हमला कर सकता है.  

 

पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ने के साथ ही इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच संघर्ष का वर्तमान दौर के चलते सम्पूर्ण अंतरराष्ट्रीय समुदाय महत्वपूर्ण मोड़ पर है क्योंकि इस संघर्ष में अब ईरान के शामिल हो जाने से भू-राजनीतिक चुनौतियाँ बढ़ गई हैं. ईरान की यौद्धिक स्थिति पर विचार करते समय सावधानी बरतना जरूरी है. इजराइल के पास बड़ी सैन्य शक्ति है और उसे अमेरिका से समर्थन प्राप्त है. ईरान के साथ इजरायल की युद्ध स्थिति यदि बढ़ती है तो इसके परिणाम को और वर्तमान को भारतीय हितों के सन्दर्भ में समझने की आवश्यकता है. जहाँ तक भारत के हितों का सवाल है, पश्चिम एशिया, विशेष रूप में खाड़ी देशों में भारतीय नागरिकों के लिए यह संघर्ष एक तरह का जोखिम पैदा कर ही सकता है.

 



यदि भारतीय सन्दर्भों में इजरायल और ईरान को देखें तो किसी समय भारत की नीति फिलिस्तीन को समर्थन देने की रही है मगर पिछले दो दशकों से अधिक समय से भारत और इजरायल के बीच सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए हैं. सैन्य सम्बन्धों, उपकरणों, तकनीकी, ख़ुफ़िया तंत्र आदि के विकसित स्वरूप के लिए इजरायल बराबर भारत का साथ दे रहा है. पिछले दशक में 2.9 अरब डॉलर मूल्य की मिसाइलें, रडार, निगरानी और लड़ाकू ड्रोन का निर्यात इजरायल से किया गया है. इजरायल के साथ-साथ भारत के सम्बन्ध ईरान के साथ भी महत्त्वपूर्ण समझे जाते हैं. देश का चाहबार पोर्ट उन्हीं के क्षेत्र में हैं, जिसके माध्यम से यूरोप को जोड़ने की कल्पना को साकार किया जा सका है. भारत ने 2016 में चाबहार को विकसित करने के लिए 8.5 करोड़ डॉलर का निवेश किया था और तेहरान को 15 करोड़ डॉलर की क्रेडिट लाइन भी दी थी. इसके साथ-साथ ईरानी तेल-गैस भी भारत के लिए हाइड्रोकार्बन के निकटतम स्रोत हैं. अमेरिकी प्रतिबंधों से पहले भारत ईरानी तेल का बड़ा खरीदार था. ऐसे में इजरायल और ईरान का संघर्ष बढ़ने पर भारत के सामने नई चुनौती आएगी.

 

ईरान युद्ध में शामिल होने के बाद ऐसा माना जा रहा है कि वह तेल की आपूर्ति को बाधित कर सकता है या फिर यह बाधा युद्ध के कारण स्वतः बन सकती है. दोनों ही स्थितियों में तेल की कीमतों का बढ़ना तय है. भारत कच्चे तेल के क्षेत्र में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है और उसे अपनी ऊर्जा-आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आयात पर निर्भर रहना पड़ता है. ऐसे में तेल कीमतों की वृद्धि से भारतीय आर्थिक विकास दर के नकारात्मक स्थिति में जाने की आशंका भी बनती है. यह देश के आर्थिक विकास की दृष्टि से उचित नहीं. इसके अलावा खाड़ी देशों में काम करते भारतीयों पर भी इस युद्ध का नकारात्मक असर पड़ने की सम्भावना है. एक अनुमान के अनुसार नब्बे लाख के आसपास भारतीय नागरिक खाड़ी देशों में काम करते हैं. ईरान के हमले के बाद यदि इजरायल सीधे-सीधे युद्ध की स्थिति में उतर आया तो ऐसी स्थिति में ये भारतीय खाड़ी देशों से वापस अपने देश को आने लगेंगे. इससे भी मध्य पूर्व क्षेत्र में भारत के लगभग 195 बिलियन डॉलर के बाईलेटरल व्यापार पर भी असर पड़ेगा.

 

यद्यपि भारत द्वारा इजरायल-हमास संघर्ष के आरंभिक दौर से ही इस संघर्ष को शांत करने के प्रयास किये जाते रहे तथापि उसे इसमें सफलता नहीं मिली. इजराइल पर हमास के आतंकवादी हमले के बाद से ही भारत ने मध्य-पूर्व क्षेत्र के सऊदी अरब, ईरान, मिस्र, फिलिस्तीन सहित अनेक यूरोपीय नेताओं से वार्ता की. लगातार चर्चाओं, वार्ताओं के बाद भी संघर्ष बढ़ता ही गया और अब वह एक युद्ध के रूप में नजर आ रहा है. भारत के ईरान के साथ लम्बे समय से रणनीतिक संबंध हैं, वहीं मोदी सरकार ने इजराइल के साथ भी गहरे सम्बन्ध विकसित किए हैं. ऐसे में भारत को आतंकी संगठनों, आतंकवादियों के समूल नाश किये जाने के प्रति दृढ़प्रतिज्ञ रहते हुए भविष्य और तमाम आशंकाओं के सन्दर्भ में दोनों देशों के साथ कूटनीतिक स्तर पर कदम बढ़ाते हुए युद्ध जैसी स्थिति को न बनने देने के प्रयास करने चाहिए.


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