अबकी बार चार सौ पार जैसा जबरदस्त नारा उछलने के बाद भी लोकसभा चुनावों में आशातीत सफलता न मिल पाने के बाद गैर-भाजपाई दलों द्वारा नए तरह के दुष्प्रचार राजनैतिक गलियारों में उछालने शुरू कर दिए थे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली, भाजपा की डबल इंजन सरकार की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान उठाते हुए विपक्षी दलों के उभरते गठबंधन और मुहब्बत की दुकान ने आने वाला समय अपना बताया. इस तरह की वैचारिकी को, विपक्षी दलों द्वारा फैलाये जा रहे दुष्प्रचार को उस समय और बल मिला जबकि चुनाव सर्वेक्षणों ने हरियाणा में गठबंधन को जबरदस्त सफल होते दिखाया. इसके उलट चुनाव परिणामों ने अलग कहानी लिख दी.
हरियाणा विधानसभा
चुनाव में मतदाताओं ने लगभग 40 प्रतिशत मतों के साथ 48 सीटों को भाजपा के पक्ष में
देकर विपक्षी दलों द्वारा चलाये जा रहे अनेकानेक दावों, बयानों को गलत साबित कर दिया. पिछले
विधानसभा चुनावों में मतदाताओं ने लगभग 37 प्रतिशत मतदान भाजपा के पक्ष में करते
हुए 40 सीटों पर विजय दिलवाई थी. अबकी सीटों की संख्या और मतदान प्रतिशत दोनों में
वृद्धि करते हुए हरियाणा के मतदाताओं ने भाजपा के विरुद्ध चलाये जा रहे तमाम दुष्प्रचार
खारिज कर दिए. भाजपा की इस विजय से निश्चित ही विपक्षी दलों,
विशेष रूप से कांग्रेस को जबरदस्त निराशा हुई होगी क्योंकि जिस तरह से हरियाणा में
भाजपा विरोधी माहौल बनाया गया था, चुनाव सर्वेक्षणों में उसे
एक पायदान नीचे दिखाया गया था उसके बाद कांग्रेस खुद को सत्तासीन समझ चुकी थी. यहाँ
की जनता ने किसान विरोधी, पहलवान विरोधी, सेना विरोधी, सरकार विरोधी तमाम स्थितियों को आइना
दिखा दिया. भाजपा की जीत ने अग्निवीर योजना पर मतदाताओं की मुहर लगाई, साथ ही यह
भी साबित कर दिया कि महिला पहलवानों और किसानों का मुद्दा विशुद्ध राजनैतिक हथकंडा
था.
भाजपा ने हरियाणा
में आरम्भ से ही अपना ध्यान राज्य के ओबीसी मतदाताओं पर लगाया जो हरियाणा की कुल
आबादी का लगभग 40 प्रतिशत हैं. यहाँ की राजनीति में मुख्य रूप से जाट समुदाय का
प्रभुत्व बना हुआ है जो राज्य की कुल जनसंख्या का 25 प्रतिशत हैं. कांग्रेस सहित
अन्य दलों का ध्यान जहाँ जाट मतदाताओं पर रहा वहीं भाजपा ने गैर-जाट मतदाताओं को
आकर्षित कर अपनी जीत सुनिश्चित की. इसके अलावा भाजपा ने गाँवों में महिला स्वयं
सहायता समूहों के माध्यम से दलित परिवारों तक पहुँच बनाई, जिसमें लखपति ड्रोन दीदी अभियान ने मुख्य
भूमिका निभाई.
हरियाणा का चुनाव वहाँ
की राजनैतिक स्थितियों के कारण चर्चा में रहा तो जम्मू-कश्मीर का चुनाव इसलिए
राष्ट्रव्यापी विमर्श का हिस्सा बना क्योंकि धारा 370 हटाये जाने, केन्द्रशासित राज्य बनाये जाने के
बाद वहाँ यह पहला चुनाव था. इस चुनाव को लोकतान्त्रिक प्रणाली की परीक्षा भी माना
जा रहा था. राज्य का इतिहास रहा है कि जहाँ पर आतंकवादियों और अलगाववादियों के भय
के साए में चुनाव सपन्न हुआ करते थे, वहाँ भाजपानीत केन्द्र
सरकार द्वारा लोकतंत्र की बहाली का रास्ता बनाते हुए 2019,
2020 एवं 2021 में क्रमशः ब्लॉक विकास परिषद् (बीडीसी), जिला
विकास परिषद् (डीडीसी) एवं पंचों-सरपंचों
के चुनाव सहजता, शांतिपूर्वक करवा दिए. केन्द्रशासित राज्य
बनाये जाने के बाद हुए परिसीमन में जम्मू संभाग में 43 और कश्मीर संभाग में 47
सीटों का आवंटन किया गया. जम्मू-कश्मीर के चुनावों में देखा जाये तो यहाँ
राष्ट्रीयता के स्थान पर क्षेत्रीयता और जनजातीय अस्मिता को महत्त्व दिया गया. राज्य
में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन का पूरा जोर धारा 370 की वापसी, राज्य का दर्ज़ा बहाल करने, भू-स्वामित्व को सीमित
करना आदि पर रहा. इसके माध्यम से गठबंधन राज्य के नागरिकों को लुभाने में सफल भी
रहा. परिणामस्वरूप नेशनल कांफ्रेंस को 45 सीटों पर विजय प्राप्त हुई जबकि कांग्रेस
को मात्र 06 सीटों से संतोष करना पड़ा.
भाजपा की दृष्टि
से यह चुनाव कुछ लाभकारी कहा जा सकता है. पिछले चुनाव की 25 सीटों के मुकाबले इस
बार उसे 29 सीटों पर विजय प्राप्त हुई. राज्य में कश्मीर मुस्लिम बहुल है जहाँ
भाजपा की पैठ न के बराबर है. जम्मू में जहाँ हिन्दू जनसंख्या अपना प्रभाव रखती है
वहाँ भाजपा के प्रदर्शन को संतोषजनक कहा जा सकता है. मतदाताओं के बीच भाजपा ने
लोकतंत्र की स्थापना, क्षेत्रीय
विकास, आतंकवाद-अलगाववाद को समाप्त करने आदि मुद्दों को
पहुँचाने की कोशिश की लेकिन राज्य में उसके लिए बहुत अधिक राजनैतिक संभावनाओं के न
होने के बाद भी 2014 की अपेक्षा बेहतर प्रदर्शन निश्चित ही भाजपा और उसके कार्यकर्ताओं
के लिए संजीवनी का काम करेगा. राज्य के चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि यहाँ नेशनल
कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनेगी किन्तु अबकी शासन,
सरकार का स्वरूप पहले वाले जम्मू-कश्मीर जैसा नहीं होगा. केन्द्रशासित राज्य होने
के कारण वर्तमान में उपराज्यपाल की शक्तियाँ अपना कार्य करेंगी, इस कारण अनेक
महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिए मुख्यमंत्री को उपराज्यपाल की अनुमति, सहमति की आवश्यकता होगी.
बहरहाल हरियाणा और
जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणामों को उस क्षेत्र विशेष के सन्दर्भ में, वहाँ की राजनैतिक, नागरिक स्थितियों के सन्दर्भ में देखने की आवश्यकता है. केन्द्र की
भाजपानीत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में हिंसा-मुक्त,
शांतिपूर्वक चुनाव करवाकर लोकतान्त्रिक मूल्यों की स्थापना का आधार निर्मित किया
है वहीं हरियाणा में भाजपा द्वारा लगातार तीसरी जीत ने बहुत सारे दुष्प्रचारों को
खारिज किया है. इस जीत से निश्चित ही चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों
के लिए भाजपा, उसके सहयोगी दलों और कार्यकर्ताओं में उत्साह,
ऊर्जा का संचार होगा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें