Faculty
Induction Programme का एक सप्ताह निकल चुका है। इस दौरान बहुत से विद्वानों
ने आकर विभिन्न विषयों पर अपना व्याख्यान दिया। उनके अनुभवों, उनके कार्यों से बहुत
कुछ सीखने को मिल रहा है। कुछ ऐसे विषयों से भी परिचय हो रहा है जो कि जानकारी मे तो
थे किन्तु उसने प्रति बहुत ज्यादा सजगता नहीं थी। विषयों में साहित्यिक चोरी (Plegarism) और उद्धरण
(Citation) को लिया जा सकता है। विगत कुछ वर्षों से इन दोनों विषयों पर जोर-शोर से बात
हो रही है, इसके बारे में शोध-कार्यों मे बताया, समझाया जा रहा है मगर स्पष्ट जानकारी
नहीं मिल पा रही थी। वर्तमान में चल रहे Faculty Induction Programme में आए वक्ता द्वारा इस पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। उनके द्वारा समझाया गया कि किस तरह शब्दों
की चोरी भी व्यक्ति के कैरियर को नुकसान पहुँचा
सकती है।
यहाँ देखने में आ रहा है कि जबसे यू जी सी द्वारा शोध और शिक्षण को एकसाथ जोड़कर किसी भी प्राध्यापक के लिए अनिवार्य सा कर दिया है, उसी समय से प्राध्यापकों पर एक तरह का दवाब बढ़ गया है। अब उनके द्वारा शिक्षण कार्य के साथ-साथ शोध-कार्य करवाए जाने का, रिसर्च पेपर लिखने का भी दवाब है। ऐसी स्थिति में बहुत से लोग ऐसे हैं जो इधर-उधर की जुगाड़ से रिसर्च पेपर लिखने मे लग गए हैं। ऐसे लोग ही सामग्री की चोरी करने मे सबसे आगे होते हैं। सामग्री की चोरी के साथ-साथ उद्धरण का लगाया जाना या कहें कि उसकी चोरी रोकने के भी अनेकानेक नियम बने हुए हैं मगर शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोग इन नियमों को एक किनारे लगाकर खुलेआम चोरी करने मे लगे हुए हैं।
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