06 जनवरी 2022

कुछ है जो असंतुलित किये है

कभी-कभी सब कुछ सही सा दिखने के बाद भी कुछ सही सा नहीं लगता है. अपने आपमें ही ऐसा महसूस होता रहता है जैसे बहुत कुछ छूट सा रहा है, बहुत कुछ अनचाहा सा हो रहा है. कभी-कभी समझ ही नहीं आता कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? वैसे देखा जाये तो कभी-कभी ही क्यों ऐसा हर बार होता है जबकि समझना कठिन होता है कि ये बहुत कुछ अनचाहा सा क्यों हो रहा है. मन की, तन की साम्यावस्था बनाये रखना बहुत कठिन हो जाता है. मन और तन का आपसी तालमेल न बैठ पाने के कारण किसी काम को करने की मनःस्थिति भी नहीं बन पाती है. मन कुछ करना चाहता है, दिल कुछ कहता है और देह कुछ और करने लगती है. इस असंतुलन को संतुलित कर पाना बहुत ही मुश्किल काम होता है.


हर बार ऐसी स्थिति के बाद कोई ठोस और कठोर निर्णय लेने का मन करता है मगर संभवतः असंतुलन की स्थिति किसी एक स्थायी निर्णय पर भी नहीं पहुँचने देती है. कई बार लगता है किसी मशीन की तरह, किसी कंप्यूटर की तरह दिल-दिमाग को अपडेट किया जा सकता. किसी तकनीक के द्वारा फॉर्मेट किया जा सकता अपनी मेमोरी को, अपनी स्मृति को. वाकई, यदि मन को, दिल को, दिमाग को किसी कंप्यूटर की तरह फॉर्मेट किया जा सकता, किसी सॉफ्टवेयर की तरह अपडेट किया जा सकता, उसको असामान्य स्थिति होने पर अनइनस्टॉल, इनस्टॉल किया जा सकता. अफ़सोस ऐसा कुछ इंसानी शरीर के साथ, उसके दिल-दिमाग के साथ नहीं किया जा सकता है.


ऐसा न हो पाने के कारण तमाम उलझनों का बोझ उठाये बस चलायमान रखा जा रहा है. खुद को कर्तव्य पथ पर सक्रिय बनाये रखा जा रहा है. ये भी समझ से परे है कि खुद को काम में लगाए हुए हैं अथवा काम में उलझे होने का बहाना बनाये हुए हैं?




1 टिप्पणी:

  1. सुंदर लेख सुंदर रचना
    किसको नहीं है गम सबकी आंखें है नम

    जवाब देंहटाएं