कल
रात नियमित भ्रमण पर हमारीवाणी पर टहलना हो रहा था. अभी ज्यादा दूर जाना नहीं हो
सका था कि एक पोस्ट का शीर्षक हमें अपनी कविता जैसा दिखा. ब्लॉगर का नाम भी पहचाना
हुआ था. इसलिए लगा नहीं कि हमारी कविता वहाँ पोस्ट की गई होगी. इसके बजाय लगा कि
कहीं हमारी कविता के बारे में तो कुछ लिखा तो नहीं गया है. ऐसा विचार आते ही पोस्ट
लिंक पर क्लिक कर दिया. पोस्ट खुली तो हमारी आँखें खुलीं. पूरी की पूरी कविता उस
पोस्ट में थी मगर हमारे नाम के बिना. पेज दो-तीन पर रिफ्रेश करके भी देखा, कहीं
नेटवर्क कोई होशियारी न कर रहा हो मगर ऐसा नहीं था. हमारा नाम लेखक ने लिखा नहीं
था सो वहाँ था ही नहीं. कहीं और भी किसी रूप में ये प्रदर्शित नहीं हो रहा था कि
वो पोस्ट हमारी है.
बहरहाल,
इस तरह की घटनाओं से आये दिन दो-चार होते हैं. सोशल मीडिया के विशाल जंगल में, इस
भूलभुलैया में कब कौन चोर बनकर आपकी रचनाओं के सहारे प्रसिद्धि पाता रहे, कहा नहीं
जा सकता. अक्सर घूम-फिर कर हमारी ही रचनाएँ हमें टैग करके भेजी जातीं हैं, किसी और
के नाम पर. ऐसे में इस ब्लॉग पोस्ट पर अपनी कविता देखना आश्चर्य का विषय नहीं लगा.
उन्हीं की तरह का कदम फेसबुक पर एक महाशय और उठाए हैं, उनको भी
संकेत कर दिया है. इन्हीं महाशय के नक्शेकदम पर चलते हुए वे भी हमारी उसी कविता को
अपनी पोस्ट में जिंदा किये बैठे हैं. दिमाग में आया कि हो सकता है कि ब्लॉगर गलती से
नाम न लिख सके हों. चूँकि ब्लॉगर का नाम खासा जाना-पहचाना हुआ है ब्लॉगिंग में, सो
यह सोचा ही नहीं कि किसी तरह की चोरी के उद्देश्य से ऐसा किया गया होगा. ऐसा इसलिए
भी नहीं लगा क्योंकि हम इतना बड़ा नाम नहीं कि वे ब्लॉगर हमारी रचना चुराएं.
किसी और ब्लॉग पर लगाई गई हमारी कविता |
दिमाग
में ऐसी बातें चलते-चलते उनकी उसी पोस्ट में हमने टिप्पणी के द्वारा उनको कविता के
मूल के बारे में बताया. साथ ही अपने ब्लॉग पोस्ट की, जिसमें वो कविता लिखी थी,
उनको भेज दी. ब्लॉगर द्वारा टिप्पणी को मॉडरेशन में लगाया गया है इस कारण टिप्पणी
उस समय प्रकाशित न हुई. आज भी कई बार देखा तो न टिप्पणी प्रकाशित हुई, न ही कविता
में हमारा कोई जिक्र हुआ और न ही वह पोस्ट हटाई गई. पहले लगा कि शायद उन्होंने
टिप्पणी देखी न हों मगर जब उनके ब्लॉग पर नजर मारी तो महाशय ने आज ही तीन पोस्ट
लगाई हैं. इसका सीधा सा अर्थ यही है कि उन्होंने जानबूझ कर टिप्पणियों को नजरअंदाज
किया है. हम स्वयं भी कई बार अपनी ब्लॉग पोस्ट में किसी अन्य की पोस्ट को प्रकाशित
करते हैं मगर उसके नाम के साथ, उसकी अनुमति के साथ. ब्लॉग
पोस्ट को न हटाया जाना या फिर उसमें हमारी कविता का चर्चा न करना कहीं यह सिद्ध तो
नहीं कर रहा है कि अब ब्लॉगर भी चोरी, सीनाजोरी जैसी हरकतें करने लगे हैं?
ये हमारी पोस्ट |
फ़िलहाल
तो आज फिर उनको टिप्पणी के द्वारा संकेत कर दिया है, देखना है वो करते क्या हैं. यहाँ
कविता के चोरी किये जाने से समस्या नहीं क्योंकि यह घटना तो दिख गई, पकड़ में आ गई.
जो चोर परदे के पीछे हैं, हम सबकी निगाह से छिपे हैं उनका कोई क्या कर ले रहा है.
यद्यपि इस बारे में एक हम ही नहीं बहुत से लोग परेशान हैं तथापि इसके खिलाफ कदम
बढ़ाने का प्रयास कोई कर नहीं रहा है. शायद आरम्भ हमें ही करना होगा. आगे क्या करना
है ये तो आगे देखेंगे मगर दुःख हो रहा है कि नामचीन ब्लॉगर भी इस जमात में शामिल
होते दिखने लगे.
+
हमारे मित्र द्वारा फेसबुक पर लिखी पोस्ट |
आप
सभी को अवगत कराएँ कि वह कविता हमने सन 2018 में लिखी थी. उस कविता के बारे में हमारे
मित्र ने फेसबुक पर एक पोस्ट भी लिखी थी, उसी सन 2018 में.
ये हमारी कविता की पोस्ट लिंक
https://kumarendra.blogspot.com/2018/11/blog-post_16.html
++
ये उस पोस्ट की लिंक जहाँ ब्लॉगर महाशय ने हमारी कविता लगा रखी है
https://akhtarkhanakela.blogspot.com/2020/06/blog-post_60.html
++
ये वो लिंक जो फेसबुक पर हमारी कविता की है, किसी और की पोस्ट पर
हमारी एक कविता, दो जगह, बिना हमारी जानकारी |
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
एक ही रचना कई जगह ,ऐसा मेरे साथ भी कई बार हो चुका है इसी फेसबुक पर ,मैं कुछ बोली नही फेसबुक पर लिखना जरूर छोड़ दिया ,पसंद आयी तो अच्छी बात है मगर अपने नाम से डालना ये गलत है
जवाब देंहटाएंहाहाहा
हटाएंबस ये कदम सामने लाना था,
कविता अच्छी लिखेंगे यही सब होगा:) हमारी कोई नहीं ले जाता है। सही पकड़े हैं। कुछ नाम सरकारी दिखे तो चौंके नहीं हम। जब सरकार अपनी तो मतलब सैंया भये कोतवाल :) :)
जवाब देंहटाएंऐसा नहीं सर, ये आपका स्नेह है। बाकी तो सरकार है ही।
हटाएंयहां चोरों की कमी नहीं। खुद ही बचना होगा।
जवाब देंहटाएंसही है पर ये न पता था कि ब्लॉगर ही चोर निकलेगा
हटाएंयह मेरे साथ कई बार हुआ था। किसी परिचित ने बताया तो मैंने अपने ब्लॉग का लिंक उन्हें भेजा। फिर उन्होंने गल्ती मानी। लेकिन दिक्कत यह है कि नेट पर इतने सारे प्लेटफ़ॉर्म है। कहाँ कहाँ कोई ढूँढ पाएगा अपनी चोरी हुई लेखनी को। सच में यह बहुत दुखद है।
जवाब देंहटाएंसही है। इस समुद्र में सब खो जाना है।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-06-2020) को "उलझा माँझा" (चर्चा अंक-3735) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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जी, आभार
हटाएंबहुत अफ़सोस की बात है कि ऐसी चोरियां हो रही हैं.
जवाब देंहटाएंऐसा अक्सर होता है सर और दुख या हंसी इस बात पर आती हे बिना शर्म संकोच के सोशल प्लेटफॉर्म पर पोस्ट भी कर देते हे नकल में अक्ल भी इस्तेमाल नहीं करते
जवाब देंहटाएंदुख होता है इस तरह की हरकतों से ..आप सब ब्लॉग जगत के आरम्भिक स्तम्भ हैंं । ऐसी चोरियों की रोकथाम होनी चाहिए ।
जवाब देंहटाएंऐसा खूब हो रहा है और यह बड़े अफसोस की बात है . आप कहाँ कहाँ देखते फिरेंगे . किसी ने मेरी कहानी पढ़कर कहा कि यह कहानी मैंने कहीं और भी देखी है यानी कि अब तो यह भी सिद्ध करना पड़ेगा कि रचना मूलतः आपकी ही है पर यह तब कर पाएंगे जब चोरी पकड़ में आए जैसे कि आपकी पकड़ में आगई ..
जवाब देंहटाएंबढ़िया लेख.चोरी खूब बढ़ गई है इसमें दो राय नहीं है.कविता पर तो चोरों की ख़ास नज़र रहती है.आपने अच्छा किया चोर और चोरी दोनों को प्रकशित कर दिया. इन सज्जन के पास डिग्रीयां बहुत हैं कहीं इसी तरीके से तो नहीं इकट्ठी कीं ? फेसबुक तो मुझे चोरों का अड्डा ही लगता है.
जवाब देंहटाएंबड़े अफसोस की बात है
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