30 अक्तूबर 2014

स्वच्छता अभियान सफल होगा जनमानस के छोटे-छोटे प्रयासों से



देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता अभियान को स्वयं झाड़ू उठाकर जैसे ही आरम्भ किया, उनका अनुगमन करने वालों की संख्या एकाएक बढ़ गई. नामीगिरामी लोग भी झाड़ू ले-लेकर सड़कों पर उतर आये और पूरी तन्मयता से सफाईकार्य में जुटे दिखाई देने लगे. ये एक तरह का शुभ और सकारात्मक सन्देश ही माना जायेगा कि वातानुकूलित कमरों-गाड़ियों में ऐशोआराम की जिंदगी भोग रहे लोग खुले आसमान के नीचे गंदगी के ढेर को साफ़ करते दिखने लगे हैं. इस अभियान के पूर्व ऐसा उन्हीं दिनों में देखने को मिलता था जबकि इन नामचीन लोगों द्वारा किसी तरह का औपचारिक आयोजन संपन्न किया जाना होता था; कोई सांकेतिकता प्रकट करके अपने सामाजिक होने का सन्देश दिया जाना होता था. इसके बाद भी आम जनमानस को इस बात को स्वीकार करना ही होगा कि ये नामधारी लोग महज औपचारिकता के लिए हाथों में झाड़ू लेकर सड़कों पर उतरे हैं. हमें ये मानने की भूल कदापि नहीं करनी चाहिए कि ये रोज ही सड़कों पर गंदगी बुहारते दिखाई देंगे. ये अपने आपको एक संकेत के रूप में सबके सामने रखकर, एक सन्देश सा देकर चले गए हैं. स्वच्छता अभियान की असली सफलता इस बात पर है कि हम व्यक्तिगत रूप से इसे कितना आत्मसात कर पाते हैं.
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नामधारियों के द्वारा, मंत्रियों-नेताओं के द्वारा लगातार फोटो के साथ सफाई करते हुए सामने आने ने आम आदमी को भी फोटो सहित सफाई के लिए प्रेरित कर दिया है. अब वो भी हाथों में झाड़ू लिए, लकदक, साफ़-सुथरे कपड़े पहन, चश्मा चढ़ाये सड़कों पर महज फोटो खिंचवाने की नियत से उतरता है और वापस हो लेता है. ऐसे में हमें स्वयं विचार करना होगा आखिर हम सफाई किसके लिए करना चाहते हैं? आखिर हम सफाई का नाटक किसके लिए कर रहे हैं? ऐसा भी नहीं है नरेन्द्र मोदी के इस अभियान के पूर्व सफाई का कार्य देश में नहीं होता था किन्तु जिस तरह से एक चेतना सी लोगों में दिखी है, वो पहले कभी नहीं दिखी थी. इस अभियान ने हमें न केवल अपने लिए, अपने परिवार के लिए वरन अपने आसपास के लिए, अपने मोहल्ले के लिए, अपने शहर के लिए स्वच्छता अभियान चलाने को प्रेरित किया है. ये चेतना शून्य में न बदल पाए अब प्रयास इस बात का होना चाहिए.
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जरूरी नहीं कि किसी नदी के गहरे जल में उतर कर सफाई की जाए, कोई आवश्यक नहीं कि गंदगी के अम्बार को साफ़ करना ही स्वच्छता लाने का सन्देश है, झाड़ू लेकर सड़कों को साफ़ करने लगना ही सफाई-पसंद होने का प्रमाण नहीं. यदि हम लोगों को जगह-जगह थूकने, यत्र-तत्र मूत्र-विसर्जन करने, अपने घर की गंदगी को खुलेआम सड़क पर फेंकने, सार्वजनिक जगहों का इस्तेमाल कूड़ेदान की तरह करने आदि से ही रोक सकें तो ये भी अपने आपमें व्यापक अभियान कहलायेगा. रोजमर्रा के छोटे-छोटे कामों में ही यदि हम सफाई का ध्यान रखें, खाने-पीने की वस्तुओं को ढँक कर रखने का ध्यान रखें, बच्चों को सफाई से रहने की आदत डालें, उनको नियमित स्वच्छता अपनाने की सीख दें तो ये भी स्वच्छता अभियान का एक पहलू है. आइये अपने घर से ही छोटी-छोटी पहल करके देखें, बिना सेल्फी के, फोटो के चक्कर में सफाई का एक कदम उठाकर तो देखें. हमें ये हमेशा याद रखना होगा कि इस तरह के अभियान हम जनमानस के ऐसे ही छोटे-छोटे क़दमों से सफलता की मंजिल तक पहुँचते हैं, न कि नामचीन लोगों के चंद पलों की सांकेतिकता से.
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