ये
अपने आपमें अत्यंत शर्मनाक है कि आधुनिकता और उत्तर-आधुनिकता की आदर्शवादिता
दिखाने वाले समाज में खुलेआम भ्रूण लिंग जाँच जैसा कुकृत्य किया जा रहा है; गर्भ
में बालिका की पहचान होने के पश्चात् उसका जीवन समाप्त किया जा रहा है. इससे भी
अधिक शर्मनाक ये है कि इस तरह के कुकृत्यों में वो चिकित्सक भी सम्मिलित हैं जिनको
समाज में भगवान का स्थान प्राप्त है. इधर हाल में देश की राजधानी में जिस तरह से
खुलेआम वहाँ के नर्सिंग होम द्वारा एक महिला को अल्ट्रासाउंड सेंटर का पता बताया
जाता है, जहाँ आसानी से भ्रूण लिंग जाँच की जाती है, तो ये कन्या भ्रूण हत्या
निवारण की कोशिशों की गंभीरता को दर्शाता है. खुलेआम इस तरह के सेंटर के बारे में
बताया जाना ये सिद्ध करता है कि इस तरह के आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के हौसले
कितने बुलंद हैं और इसके निरोध के लिए बने अधिनियम (PCPNDT Act) का कोई भी खौफ इनके मन-मष्तिष्क पर नहीं है. कमोवेश ये स्थिति अकेले
दिल्ली में ही नहीं है वरन देश के बहुतायत भागों में है. लेकिन ये कहकर कि इस
कानून की धज्जियाँ उड़ाने वाले, इसका मखौल बनाने वाले, भ्रूण लिंग जाँच करवाने
वाले, कन्या भ्रूण हत्या करने/करवाने वाले सम्पूर्ण देश में हैं, दिल्ली के अथवा
देश भर के ऐसे अपराधियों को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता है, नज़रअंदाज़ किया भी नहीं
जाना चाहिए. इसी के साथ सवाल खड़ा होता है तो इनको रोका कैसे जाए, इनके अपराध पर
अंकुश कैसे लगाया जाये, इनकी कुप्रवृत्ति को समाप्त कैसे किया जाये. ऐसे सवालों का
जवाब कई बार खुद ऐसे हालात ही बन जाते हैं. स्पष्ट है कि यदि कानून का ही डर होता
तो देश भर में लिंगानुपात में भयंकर गिरावट देखने को न मिल रही होती. वर्ष २०११ की
जनगणना में भले ही वर्ष २००१ की जनगणना के मुकाबले लिंगानुपात में किंचित मात्र
सुधार होता दिखा है किन्तु ये भी संतुष्ट करने वाला नहीं कहा जायेगा क्योंकि इसी
अवधि में शिशु लिंगानुपात में व्यापक कमी आई है.
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ऐसी
स्थिति में जबकि लिंगानुपात में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है, सरकारें बेटी
बचाओ अभियान के द्वारा जागरूकता लाने में लगी हुई हैं, गैर-सरकारी संगठन और अनेक
व्यक्ति अपने-अपने स्तर पर बेटियों के हितार्थ कार्य करने में लगे हैं इसके बाद भी
स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. इस विकृति से निपटने के लिए हर बार जन-जागरूकता
की बात की जाती है किन्तु अब जबकि खुलेआम ऐसे सेंटर की जानकारी दिए जाने से लगता
है कि जनता ने भी जागरूकता से किनारा करना शुरू कर दिया है. जनसहयोग के साथ-साथ
प्रशासन को सख्ती से कार्य करने की जरूरत है. सरकारी, गैर-सरकारी चिकित्सालयों में
इस बात की व्यवस्था की जाये कि प्रत्येक गर्भवती का रिकॉर्ड बनाया जाये और उसे
समय-समय पर प्रशासन को उपलब्ध करवाया जाये. ध्यान देने योग्य ये तथ्य है कि एक
महिला जो गर्भवती है, उसे नौ माह बाद प्रसव होना ही होना है, यदि कुछ असहज
स्थितियाँ उसके साथ उत्पन्न नहीं होती हैं. ऐसे में यदि नौ माह बाद प्रसव संपन्न
नहीं हुआ तो इसकी जाँच हो और सम्पूर्ण तथ्यों, स्थितियों की पड़ताल की जाये. यदि
किसी भी रूप में भ्रूण हत्या जैसा आपराधिक कृत्य सामने आता है तो परिवार-डॉक्टर को
सख्त से सख्त सजा दी जानी चाहिए. ऐसे परिवारों को किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ
लेने से वंचित कर दिया जाये, चिकित्सक का लाइसेंस आजीवन के लिए रद्द कर दिया जाये,
ऐसे सेंटर्स तत्काल प्रभाव से बंद करवा दिए जाएँ और दंड का प्रावधान भी साथ में
रखा जाये.
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इतने
सालों की जद्दोजहद से ये स्पष्ट हो चुका है कि बेटी होने पर किसी योजना का लाभ
देने का मंतव्य, सरकारी योजनाओं से लाभान्वित किये जाने सम्बन्धी प्रयासों, कानूनी
प्रक्रियाओं आदि से सुधार होने के आसार दिख नहीं रहे हैं. ऐसे में कुछ समय तक कठोर
से कठोर क़दमों की जद्दोजहद किये जाने की जरूरत है. यदि ऐसा नहीं किया गया तो वो
दिन दूर नहीं जब कि ऐसे धूर्त और कुप्रवृत्ति के चिकित्सकों के प्रतिनिधि घर-घर
जाकर लोगों को भ्रूण लिंग जाँच-कन्या भ्रूण हत्या के लिए प्रेरित/प्रोत्साहित
करेंगे. इसके साथ वह दिन भी दूर नहीं होगा जबकि बेटों के विवाह के लिए बेटियाँ
मिलनी बंद हो जाएँगी और समाज एक तरह की कबीलाई संस्कृति में परिवर्तित हो जायेगा.
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