14 जून 2010

पढने का अभाव और लेखन से विरक्ति --- अजीब सी मनोदशा




पूरा दिन गरमी के कारण घर में घुसे रहने के बाद शाम को कुछ बाहर टहलने का मन किया। बाहर निकले भी पर जायें कहाँ यह स्थिति बनी रही, परेशान सा करती रही।

कुछ ऐसा ही ब्लॉग लेखन को लेकर हो रहा है। आसपास देखते हैं तो मुद्दों का ढेर दिखता है पर जब लिखने को बैठते हैं तो एक निरर्थकता सी दिखती है। यही कारण है कि पिछले कई दिनों से कुछ भी लिखा नहीं गया।

ऐसा नहीं है कि लेखन के प्रति इस प्रकार की यह विरक्ति ब्लॉग लेखन को लेकर ही आई है पत्र-पत्रिकाओं के लिए भी अब नियमित लेखन नहीं कर पा रहे हैं। एक मित्र के अनुरोध पर एक आलेख लिखकर भेजना था पर अब समय निकल जाने के बाद उससे आज फोन पर दो दिन का और समय माँग कर अधूरे आलेख को पूरा करने का काम किया।


(चित्र गूगल छवियों से साभार)

एक बात तो देखने में आई है (हमें स्वयं अपने संदर्भ में) कि जबसे ब्लॉग लेखन में अपनी सक्रियता दिखाई है तबसे हमारा पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेखन और पठन-पाठन का काम अवरुद्ध सा हुआ है। इंटरनेट का उपयोग करने और उस पर ब्लॉग संसार में घुस जाने का अर्थ होता है कि करीब दो-तीन घंटों के लिए अपने आसपास के वातावरण से कट जाना। इसके बाद एक अजीब तरह की थकान घेर लेती है और फिर आराम करने का, चाय गुटकने का प्रक्रम......समय तो उतना ही है।

इधर पिछले कुछ दिनों से अजीब सी हालत है। न कुछ करने का मन कर रहा है और न ही ब्लॉग पर अपनी सक्रियता दिखाने का इच्छा हुई। इस ब्लॉगिया अनिच्छा का लाभ कुछ पढ़ने में उठाया। इस दौरान कुछ नई पुस्तकों को पढ़ा और कुछ पूर्व में पढ़ी हुई पुस्तकों को दोबारा पढ़ा। मन में कुछ सुकून सा आया कि चलो इधर कुछ पढ़ा तो गया।

एक सलाह बिना माँगे उन नये लोगों को देना चाहते हैं जो ब्लॉग संसार में अभी-अभी आये हैं (यह सलाह हम अपने उन नये साथियों को भी अकसर देते रहते हैं जो लिखने का दावा करते हैं, लेखक होने से ज्यादा स्वयं को साहित्यकार मानने का दावा करते हैं) यदि लेखन के क्षेत्र में लम्बे समय तक अपना वजूद कायम रखना है तो लेखन से ज्यादा पढ़ने पर ध्यान देना होगा। लेखन के द्वारा जो विचाराभिव्यक्ति बाहर आनी है वह तभी सम्भव है जबकि विचारों का जन्म हो और विचारों का जन्म तो पढ़ने के बाद ही होगा। विचारों को सार्थक दिशा भी पढ़ने के बाद ही तो मिलेगी।

चलिए, आज कुछ हल्का सा लग रहा था इस कारण अपनी मन की पुकार को आपके सामने ला बैठे। इसे ज्यादा तवज्जो देने की आवश्यकता नहीं है। बस कुछ लिखना था, कुछ कहना था सो लिख दिया और कह भी दिया।


19 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,

    आपका बलोग पढकर अच्चा लगा । आपके चिट्ठों को इंडलि में शामिल करने से अन्य कयी चिट्ठाकारों के सम्पर्क में आने की सम्भावना ज़्यादा हैं । एक बार इंडलि देखने से आपको भी यकीन हो जायेगा ।

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  2. एकदम सच कहा है आपने ..लिखने से ज्यादा पढ़ना जरुरी है.

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  3. सही लिखा है आपनें. अति सर्वत्र अहितकारिणी है। सो ब्लागिंग भी एक लिमिट तक अच्छी है। लत जैसी नहीं होनी चाहिए बस और क्या....

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  4. theek kah rahe ho....tum to padhne par apna dhyaan jyada lagao.....bloging ko shauk banaao lat nahin....
    tumhaara lekhan utkrisht hai....patrikaon ko bhi tumhaari jaroorat hai.....
    achchhi post...aasheerwad

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  5. theek kah rahe ho....tum to padhne par apna dhyaan jyada lagao.....bloging ko shauk banaao lat nahin....
    tumhaara lekhan utkrisht hai....patrikaon ko bhi tumhaari jaroorat hai.....
    achchhi post...aasheerwad

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  6. (लेखक से जयादा साहित्यकार मानने का दावा) == बिलकुल सही लिखा आपने.
    आजकल साहित्यकार है ही कौन?
    पढ़ना तो बहुत ही जरूरी है,
    सार्थक लेखन के लिए बधाई.

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  7. भाईजी हम लोग आपकी ये पोस्ट पढ़कर हंस रहे थे की इतना पड़ने के बाद भी आपको संतुष्टि नहीं मिलती है, और कितना पढेंगे?
    वैसे लिखा अच्छा है पर आप तो इतना पढ़ते हैं अब आपको ब्लोगिंग पर भी जयादा ध्यान देना चाहिए. आप ही कहते हैं की यहाँ हिंदी की सामग्री का अभाव है तो आप जैसे लोग ही पूरा करेंगे.

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  8. भाईजी हम लोग आपकी ये पोस्ट पढ़कर हंस रहे थे की इतना पड़ने के बाद भी आपको संतुष्टि नहीं मिलती है, और कितना पढेंगे?
    वैसे लिखा अच्छा है पर आप तो इतना पढ़ते हैं अब आपको ब्लोगिंग पर भी जयादा ध्यान देना चाहिए. आप ही कहते हैं की यहाँ हिंदी की सामग्री का अभाव है तो आप जैसे लोग ही पूरा करेंगे.

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  9. सर जी ये सीख क्यों,
    धाक के तीन पात हैं,
    इनमें सुधार क्यों,
    ये करेंगे वही जो है करना,
    आप का कहा मानेगे,
    ऐसा सोच के मत चलना.
    अच्छा लिखा है तो बधाई ले लो,
    मन को अच्छा कर लो.

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  10. सर जी ये सीख क्यों,
    धाक के तीन पात हैं,
    इनमें सुधार क्यों,
    ये करेंगे वही जो है करना,
    आप का कहा मानेगे,
    ऐसा सोच के मत चलना.
    अच्छा लिखा है तो बधाई ले लो,
    मन को अच्छा कर लो.

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  11. सर जी ये सीख क्यों,
    धाक के तीन पात हैं,
    इनमें सुधार क्यों,
    ये करेंगे वही जो है करना,
    आप का कहा मानेगे,
    ऐसा सोच के मत चलना.
    अच्छा लिखा है तो बधाई ले लो,
    मन को अच्छा कर लो.

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  12. आजकल टी वी ज्यादा देखना हो रहा है उसी के असर में तीन बार टिपण्णी,
    हा हा हा
    ये वाली बस एक बार.

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  13. असल में लेखन के लिए जितना पढ़ना जरूरी है उस से भी अधिक समाज के बीच जाकर समाज की मानसिकता को पढ़ना जरूरी है। पढने से तो हमें विधा विशेष के सांचे का ध्‍यान रहता है लेकिन नवीन प्रसंग तो लोगों के बीच जाकर ही मिलते हैं।

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  14. पढ़ना बहुत जरुरी है...अच्छी और जरुरी सलाह!!

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  15. मैं अजित जी के विचारों का समर्थन करती हूँ, लेखन का विचार और विषय समाज से मिलते हैं तभी तो साहित्य समाज का दर्पण कहा जाता है. भाषा , शैली और लेखन तो आपके पास है लेकिन विषयों का निर्माण तो हम अपने बीच में ही रह करते हैं न. फिर भीमैं पढ़ने की महत्ता का विरोध नहीं कर रही हूँ.

    --

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  16. बिना पढे आज तक कुछ हासिल हुआ ही नही किसी को

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  17. बिना पढे आज तक कुछ हासिल हुआ ही नही किसी को

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