15 जून 2010

प्रधानमंत्री कार्यालय में हिन्दी की हालत भी देख लें....वाह! वाह!

पी एम् कार्यालय में पढ़ी जाने वालीं पत्रिकाओं और समाचार पत्रों की स्थिति के बारे में आज एक ब्लॉग में देखा साथ में हिन्दी भाषा की पत्र पत्रिकाओं की हालत (संख्या के आधार पर) देखी तो सोचा कि आपके साथ इस स्थिति को बाँट लें

ये जानकारी सूचना अधिकार से मिली है....

सभी चित्र उसी ब्लॉग से साभार लिए हैं..... सूचना एक्सप्रेस नामक इस ब्लॉग का इस सूचना से सम्बंधित लिंक नीचे है

यहाँ क्लिक करके आप सूचना देख सकते हैं







पत्रिकाओं की 45 की संख्या में हिन्दी की पत्रिकाएं सिर्फ 02 ==== ये हास्यास्पद है या नहीं पता नहीं.....

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समाचर पत्र जरूर सुखद स्थिति में हैं.....कुल 43 की संख्या में से 10 हिन्दी भाषी हैं.....ताली बजाओ...
ये पी एम् कार्यालय की हालत है....हिन्दी भाषा के प्रति...
जय हो....


14 टिप्‍पणियां:

  1. आखिर हिंदी अपनी हार गयी,
    हिंद के गले की 'हार' गयी.
    होता है कष्ट कहें कैसे ?
    यह हिंदी हिंद में हार गयी.

    यह 'आह' - 'वाह' की बात नहीं,
    दिल पर भी नया आघात नहीं.
    दिल भरा - भरा है घावों से,
    है कष्ट दिलों से भाषा की प्यार गयी.

    हर देश की अपनी भाषा है,
    क्यों भारत में ही निराशा है?
    एक जुबाँ के लिए तरसते हैं,
    बाहर तो खूब गरजते हैं.

    जब सदन में चर्चा उठती है,
    हिंदी की लुटिया डूबती है.
    हाउस में वो शर्माते हैं,
    जो हिंदी की ही खाते हैं.

    चुप बैठे वे क्यों रहते हैं?
    जो बाहर खूब गरजते हैं.
    क्या भय है अन्दर उनके,
    जो घुट-घुट कर वे सहते हैं?

    अब आंग्ल भाषा आयी है,
    दिलों पर सबके छाई है.
    यह नटखट छैल-छबीली है,
    यह कटी पूँछ की बिल्ली है.

    हिंदी के घर की खाती है,
    पर 'हाई', 'हेल्लो" करती है.
    हिंदी को समझती चुहिया सा,
    पंजों से वार ये करती है.....

    जब से संगति हुयी इससे,
    वे बन गए तब से 'रंगे सियार',
    पहले बदले वस्त्र - विचार,
    फिर बदल गए सारे व्यवहार.

    जाब सूट - बूट में आते हैं,
    अंग्रेजी में गुर्राते हैं.....
    जब बाँध के पगड़ी आते हैं,
    बैठे - बैठे शर्माते हैं......

    अब आचरण एक पहेली है,
    रहस्यमयी एक हवेली है.
    है बुढ़िया यह जादूगरनी सी,
    वे समझे यह नई - नवेली है.

    यह पर्दा कौन हटाएगा ?
    वह वीर कहाँ से आयेगा ?
    अब भी तुम जगे नहीं भाई!,
    निश्चय ही 'क्लीव' कहलायेगा.

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  2. bahut sahi, kya kaha jaye? HINDI hai aakhir aur hindi me patrikayen nikalti hi kahan hain?
    soochana achchhi hai. aabhar

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  3. bahut sahi, kya kaha jaye? HINDI hai aakhir aur hindi me patrikayen nikalti hi kahan hain?
    soochana achchhi hai. aabhar

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  4. भाईजी हिंदी की पत्रिकाएं प्रधानमंत्री के कार्यालय में पढ़ी भी कैसे जायेंगीं, ये भी कहीं खाने खिलाने का मामला तो नहीं है?
    वैसे एक सूचना ये भी मांगी जाए की क्या साहित्यिक पत्रिकाएं नहीं मांगी जातीं?

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  5. भाईजी हिंदी की पत्रिकाएं प्रधानमंत्री के कार्यालय में पढ़ी भी कैसे जायेंगीं, ये भी कहीं खाने खिलाने का मामला तो नहीं है?
    वैसे एक सूचना ये भी मांगी जाए की क्या साहित्यिक पत्रिकाएं नहीं मांगी जातीं?

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  6. यह तो होना ही था. a tryst with destiny से ही पता चल गया था.

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  7. ताली बजाओ इटालियन पत्रिकाएं नहीं आती.

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  8. इसमें क्या समस्या है... जो जिस भाषा को पढाना चाहता है पढ़े...

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  9. English devi aap pahle dikha chuke...
    Hindi ke sath ye kam hai ki 2-4 to aati hain.

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  10. मन के मन को नहीं मोहा हिंदी ने !

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  11. रंजन जी मामला किसी भाषा को पढने या न पढने का नहीँ हिन्दी के पढने न पढने का है
    जब प्रधानमंत्री कार्यालय ऐसा करेगा तो बाकी जगह की हालत समझी जा सकती है।

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  12. ये सब सुधरने वाले तो हैं नहीं.. ये सब पढ़ कर मन दुःख से भर जाता है..

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