14 नवंबर 2022

कभी 'ना' भी बोलिए

सबके काम आना एक सहयोगात्मक, सकारात्मक सोच हो सकती है किन्तु बिना अपना आगा-पीछा सोचे दूसरों के लिए काम करते जाना न तो सहयोगात्मक है और न ही सकारात्मक. इस तरह का रवैया भले ही प्रथम दृष्टया इस रूप में बेहतर लगता हो कि व्यक्ति सबके काम आता है, सभी के काम सहजता से कर देता है किन्तु यदि इसे मानवीय व्यवहार के सन्दर्भ में देखा जाये तो यह एक तरह की नकारात्मकता है. अपने समय, स्वास्थ्य, श्रम की परवाह किये बिना सिर्फ दूसरों के काम करते जाना, दूसरों के लिए काम करते जाना, दूसरों की जिम्मेवारियों को अपने कन्धों पर ढोते जाना समझदारी नहीं है. भले ही ऐसा करने वाले व्यक्ति को लगता हो कि वह कोई बहुत बड़ा काम कर रहा है, बहुत बड़ी जिम्मेवारी का निर्वहन कर रहा है किन्तु वास्तविकता में वह अपने ही व्यक्तित्व विकास के प्रति नकारात्मकता बना रहा है, अपने परिवार के प्रति अन्याय सा कर रहा है.  


सुबह से हरीश परेशानी में अनाप-शनाप बातें खुद से किये जा रहा था. उसके काम करने की शैली से लग रहा था जैसे वह गुस्से में है. हड़बड़ी में उसने नाश्ता भी नहीं किया बस जल्दी-जल्दी काम निपटाने में लगा था.उसकी पत्नी के लिए ये दृश्य नया नहीं था. वह समझ गई थी कि उसके ऑफिस में किसी ने फिर अपना काम चतुराई से हरीश के सिर लाद दिया है. किसी कारणवश हरीश इंकार न कर पाया होगा, अब अपने काम के साथ-साथ दूसरे का काम भी उसको परेशान कर रहा है. काम की इस अनावश्यक अधिकता के कारण वह न खुद पर ध्यान दे पाता है और न ही अपने परिवार पर. यही उसके लिए तनाव का कारण भी बनता है.


किसी भी संस्थान में धीरे-धीरे ऐसा वातावरण बनाया जाता है जिससे व्यक्ति दूसरों के काम करने को, दूसरों की जिम्मेवारियां उठाने को अपना सहयोग, अपना कर्तव्य समझने लगता है. यह एक-दो बार के लिए सुखद स्थिति हो सकती है, सदैव के लिए नहीं. इस तरह का रवैया अपनाने के बाद सम्बंधित संस्थान में अन्य लोगों की मानसिकता अपना काम उसी व्यक्ति के सिर पर डालने की हो जाती है. ऐसा करने में भले ही सहयोग समझ आ रहा हो मगर तथ्य यह होता है कि वह व्यक्ति ना नहीं कर पाता है, वह व्यक्ति किसी दूसरे का काम या उसकी जिम्मेवारी को उठाने से इंकार नहीं कर पाता है. किसी बात को इंकार न कर पाने के कारण वह अपने काम करने के बजाय दूसरों के काम करता रहता है. अपनी जिम्मेवारियों को पूरा करने के बजाय वह दूसरों की जिम्मेवारियों को उठाता रहता है. अपने व्यक्तित्व विकास, अपने कैरियर निर्माण के बजाय दूसरों के हितार्थ श्रम करता रहता है.


ऐसी स्थिति से बचने के लिए उस व्यक्ति को ना कहना सीखना होगा. कभी-कभी सिर्फ एक ना कहना भी बहुत अधिक लाभदायक सिद्ध होता है. इसके लिए यह आवश्यक नहीं कि किसी भी तरह से अशालीन भाषा में सामने वाले को ना कहा जाये. वह व्यक्ति विनम्रता से अनावश्यक काम को नकारते हुए कह सकता है कि अभी उसके पास समय नहीं है, उसे वह समय अपने परिवार के लिए देना है. ऐसी अनावश्यक स्थिति से रीमा को अक्सर अपने कार्यालय में सामना करना पड़ता था. वहाँ किसी भी तरह का काम हो, कोई आयोजन हो, कोई गोष्ठी हो सभी की जिम्मेवारी रीमा के सिर पर आ जाती थी. शुरू में तो उसे ये सारे काम अपनी प्रतिभा को निखारने वाले लगे. उसे यह भी महसूस हुआ कि वह एक जिम्मेवार व्यक्ति के तौर पर पहचानी जा रही है. जब उसे महसूस हुआ कि इससे उसका व्यक्तिगत जीवन प्रभावित हो रहा है तो एक दिन उसने बड़े शालीन भाव से अपने बॉस से कहा कि सर, आज उसके सास-ससुर आये हुए हैं. उनके और बच्चों के साथ बाहर घूमने का कार्यक्रम बनाया है अन्यथा मैं इस काम को अवश्य कर देती. एक बार रीमा जब ना कहना सीख गई तो उसके बाद उसके लिए काम करना सहज हो गया.    


यहाँ व्यक्ति को यह ध्यान रखना होगा कि उसके द्वारा किसी भी अनावश्यक काम के लिए इंकार करने पर किसी भी तरह का अफ़सोस करने की आवश्यकता नहीं है. किसी भी काम के लिए हाँ अथवा ना कहना किसी भी व्यक्ति का अपना अधिकार है. ये जानते-समझते हुए भी जिस काम को उनके सिर पर थोपा जा रहा है वह नितांत अनावश्यक है अथवा कि उसका उससे कुछ लेना-देना नहीं है, व्यक्ति का इंकार न कर पाना उसके व्यक्तित्व की बहुत बड़ी कमी कही जाती है. इस तरह की कमी भले ही तात्कालिक रूप में किसी तरह के नकारात्मक परिणाम न दे किन्तु दीर्घकालिक अवधि में यह कमी व्यक्ति को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है. ना न कर पाने की आदत के चलते, इंकार करने के स्थान पर किसी भी काम, जिम्मेवारी को स्वीकार करने के स्वभाव के कारण जब उसी व्यक्ति के काम बाधित होने लगते हैं, समय की बर्बादी समझ आने लगती है, उसके विकास-क्रम में अवरोध आने लगते हैं, परिवार के लिए भी वह यथोचित समय नहीं दे पाता है तो उसके भीतर एक तरह का आक्रोश, एक तरह का चिड़चिड़ापन पैदा होने लगता है. वह व्यक्ति भले ही अपने स्वभाव के कारण अपनी प्रतिक्रिया न दे किन्तु उसकी नकारात्मकता उसके स्वयं के लिए कष्टकारी होने लगती है. ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि उन सबके लिए उसे न तो कोई यथोचित परिणाम प्राप्त होता है और न ही किसी तरह का रिवार्ड हासिल होता है, क्योंकि वे काम दूसरों के थे, दूसरों की जिम्मेवारियाँ थीं, अनावश्यक कार्य थे.


कई बार व्यक्ति किसी काम के लिए ना इसलिए भी नहीं कहता या कह पाता है क्योंकि उसे लगता है कि इससे सामने वाले से उसके सम्बन्ध प्रभावित हों. ऐसी किसी भी सोच से बचते हुए सामने वाले के साथ पूरी ईमानदारी बरतते हुए उसे अपने समय, अपने श्रम, अपनी जिम्मेवारी के बारे में बताएं. मधु अक्सर इसी कारण से अनावश्यक कामों में लगा डी जाती. उसे लगता कि उसका अधिकारी उम्र और अनुभव में उससे बड़ा है. इसके अलावा उसके बॉस और उसके पति का बहुत पुराना परिचय है. उसका इंकार इस सम्बन्ध को बिगाड़ न दे, ये सोचना भी मधु को ना नहीं करवा पाता और वह अनचाहे से अनेक काम करने में अपना समय बर्बाद कर देती. यहाँ ध्यान रखने वाली बात यह है कि जब सामने वाला व्यक्ति अनावश्यक कामों को थोपते समय किसी तरह से संबंधों का लिहाज नहीं कर रहा है तो उसके साथ संबंधों की परवाह करते हुए अपने आपको अनावश्यक कार्य में संलिप्त कर लेना उचित नहीं. यदि संस्थान का, साथी का काम कर दिया तो क्या गलत कर दिया वाली सोच के व्यक्ति को समझना चाहिए कि उसके पहले भी उन कार्यों का निष्पादन होता रहा है. किसी न किसी के द्वारा उन कार्यों का सम्पादन होता रहा है. ठीक उसी तरह से कार्यों का सम्पादन वर्तमान में भी हो सकता है. यहाँ यह भी महत्त्वपूर्ण है कि एक व्यक्ति द्वारा इंकार न करने की आदत के कारण अन्य लोग कार्य करने की प्रवृत्ति से बचने लगते हैं. यह स्थिति भी किसी संस्थान की उन्नति की दृष्टि से सही नहीं है.


किसी की परेशानी सुलझाना, उसकी मदद करना, उसकी जिम्मेवारियाँ पूरी करना एक अच्छी बात है लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि यह आदत कहीं मुसीबत न बन जाए. किसी की परेशानी हल करने पर, किसी कार्य को करने पर जो संतोष मिलता है उसका आनंद लिया जाना चाहिए किन्तु पल भर के इस आनंद के लिए ख़ुद को मुसीबत में मत डालिए. इसलिए अनावश्यक कार्यों से बचने के लिए, अपने समय को बचाने के लिए, अपने स्वास्थ्य के लिए, अपने परिवार की ख़ुशी के लिए ना कहना भी सीखिए, इंकार करना भी शुरू करिए. 

 





 

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