16 नवंबर 2022

एहसासों का दरिया....

भावनाओं का अतिरेक

उमड़ते देखा,

एहसासों का दरिया

इस आँख से उस आँख तक

मचलते देखा,

नजरें चुरा कर

आँखों की बारिश

थामने की कोशिश,

शब्द-शब्द पर लबों को

लरजते देखा।


उक्त पंक्तियाँ पोस्ट के लेखक की ही हैं. कई बार कुछ पंक्तियाँ ही समूची मनोदशा की परिचायक होती हैं. इन पंक्तियों में भी कुछ ऐसा ही है. भावनाओं, एहसासों, संबंधों आदि महज शब्द नहीं होते हैं, यदि इनको माना जाये, इनकी गहराई को समझा जाये तो ये बहुत अधिक आत्मीय और संवेदना से भरे शब्द होते हैं. दो-चार वर्णों से बने इन शब्दों में किसी भी व्यक्ति को बाँधे रखने की शक्ति होती है. कितना भी कठोर दिल इन्सान हो उसकी आँखों को नम कर देने की क्षमता भी इन शब्दों में होती है.


आज के दौर में जहाँ बहुतायत सम्बन्ध, रिश्ते स्वार्थपूर्ति के लिए बनाये जाने लगे हैं वैसे में भावनात्मकता से भरे संबंधों का अपना ही महत्त्व है. इस महत्ता को, इन संबंधों को वही समझ सकता है जो इनको उसी गंभीरता से निभाता हो. इस स्थिति से दो-चार होने पर एहसास हुआ कि कई बार शब्द कम पड़ जाते हैं, अपनी बात कहने के लिए. बात को कहने से ज्यादा शब्दों को रोकने की कोशिश करनी पड़ती है. शब्दों से ज्यादा आँखों की नमी सबकुछ कह देने को व्याकुल सी दिखती है. खुद को कमजोर न पड़ने देने के साथ-साथ सामने वाले को भी कमजोर न होने देने का प्रयास करना पड़ता है. समझ नहीं आता है कि शब्दों को प्रकट कर देना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है या फिर उनको रोके रखना? आँखों की नमी को छिपाना ज्यादा मुश्किल है या फिर नजरों का न मिलाना?


बहरहाल, ये हमारा व्यक्तिगत अनुभव रहा है कि बहुत से क्षणों में बात को न कहना, आँखों की नमी का छलकना, नज़रों का सामने वाले की नजर से बचाना ही सबकुछ कह देता है. इस सबकुछ कहे जाने को समझना ही महत्त्वपूर्ण है. 




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