02 अगस्त 2022

नंगत्व के पीछे की तार्किकता

एक अगले ने बिना कपड़ों के कुछ फोटो क्या दिखा दीं, सबके आदर्श सामने आ गए. अरे समझो-सीखो कुछ. परिधानयुक्त समाज में परिधान-मुक्तता अपने आपमें एक आन्दोलन है. आदिमानव ने जितनी मेहनत के बाद वस्त्रों का निर्माण करके मनुष्य को परिधानयुक्त बनाया, मानव ने उतनी ही सहजता से स्वयं को वस्त्र-विहीन करने का कदम उठाया. इस वस्त्र-विहीनता को भी विभिन्न तरीके से, विभिन्न विद्वतजनों ने, विभिन्न परिभाषाओं में आबद्ध किया है. पूर्णतः वस्त्र-विहीन विचरण करने वालों को जानवर की संज्ञा से सुशोभित किया गया. 


इसी प्रकार से एक अन्य प्रजाति है, जो वस्त्र-युक्त होते हुए भी गाहे-बगाहे वस्त्र-विहीन होने की कोशिश करती है. कलाकारों की श्रेणी में विचरण करता यह नग्न प्राणी स्वयं वस्त्र-मुक्त होकर खुद को मॉडल के रूप में प्रदर्शित करता है. इन्हीं के बीच कभी-कभी एक ऐसी भी प्रजाति देखने को मिल जाती है जो परिधानों से सुसज्जित होने के बाद भी परिधान-विहीन दिखाई देती है. इस प्रजाति के लिए परिधानों का होना, न होना एक समान भाव में होता है. इसके परिधान कभी अपने आप ढलक जाते हैं, तो कभी-कभी इनके उठने-बैठने से इनको परिधान-विहीन बना देते हैं. ये अत्यंत उच्च श्रेणी की प्रजाति होती है जो पेज थ्री पर शोभायमान होती है. इसके लिए परिधान-विहीन होना स्टेटस सिम्बल माना जाता है.




वस्त्र-विहीनता की इन स्थितियों को सभ्यता का मुलम्मा चढ़ाकर नग्न, अर्द्ध-नग्न, टॉपलेस आदि-आदि के नामों से पुकारा-पहचाना जाता है, वहीं आम, अनौपचारिक बातचीत में ये सभी वस्त्र-विहीन प्रजातियाँ ‘नंगे’ ही कहे जाते हैं. कई बार लगता है कि वस्त्र-विहीन होने को आतुर प्रजातियों को, वे चाहे स्त्री हों या पुरुष, प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है. समाज का बहुत-बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो समूची देह को वस्त्रों के बंधन में रखता है. प्राकृतिक आबो-हवा से दूर रखना भी देह के साथ ज्यादती ही है और किसी भी देश का कानून किसी की भी देह के साथ ज्यादती करने की अनुमति नहीं देता है.


समस्या इनके वस्त्र-विहीन होने में नहीं बल्कि लोगों की सोच में है. कभी कुछ किया हो खुल्लमखुल्ला, तब तो उसका मजा समझें. अरे लोग क्या जानें खुलेआम कुछ भी करने का मजा. ये उस ज़माने की संतानें नहीं जो घनघोर बंदिश में रहती थीं. ये तो उस ज़माने में जन्मे हैं जहाँ खुलापन ही इसकी विशेषता है, जहाँ आधुनिकता में रचे-बसे दिखना ही इनकी महानता है, जहाँ पर्दों को फाड़ देना, बंदिशों को तोड़ देना इनकी खासियत मानी जाती है. ये समझे बिना लोगों को जब देखो शुरू हो जाना है सभ्यता, संस्कृति, शालीनता, अश्लीलता, आधुनिकता का लेक्चर देने. ये करना सही है, वो करना गलत है; ये करने से संस्कृति खतरे में पड़ेगी, वो करने से संस्कृति का विकास होगा; ये करना शोभा नहीं देता, वो करना सही है. क्या यार! हर बात में नुक्ताचीनी, हर काम में टांग अड़ाना, कभी तो फ्री होकर कुछ करने दिया करो.


अरे, बेवजह नुक्ताचीनी करते लोगों को इनके इस काम में नग्नता, अश्लीलता, नंगई दिखाई देती है. मैदान में, पार्क में, बाज़ार में, मॉल में, पार्टी में, पब में, बार में, स्कूल में, ऑफिस में, सड़क में, मेट्रो में, बस में, ट्रेन में, कार में, बाइक में... जहाँ भी जैसे भी हो इनको नंगई दिखाने का मौका मिल ही जाता है. अब ये मौके का इंतज़ार नहीं करते बल्कि मौके इनके इंतज़ार में बैठे होते हैं.


वैसे देखा जाये तो ये लोग कहीं न कहीं अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं. आखिर हम सभी लोग मानते हैं कि इंसान आधुनिक होते जाने के चलते अपनी जड़ों से कटता जा रहा है. ये तमाम प्रजातियाँ भले ही मॉडलिंग के नाम पर, भले ही कलाकारी के नाम पर, भले ही कलात्मकता के नाम पर वस्त्र-विहीन ही क्यों न हो रही हों किन्तु अपनी जड़ों से समाज के बहुसंख्यक वर्ग को जोड़ने का कार्य कर रही हैं. परिधान के बंधनों से परिधान-मुक्तता की ओर बढ़ता, आधुनिकता से अपनी जड़ों की ओर लौटता इनका आन्दोलन सफलता की राह पर अग्रसर है. आखिर इन्हीं जैसे चंद लोग संस्कृति, सभ्यता का नित्य ही बलात्कार कर पाशविकता को जन्म दे रहे हैं. काश! परिधान इनको बंधन का नहीं अलंकरण का पर्याय समझ आता?


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