किसी समय जुलाई
महीना आने की ख़ुशी होती थी. बाद में ये ख़ुशी बढ़ गई. ख़ुशी इसलिए बढ़ गई क्योंकि जिस
छोटे भाई का जन्मदिन इसी माह पड़ता है, उसकी जीवन संगिनी
का जन्मदिन भी इसी माह पड़ता है. इस ख़ुशी में बढ़ोत्तरी उस समय हुई जबकि हमारे छोटे
भाई समाज शरद ने पत्र लेखन को लेकर एक अभियान छेड़ दिया. शरद वर्तमान में
पत्रकारिता से जुड़े हैं और जाना-पहचाना नाम हैं, उनके बारे में फिर कभी.
हो सकता है कि
बहुत से लोगों को जानकारी न हो कि 31 जुलाई को विश्व पत्र दिवस मनाया जाता है. इस
दिन को मनाये जाने के पीछे कारण यही है कि लोग एक-दूसरे को पत्र लिखें. यदि हम
इससे इतर व्यक्तिगत अपने स्तर पर बताएँ तो 31 जुलाई हमारे लिए ख़ुशी का एक और कारण
लेकर आई है. इस दिन हमारी बेटी का जन्म हुआ था. जहाँ एक तरफ लोग इस दिन को
प्रेमचंद जयंती के रूप में मनाते हैं, वहीं हम इसे अपनी
बेटी के जन्मदिन के रूप में और पत्र दिवस के रूप में मनाते हैं.
पत्र दिवस
मनाये जाने का कोई ख़ास कारण नहीं मगर इतना ख़ास है कि हम आज के ई-मेल, सोशल मीडिया सन्देश के ज़माने में लोगों को पत्र
लिखते हैं. इस आश्चर्य के ऊपर एक आश्चर्य ये कि पत्र हम अपनी हस्तलिपि में लिखते
हैं, वो भी फाउंटेन पेन से. पत्र लिखने के
संस्कार बचपन से ही हमारे अन्दर आ गए थे. वैसे देखा जाये तो किसी भी बच्चे में
किसी भी चीज के संस्कार उसके परिवार से आते हैं, उसके आसपास के माहौल से आते हैं. आज तो मोबाइल का जमाना है, इंटरनेट का युग है, ऐसे में कौन पत्र लिखने की तरफ ध्यान देता है.
इसी युग के
सापेक्ष हम जब अपने उस पत्र लेखन वाले युग को याद करते हैं तो वही ज्यादा सुखद
लगता है. उस दौर में भावनाओं को सुरक्षित रख पाना संभव था. आज सारे एहसास, सारी भावनाएँ एक क्लिक पर निर्भर हैं. उस दौर
में दिन भर डाकिये का इंतजार रहता था, आज बार-बार घंटी
बजाने वाले नोटिफिकेशन सर दर्द समझ आने लगते हैं.
बहरहाल, यदि पत्रों पर लिखने बैठे तो पोस्ट लम्बी हो
जाएगी. इधर इंटरनेट ने वर्तमान पीढ़ी को कुछ इस तरह का बना दिया है कि वह लम्बी
पोस्ट पढ़ना ही नहीं चाहती. और वैसे भी उसने पत्रों की दुनिया को देखा नहीं है, उसका एहसास नहीं किया है तो उसके लिए यह पोस्ट
किसी काम की नहीं. यह पोस्ट तो हम जैसे उन लोगों के लिए है जिन्होंने पत्र के
एहसास को देखा है, जिया है.
31 जुलाई, विश्व पत्र दिवस की सभी को शुभकामनायें.
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