26 जुलाई 2022

मुस्कुराने और ग़म छिपाने का सह-सम्बन्ध

‘तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, क्या ग़म है जिसको छिपा रहे हो, किसी गीत की इस पंक्ति ने साबित करने का प्रयास किया है कि जो मुस्कुरा रहा है या हँस रहा है वह अपने दर्द को छिपा रहा है. इसकी जानकारी नहीं कि समाज में इस तरह की अवधारणा इस गीत के बाद स्थापित हुई या इसके पहले से थी कि जो व्यक्ति हँस रहा है, मुस्कुरा रहा है वह अपने भीतर किसी दर्द को, किसी दुःख को छिपाए है. अब इस बात में कितनी सच्चाई है ये तो वही बताएगा जो ऐसा कर रहा है किन्तु हमने अपने व्यक्तिगत अनुभव से इसके सापेक्ष कुछ सीखा है.


ये कतई आवश्यक नहीं कि जो हँस रहा है, खिलखिला रहा है उसके अन्दर दर्द ही हो. ये भी आवश्यक नहीं कि अपने भीतर अपने दुःख, कष्ट को छिपाए रखने की कोशिश करने वाला ही हँसता, मुस्कुराता है. यदि गीत की उक्त पंक्ति को सच मान लें, समाज में चली आ रही अवधारणा को ही सच समझ लें तो इसका एक सीधा सा अर्थ हुआ कि जो हँस नहीं रहा है, खामोश है, शांत है उसे किसी तरह का कष्ट नहीं; वह अपने भीतर किसी तरह के दर्द को छिपाए नहीं है. इस बहस में न पड़ते हुए कि किसे दुःख है, किसे दर्द है, कौन छिपा रहा है, कौन नहीं छिपा रहा है यहाँ हम अपने अनुभव को शेयर करना चाहेंगे.




दुःख सबके पास हैं, दर्द सबके साथ हैं ये बात और है कि किसी के पास अधिक हैं, किसी के पास कम हैं. ऐसे में समाज में सभी को हँसते हुए, मुस्कुराते हुए दिखना चाहिए था. मगर ऐसा दिखता नहीं है. असलियत ये है कि जिसके पास दर्द हैं, दुःख हैं वे इसलिए हँसते, मुस्कुराते हैं ताकि तुम हँस-मुस्कुरा सको. दर्द को, दुःख को, कष्ट को सहने वाला अच्छी तरह से उस एहसास को समझता है. वह जानता है कि यदि वह अपने दर्द, दुःख को व्यक्त करने लगेगा तो तुम सब उसके आसपास से भाग जाओगे. तुम सब ही उसकी बुराई करने लगोगे. तुम सबके कष्ट, दुःख, दर्द उसके कष्ट से कई-कई गुना अधिक होकर सामने आने लगेंगे.


इस स्थिति से कि तुम अगले व्यक्ति के कष्ट से, दुःख से, दर्द से बचकर भाग न निकलो; कहीं तुम ये समझने लगो कि अगला व्यक्ति अपने दुःख में तुमसे कोई सहायता चाहता है; कहीं तुम इस आशंका से न घिर जाओ कि अगले के दर्द को तुम्हें बाँटना पड़ेगा, उसकी आर्थिक सहायता करनी पड़ेगी इसलिए अगला हँसता है. तुम्हारे दिमाग में, दिल में उठ रही अनर्गल बातों को रोकने के लिए अगला अपने दर्द को छिपा कर हँसता है, मुस्कुराता है.


फिर ध्यान रखो कि गीत की पंक्ति भले कहती हो कि तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, क्या ग़म है जिसको छिपा रहे हो, मगर सत्यता यही है कि वो तुम्हारी हँसी गायब न हो इसलिए हँस रहा है, तुम्हारी मुस्कराहट को ग्रहण न लगे इसलिए वो मुस्कुरा रहा है. ये और बात है कि तुम उसकी हँसी में भी दुःख देखते हो, ग़म खोजते हो, दर्द तलाशते हो. कभी एक बार गीत की पंक्ति से बाहर आकर उसकी हँसी, ठहाकों के बाद छलक आये आँसुओं को देख लिया करो, उसमें छिपे एहसास को समझ लिया करो. यदि वाकई ऐसा कर सके तो फिर इस गीत की पंक्ति को, समाज में चली आ रही इस अनर्गल अवधारणा को दूर कर सकोगे.   


1 टिप्पणी:

  1. इस विषय पर हर लोगों की अलग-अलग राय होगी। फिल्म में दर्शाए गीत के साथ जो परिदृश्य है, उसके लिए यह सटीक है। पर वास्तविक संसार में हर आदमी के जीवन में -सुख-दुःख शामिल है। कोई चुप रहता है कोई हँसता रहता है। किसी के हँसने से दोनों ही अनुमान ग़लत हो सकते हैं। इसलिए बेहतर है कि जिससे जैसा सम्बन्ध-व्यवहार हो उसी के अनुसार सोचना चाहिए। कोई हँस रहा हो तो साथ हँसे, रो रहा हो तो साथ रो लें। संवेदना क़ायम रहे.

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