अभी हमारे एक मित्र का फोन आया कि सेल्फी को लेकर युवाओं में छाये पागलपन पर कुछ लिखो. इधर बहुत लम्बे समय से कुछ मनःस्थिति ऐसी है कि कुछ भी लिखने का मन नहीं कर रहा. ऐसी स्थिति में कुछ नया न लिख पा रहे थे. कई बार कोशिश की कि मित्र के लिए ही कुछ लिख दिया जाये मगर दिल-दिमाग ने साथ न दिया. ऐसे में एक पुरानी पोस्ट याद आई. उसी को भेज दिया उसके उपयोग के लिए. बाद में विचार किया कि उस पोस्ट को आज फिर लगाया जाये, आखिर आज भी सेल्फी का जूनून सिर चढ़ कर बोल रहा है.
दूरसंचार तकनीक में आई क्रांति ने घर के किसी कोने में रखे फोन को मोबाइल में बदला और उसी तकनीकी बदलाव ने मोबाइल को बहुतेरे कामों की मशीन बना दिया. विकासशील देश होने के कारण अपने देश में स्मार्टफोन का चलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है. यहाँ मोबाइल को आजकल बातचीत के लिए कम और सेल्फी फोन के रूप में ज्यादा प्रचारित किया जा रहा है. कम्पनियाँ भी मोबाइल को सेल्फी के विभिन्न लाभों के साथ बाजार में उतार रही हैं. इस कारण नई पीढ़ी तेजी से इस तरफ आकर्षित हुई है. इसकी सशक्तता यहाँ तक तो ठीक थी मगर सोशल मीडिया के बुखार ने सभी को अपनी गिरफ्त में ले लिया है. खुद को अधिक से अधिक प्रचारित, प्रसारित करने के चक्कर में मोबाइल कैमरे का उपयोग सामने वाले की, प्राकृतिक दृश्यों के चित्र खींचने से अधिक सेल्फी लेने के लिए होने लगा है. जगह कोई भी हो, स्थिति कोई भी हो, अवसर कोई भी हो व्यक्ति सेल्फी लेने से चूकता नहीं है.
ये शौक अब जानलेवा साबित हो रहा है. देश की गंभीर समस्याओं में से एक प्रमुख है मोबाइल कैमरे के द्वारा सेल्फी लेने में दुर्घटना होना. नई पीढ़ी इस जाल में बुरी तरह फँस चुकी है. आज हर कोई रोमांचक, हैरानी में डालने वाली एवं विस्मयकारी सेल्फी लेने के चक्कर में अपनी जान की भी परवाह नहीं कर रहा है. कभी ऊंची पहाड़ी की चोटी पर, कभी बीच नदी की धार में, कभी बाइक पर स्टंट करते हुए, कभी ट्रेन से होड़ करते हुए. वे अपनी मनचाही तस्वीरें खींचते हैं और सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर अपने दोस्तों से शेयर करते हैं. इसमें उनमें फैशन और आधुनिक होने के भाव झलकते हैं. यह हरकत इसलिए भी चिंतनीय है क्योंकि ये काम पढ़े-लिखे युवाओं द्वारा किया जा रहा है.
देश में पर्यटन केन्द्रों पर इस तरह के सूचना बोर्ड लगाने का काम तेजी से चल रहा है, जिसमें पर्यटकों से अनुरोध किया गया है कि वे सेल्फी लेते वक्त सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें. इसके बाद भी रोज ही दुर्घटनाएं हो रही हैं. यह समझ से पर है कि खुद को किसलिए, किसके लिए सबसे अलग दिखाने की कोशिश की जाती है? क्यों खतरनाक जगहों पर जाकर स्टंट करते हुए सेल्फी लेने की कोशिश की जाती है? क्यों तेज रफ़्तार बाइक पर, तेज गति से भागती ट्रेन पर सेल्फी लेकर खुद को क्या सिद्ध किया जाता है? इस तरह की जानलेवा हरकतों को सिवाय पागलपन के कुछ नहीं कहा जा सकता है. इस पागलपन को नियंत्रित किये जाने की आवश्यकता है. मोबाइल जिस काम के लिए बना है उसके लिए ही अधिकाधिक उपयोग किये जाने की आवश्यकता है. अन्यथा की स्थिति में यह पागलपन लगातार घरों के चिरागों को बुझाता रहेगा.
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