देखा जाये तो हर एक मौसम का अपना मजा है. जिसको मौसम का मजा लेने की आदत है वो किसी न किसी बहाने उस मौसम का अपनी तरह से उसका आनंद लिया करता है. किसी को गर्मी पसंद है क्योंकि इस मौसम में वह देश-विदेश के बर्फीले स्थानों के घूमने का मौका निकाल लेते हैं. कुछ लोगों के लिए सर्दी पसंद का कारण है क्योंकि उस मौसम का गुलाबीपन मनभावन होता है. कुछ लोगों को बरसात का मौसम उसकी रिमझिम के कारण, भीगते हुए मस्ती करने के कारण पसंद आता है. हर मौसम का अपना आनंद है, हर मौसम का अपना महत्त्व है. हमें भी सभी मौसम अपनी-अपनी विशेषताओं के कारण पसंद हैं मगर बरसात का आना सबसे सुखद लगता है. इसका कारण खुद को बचपन में लौटा ले जाने जैसा अनुभव कराना है. बरसात का आना हमारे लिए आज भी भीगने का सन्देश लाने जैसा होता है. बचपन में तो भीगना, कागज की नाव बनाकर तैराना, एक साथ कई नावों को धागे से बाँधकर तेरा देना, भरे पानी में कूद कर खुद को भिगाते हुए बगल वाले को भिगो देना, मेंढकों की टर्र-टर्र को पकड़ना, बारिश बंद हो जाने के बाद भीगे पौधों को हिलाकर उनकी पत्तियों पर बैठी बूंदों के नीचे आकर भीगना आदि सहज भाव से होता रहता था. यह सहजता हम आज भी बनाये हुए हैं.
ये और बात है कि बचपन से युवावस्था की तरफ बढ़ते रहने
के साथ कार्यशैली बदलती रही. कार्य बदलते रहे. जीवनशैली बदलती रही. जिम्मेवारियाँ
बढ़ती रहीं. इन सबके बदलते रहने के बीच बरसात हर साल अपनी रंगत में आती रही. ये और
बात है कि पर्यावरणीय समस्याओं के चलते अब बरसात अपने उस रूप में नहीं आती जैसी कि
हमारे बचपने में आती थी. क्या कुछ न बदला. समय बदला, बरसात
की रंगत बदली, बारिश की समयसीमा भी बदली मगर यदि न बदला तो
बरसात में मौज-मस्ती करने का हमारा अंदाज. उम्र अपनी जगह, जिम्मेवारी
अपनी जगह, प्रस्थिति अपनी जगह, कार्य
अपनी जगह और बरसात की मस्ती अपनी जगह. कई बार तेज बारिश में सड़क पर खुद को भिगाते
घूमते समय लोगों को दुकानों में, किसी आड़ में, कहीं किसी स्थान पर दुबके खड़े लोगों को देखकर विचार आता है कि क्या इनके
अन्दर बारिश में भीगने की इच्छा नहीं होती? बारिश में भीगने
के डर से दुबके खड़े लोगों में युवाओं को देखकर तो उनके ऊपर तरस आता है. यदि वे इस
अवस्था में खुलकर जीने का आनंद नहीं उठा पा रहे हैं तो उस समय क्या उठाएंगे जबकि
उनके ऊपर परिवार की, अपने कार्य की, पद
की जिम्मेवारी होगी.
कई बार लगता है हमने कि लोग अनावश्यक रूप से
गंभीर बनने की कोशिश में जीवन जीना भूल चुके हैं. बढ़ती उम्र के लोग ये सोचकर बारिश
में नहीं भीगते कि लोग क्या कहेंगे. वे बच्चों के साथ कागज की नाव इसलिए तैराने की
हिम्मत नहीं जुटा पाते कि लोग उन्हें पागल न समझ लें. युवाओं में भी भीगने को लेकर,
पानी में कूदने, नाव तैराने को लेकर संकोच का
भाव है. आजकल के बच्चे, युवा अचानक ही अपनी उम्र से कई गुना
अधिक बड़े-बुजुर्ग बन चुके हैं. जिम्मेवारियों से पहले ही उनके कंधों पर अनावश्यक
जिम्मेवारियाँ डाल दी गई हैं. ऐसा नहीं हैं कि हमारे कंधों पर जिम्मेवारी नहीं,
ऐसा भी नहीं है कि हमारे आसपास के वातावरण में, समाज में हमारी प्रस्थिति-स्थिति दोयम दर्जे की है मगर अपनी जिंदगी को
अपने ढंग से जीने के लिए किसी की क्या परवाह करना. हाँ, हमारी
उन्मुक्तता से, हमारी स्वच्छंदता से, हमारी
मौज-मस्ती से किसी अन्य के जीवन पर, उसकी जीवनशैली पर,
उसके आनंद पर, उसके रहन-सहन पर किसी तरह का
नकारात्मक असर न पड़े, इसका ध्यान रखा ही जाना चाहिए. हम तो
आज भी बारिश का इंतजार उसी बेसब्री से करते हैं जैसे कि बचपन में किया करते थे. आज
भी बारिश होते ही शहर की सड़कों पर विचरना शुरू हो जाता है. भरे पानी में, बहते पानी में नाव का तैराना शुरू हो जाता है.
अभी कुछ दिन पहले दो-तीन दिन कभी-कभी बहुत तेज
बारिश हुई. इसे शायद संयोग ही कहेंगे कि उस समय हम घर से बाहर ही थे. तेज बारिश के
उस मौके पर हमने बजाय दुबक के बैठने के बारिश में घूमने का मौका निकाला. न केवल हम
बारिश में भीगने निकले बल्कि बारिश के तेज समझ आते ही हम घर आये और उस समय घर में
उपस्थित अपनी दोनों बेटियों को स्कूटर में बैठाया और निकल पड़े तेज बारिश का आनंद
लेने. बहुत से परिचित लोगों के लिए यह हँसी-मजाक का विषय बन जाता है मगर एक बार
बच्चा बनकर देखिये, एक बार अपनी बढ़ती उम्र में बचपन को जीकर
देखिये, आपको भी हमारी तरह मजा आएगा,
सुकून मिलेगा.
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