09 सितंबर 2020

विचार थोपना प्राथमिकता में है

जैसे-जैसे हमें अपनी वैचारिकी के प्रसार-प्रचार के माध्यम मिलते जा रहे हैं, वैसे-वैसे हमारे आसपास संकुचन की स्थिति बनती जा रही है. विचारों का प्रसार करने के साथ-साथ हम सभी लोगों के मन में भावना बनी रहती है कि हमारे उन विचारों को स्वीकारने वाले अधिक से अधिक लोग हों. इसी के साथ एक दूसरी स्थिति भी बनती है जो अमूमन स्पष्ट रूप से दिखाई देने के बाद भी छिपी सी रहती है. यह स्थिति होती है कि कुछ भी हो हमारे ही विचारों को स्वीकारना है. स्वीकारने जैसी अवस्था कब थोपे जाने में बदल जाती है पता ही नहीं चलता है. विचारों के प्रस्फुटन से लेकर उसके थोपे जाने तक का जो विकास मानव जाति ने किया है वह अत्यंत विलक्षण कहा जायेगा. यह शायद ही कोई अस्वीकार करे कि इसके पीछे सोशल मीडिया का और लगभग मुफ्त जैसे इंटरनेट का हाथ है.


इंटरनेट की मुफ्त जैसी हालत और सोशल मीडिया के न के बराबर चलन वाले ज़माने में लोगों के विचारों को, उसकी बातों को ज्ञान का आधार समझा जाता था. यह स्वतः ही मान लिया जाता था कि किसी भी व्यक्ति द्वारा व्यक्त किये जा रहे विचार, लोगों के सामने आता ज्ञान उसके अनुभव का, उसकी शिक्षा का सुफल है. इसे किसी गूगल बाबा के द्वारा जन्मा नहीं समझा जाता था, किसी का कॉपी-पेस्ट किया हुआ नहीं बताया जाता था. सामाजिक स्थितियों में आते परिवर्तन के साथ शिक्षा में, वैचारिकी में भी व्यापक परिवर्तन देखने को मिले. विचारों पर किसी का आधिपत्य सा नहीं रह गया. ज्ञान, जानकारी, तकनीक आदि के प्रसार के लिए यह बहुत अच्छा संकेत था मगर इसी के पीछे-पीछे जो शंकाएँ चली आ रही थीं, वे छिपी न रहीं.


अब ज्ञान के लिए, विचारों के लिए, तकनीक के लिए किसी तरह के स्व-अनुभव की आवश्यकता नहीं. किसी तरह के स्व-अध्ययन की कोई आवश्यकता नहीं बस इंटरनेट की कृपा से घूम-टहल कर बस इतना देखना है कि खुद के मन की बात कहाँ लिखी हुई है. उसे कॉपी करना है और अपना बताकर दूसरों तक पहुँचाना है. यहाँ तक तो शायद ठीक भी रहता मगर हद तो तब हो गई जबकि विचारों को जबरिया मानने के लिए बाध्य किया जाने लगा. अगले ने जो लिखा है वही परम सत्य है, उसके आगे कुछ नहीं. यदि उसकी बात को काटा जा रहा है, उस पर किसी तरह की तार्किक बात की जा रही है तो विश्व युद्ध जैसी स्थिति बनी मानिए. विचारों के सन्दर्भ में उठा विमर्श कहिये आपकी निजी, व्यक्तिगत बातों तक पहुँच जाए. कहिये खुद के बारे में ऐसी-ऐसी बातें सुनाई पड़ जाएँ जो खुद को भी ज्ञात न हों. विचारों के प्रस्फुटन की तीव्रता के साथ इतनी संकुचित अवस्था शायद ही पहले कभी देखने को मिली हो.

बहरहाल, आज का दौर तकनीक का दौर है और तकनीक में वही गुरु है जो आपको एक क्लिक पर सबकुछ उपलब्ध करवा दे. उसके बाद अपने आपको यदि गुरु साबित करना है, यदि अपने विचारों की महत्ता सबके ऊपर थोपनी है तो फिर उन विचारों को (भले ही वे चोरी के हों) दूसरों से जबरिया स्वीकार करवाना ही है. उनके विचारों को गलत साबित करना ही है. ज्ञान-विज्ञान-तकनीक के दौर में विचारों का महत्त्व संभवतः इसी कारण कम होता जा रहा है, कोई किसी की बात सुनना-स्वीकारना पसंद नहीं कर रहा है. वर्तमान परिदृश्य में जहाँ समाज बचाना, जान बचाना, भविष्य बचाना प्राथमिकता में है वहीं विचारों का बचाया जाना भी लोगों को अपनी प्राथमिकता में शामिल करना होगा.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सही लिखा आपने। सबसे ज़्यादा युद्ध की स्थिति तब बनती है जब राजनैतिक विचारधारा में मतभेद हो।

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  2. समसामयिक लेख
    एकदम सटीक बात पटल पर रखी है अपने।

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