05 अगस्त 2018

दोस्ती और दोस्त का अंदाज


उस दिन रविवार था, अगस्त का पहला रविवार. उन दिनों मोबाइल सपने में भी सोचा नहीं गया था. बेसिक फोन की घंटी घनघनाई. रविवार होने के कारण सभी लोग घर में ही थे. कोई विशेष दिन मनाये जाने का न चलन था और अपनी आदत के अनुसार हम भी ऐसे किसी दिन के प्रति सजग-सचेत नहीं थे. सचेत-सजग तो आज भी नहीं हैं. बहरहाल, घनघनाती फोन की घंटी रुकी और उधर से हमको पुकारते हुए अम्मा बोली, किसी लड़की का फोन है. दिमाग की सारी घंटियाँ घनघना गईं.


हैलो के साथ हैप्पी फ्रेंडशिप डे की खनकती आवाज़ कानों में घुल गई. सेम टू यू कहने के बाद कुछ और आगे कहते उससे पहले ही दूसरी तरफ से कमेन्ट मारता हुआ उलाहना आकर कानों में गिरा, 'आप पहले फोन करके विश नहीं कर सकते थे? उलाहना देने का अंदाज़ भी इतना गज़ब कि अपनी आदत के अनुसार ठहाका मारते हुए हमने इतना कहा, दोस्ती में ऐसी औपचारिकता हम नहीं करते.

दो-तीन मिनट के बाद जब फोन रखा तो समझ नहीं आया कि इस तरह की हलकी-फुलकी मधुर नोंक-झोंक के बाद समाप्त हुई या फिर बात शुरू हुई? समय गुजरता रहा. वक्त बदलता रहा. स्थितियाँ-परिस्थितियाँ बदलती रहीं मगर बात ख़तम होकर जहाँ शुरू हुई थी वो न बदली. अगस्त आता रहा. अगस्त का पहला रविवार आता रहा. हर बार की तरह फोन उधर से ही आता रहा. हर बार विश करने के बाद वही मधुर उलाहना दिया जाता रहा, आप पहले फोन करके विश नहीं कर सकते थे? हमारा वो ठहाकेदार जवाब वैसे ही निकलता रहा.

सबकुछ बदलने के बाद भी लगता है जैसे कुछ न बदला. दोस्ती की नोंक-झोंक न बदली. दोस्ती का वो बेलौस अंदाज़ न बदला. दोस्ती आज भी वहीं उसी रूप में बनी हुई है जहाँ उस समय थी. समय बदला मगर अंदाज नहीं बदला. बहरहाल, अबकी फिर अगस्त आया है. अबकी फिर अगस्त का पहला रविवार आया है. अबकी फिर वही फ्रेंडशिप डे हर बार की तरह इस बार भी आया मगर यदि नहीं आया तो उसका फोन. सोशल मीडिया के ज़माने में भी सन्देश का इंतजार, फोन का इंतजार बना ही रहा. हाँ, चिर-परिचित अंदाज में, जैसा कि हमें विश्वास था उसका उलाहना ही आया क्या बात है फ्रेंडशिप डे पर कोई मैसेज ही नहीं. अब उससे क्या कहें, दिल और हम आज भी इंतजार करते हैं उसके फोन का, उसके मैसेज का. समय भले बदल गया हो मगर न वो बदली, न हम बदले. शिकायत ज्यों की त्यों हैं, अंदाज ज्यों का त्यों है, नाराजगी ज्यों की त्यों है, दोस्ती ज्यों की त्यों है. इस ज्यों के त्यों में हमें भली-भांति मालूम है कि अगले साल अगस्त के पहले रविवार को भी यही होना है. इसके बाद भी दोस्ती बदस्तूर जारी है. आखिर इसी का नाम दोस्ती है, इसी का नाम दोस्त है.  


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