आज अगस्त माह का
पहला रविवार होने के कारण लोग परिपाटीवश मित्रता दिवस मना रहे हैं. सोशल मीडिया
में खूब उल्लास दिखाई दे रहा है. इधर से उधर खूब सारे मैसेज फॉरवर्ड किये जा रहे
हैं. मौलिक संदेशों, चित्रों के बजाय मित्रता में कॉपी-पेस्ट किये गए सन्देश,
चित्र इधर से उधर भागते हुए थक गए हैं. ये सब जानते-समझते हुए भी दो दोस्तों की
दोस्ती में किसी तरह की कमी नहीं आती है. यही असल मित्रता का भाव होता है, जो सारी
असलियत समझने के बाद भी मित्रता का भाव बनाये रखता है. वर्तमान समय में जहाँ सभी
कुछ शॉर्टकट से पाने की लालसा पनपने लगी है, सभी में अपने साथ वाले से आगे ही नहीं
वरन बहुत-बहुत आगे निकलने की तृष्णा जन्मने लगी है ऐसे में दोस्ती यदि बनी रहती
है, असलियत को जानने के बाद भी साथ रहती है तो वह व्यक्ति पवित्र आत्माधारी माना
जाना चाहिए.
दोस्ती करना और उसे
निभाना दो अलग-अलग बातें हैं. दोस्ती करना उसे निभाने की तुलना में बहुत सरल है.
किसी भी रूप में वैचारिकी एकसमान दिखते ही वहाँ दोस्ती जैसे भाव उभर आते हैं मगर
उन्हें वैचारिकी में विभेद होने के बाद भी एकसमान बनाये रखना ही दोस्ती है. दोस्ती
के मूल में एक-दूसरे पर विश्वास, एक-दूसरे के साथ आत्मीयता, एक-दूसरे का सहयोग
छिपा होता है. ऐसा भाव सदा-सदा बनाये रखने वाले ही दोस्ती का निर्वहन सच्चे अर्थों
में कर पाते हैं. गहरी, प्रगाढ़, आत्मीय दोस्ती के दर्शन आजकल बहुत कम होते हैं.
स्वार्थ भरी दुनिया में दोस्ती के मायने भी अब बदलते जा रहे हैं. इस बदलाव को सोशल
मीडिया ने भी खूब हवा दी है. सोशल मीडिया के दौर में मित्रों की असीमित संख्या के
बाद भी अपना कहने वाले दोस्त की घनघोर कमी लोगों में दिखाई देती है. वैचारिकी के
जरा से विभेद पर दोस्ती को समाप्त होते यहाँ देखा जाता है. इसे दोस्ती के बजाय
सिर्फ मुलाकात, जान-पहचान कहना चाहिए. दोस्ती का असल सन्दर्भ आज बहुतेरे लोगों को
पता ही नहीं है. ऐसे लोगों द्वारा दोस्ती के मायने बदल दिए गए हैं. यही कारण है कि
आज दोस्ती के नाम पर सम्बन्ध बनाये जाने के बाद उनमें विश्वासघात होता दिखाई देता
है. काश कि शुभकामनाओं के बने-बनाये संदेशों का आदान-प्रदान करने के बजाय लोग
दिली-भावनाओं का आदान-प्रदान करते. आत्मीयता का आदान-प्रदान करते तो शायद दोस्ती
का, दोस्त का स्वरूप कुछ और ही दिखाई देता.
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