सम्पूर्ण
विश्व अनेकानेक संकटों से गुजरने के साथ-साथ पर्यावरण संकट के दौर से भी गुजर रहा है.
सत्यता यह है कि यह संकट मनुष्य द्वारा ही उत्पन्न किया गया है. इन्सान इस संकट के
लिए किसी शक्ति, परमात्मा, प्राकृतिक कारकों
को दोषी नहीं ठहरा सकता है. पर्यावरण संकट आज मानव समाज के सामने एक चुनौती के रूप
में खड़ा हुआ है. इसके मूल में तमाम कारण होते हुए भी सबसे प्रमुख है इन्सान का विकास
की अंधी दौड़ में लगे रहना. इस दौड़ ने मनुष्य को पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपने दायित्वों
से विमुख कर दिया है. आदिमानव से महामानव बनने की अदम्य लालसा में इस बात की परवाह
किये बिना कि उसकी संतति प्रकृति से क्या पाएगी, उसने प्रकृति
का अंधाधुंध दोहन किया है. ओजोन परत में छेद होना, ग्लेशियरों
का पिघलना, अम्लीय वर्षा का होना, बेमौसम
की बरसात का होना, बर्फ़बारी की घटनाएँ आदि इस असंतुलन का दुष्परिणाम
हैं. कल-कारखानों से निकलने वाला धुआँ, वाहनों से निकलती कार्बन
मोनो आक्साइड तथा अन्य जहरीली गैसें, बिजली ताप घर से निकलती
सल्फर डाई आक्साइड, धूम्रपान से निकलता विषैला धुआँ, तथा अन्य रूप में वातावरण में मिलती निकोटिन, टार अमोनिया,
बेंजापाईरिन, आर्सेनिक, फीनोल
मार्श आदि जहरीली गैसें व्यक्तियों, जंतुओं, वनस्पतियों आदि को व्यापक रूप से नुकसान पहुँचा रही हैं. मनुष्य के उठते लगभग
प्रत्येक कदम से आज पर्यावरण को नुकसान पहुँच रहा है. इसमें भी सबसे ज्यादा नुकसान
उसके द्वारा प्रत्येक छोटे-बड़े कामों के लिए उपयोग में लाई जा रही पॉलीथीन से हो रहा
है.
पॉलीथीन
से पर्यावरण को सर्वाधिक नुकसान होता समझ भी आ रहा है, दिख भी
रहा है. इसमें पाली एथीलीन के होने के कारण उससे बनने वाली एथिलीन गैस पर्यावरण क्षति
का बहुत बड़ा स्त्रोत है. पॉलीथीन में पालीयूरोथेन नामक रसायन के अतिरिक्त पालीविनायल
क्लोराइड (पीवीसी) भी पाया जाता है. इन रसायनों की उपस्थिति के कारण पॉलीथीन हो या
कोई भी प्लास्टिक उसको नष्ट करना संभव नहीं होता है. जमीन में गाड़ने, जलाने, पानी में बहाने अथवा किसी अन्य तरीके से नष्ट
करने से भी इसको न तो समाप्त किया जा सकता है और न ही इसमें शामिल रसायन के दुष्प्रभाव
को मिटाया जा सकता है. यदि इसे जलाया जाये तो इसमें शामिल रसायन के तत्व वायुमंडल में
धुंए के रूप में मिलकर उसे प्रदूषित करते हैं. यदि इसको जमीन में दबा दिया जाये तो
भीतर की गर्मी, मृदा-तत्त्वों से संक्रिया करके ये रसायन जहरीली
गैस पैदा करते हैं, इससे भूमि के अन्दर विस्फोट की आशंका पैदा
हो जाती है. पॉलीथीन को जलाने से क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैस धुंए के रूप में वायुमंडल
से मिलकर ओजोन परत को नष्ट करती है. इसके साथ-साथ पॉलीथीन को जमीन में गाड़ देना भी
कारगर अथवा उचित उपाय नहीं है क्योंकि यह प्राकृतिक ढंग से अपघटित नहीं होता है इससे
मृदा तो प्रदूषित होती ही है साथ ही ये भूमिगत जल को भी प्रदूषित करती है. इसके साथ-साथ
जानवरों द्वारा पॉलीथीन को खा लेने के कारण ये उनकी मृत्यु का कारक बनती है.
सबकुछ
जानते-समझते हुए भी आज बहुतायत में पॉलीथीन का उपयोग किया जा रहा है. यद्यपि केन्द्रीय
सरकार ने रिसाइक्लड, प्लास्टिक मैन्यूफैक्चर एण्ड यूसेज रूल्स
के अन्तर्गत 1999 में 20 माइक्रोन से कम
मोटाई के रंगयुक्त प्लास्टिक बैग के प्रयोग तथा उनके विनिर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया
था किन्तु ऐसे प्रतिबन्ध वर्तमान में सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गए हैं. इसका मूल
कारण पॉलीथीन बैग की मोटाई की जांच करने की तकनीक की अपर्याप्तता है. ऐसे में पॉलीथीन
के दुष्प्रभाव को रोकने का सर्वाधिक सुगम उपाय उसके पूर्ण प्रतिबन्ध का ही बचता है.
पॉलीथीन के द्वारा उत्पन्न वर्तमान समस्या और भावी संकट को देखते हुए नागरिकों को स्वयं
में जागरूक होना पड़ेगा. कोई भी सरकार नियम बना सकती है, अभियान
का सञ्चालन कर सकती है किन्तु उसे सफलता के द्वार तक ले जाने का काम आम नागरिक का ही
होता है. इसके लिए उनके द्वारा दैनिक उपयोग में प्रयोग के लिए कागज, कपड़े और जूट के थैलों का उपयोग किया जाना चाहिए. नागरिकों को स्वयं भी जागरूक
होकर दूसरों को भी पॉलीथीन के उपयोग करने से रोकना होगा. हालाँकि अभी भी कुछ सामानों,
दूध की थैली, पैकिंग वाले सामानों आदि के लिए सरकार
ने पॉलीथीन के प्रयोग की छूट दे रखी है, इसके लिए नागरिकों को
सजग रहने की आवश्यकता है. उन्हें ऐसे उत्पादों के उपयोग के बाद पॉलीथीन को अन्यत्र,
खुला फेंकने के स्थान पर किसी रिसाइकिल स्टोर पर अथवा निश्चित स्थान
पर जमा करवाना चाहिए. ये बात हम सबको स्मरण रखनी होगी कि सरकारी स्तर पर पॉलीथीन पर
लगाया गया प्रतिबन्ध कोई राजनैतिक कदम नहीं वरन हम नागरिकों के, हमारी भावी पीढ़ी के सुखद भविष्य के लिए उठाया गया कदम है. इसको कारगर उसी स्थिति
में किया जा सकेगा, जबकि हम खुद जागरूक, सजग, सकारात्मक रूप से इस पहल में अपने प्रयासों को जोड़
देंगे.
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