महात्मा
गाँधी जी जयंती पर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा स्वच्छता अभियान का
आरम्भ करके गाँधी जी के कार्यों को व्यावहारिक रूप देने का प्रयास किया है. ये
अपने आपमें एक सराहनीय कदम है और इसे राजनीति से इतर देखने की जरूरत है. शायद ही
कोई व्यक्ति ऐसा होगा जो समाज में सफाई की महत्ता से इंकार करे; शायद ही कोई
व्यक्ति ऐसा होगा जो गंदगी में रहना चाहता हो. ये एक सार्वभौम सत्य है कि स्वच्छता
से ही स्वास्थ्य जुड़ा हुआ है और इसके बिना स्वस्थ समाज की, स्वस्थ इंसान की कल्पना
भी नहीं की जा सकती है. ऐसे में हम सबका दायित्व इतना तो बनता ही है कि
स्व-स्फूर्त रूप से हम सब सफाई के लिए, स्वच्छता के लिए आगे बढ़ते, न कि
प्रधानमंत्री के कहने पर औपचारिकता मात्र करते.
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ये
तो स्पष्ट है कि २ अक्टूबर को सभी कार्यालयों में सफाई अभियान चलाया जायेगा. जहाँ
मंत्रियों, नेताओं, सांसदों, विधायकों को सफाई करने का कार्य करना है वहाँ सफाई
पहले से रहेगी और चंद टुकड़े गंदगी के इनके लिए ही सुनियोजित तरीके से बिखेरे
जायेंगे. महज एक दिन की औपचारिकता दिखाने से न तो सफाई हो पानी है और न ही स्वच्छ
समाज बनना है. दरअसल गंदगी अब हमारे दिमाग में बैठ चुकी है. अपने घर को, अपने आँगन
को तो हम चमकाना चाहते हैं, साफ़ रखते हैं किन्तु घर के आसपास को स्वच्छ नहीं रखना
चाहते हैं. घर के कूड़े-करकट को निर्धारित स्थान पर फेंकना हम तौहीन समझते हैं और
कूड़े को इधर-उधर फेंक देने में हमने महारत हासिल कर रखी है. सड़क चलते जहाँ-तहाँ
थूक देना, पान-गुटखे की पीक से चित्रकारी कर देना हमें गर्वोन्मत्त करता है. इस
तरह की स्थितियों के चलते स्वच्छ समाज का, स्वच्छ वातावरण का विचार लाना
कपोलकल्पना ही लगती है.
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इस दिखती गंदगी का मुख्य कारण हमारी
मानसिकता है, जो निम्न स्तर तक पहुँच चुकी है. यदि प्रधानमंत्री के आगे आने से और
जन-सहयोग से समाज में दिखती गंदगी मिट भी गई, सब तरफ साफ़-सफाई दिखने लगी, सड़क, घर,
दुकान, पार्क, कार्यालय आदि-आदि आईने की तरह चमकने लगे पर मानसिक गंदगी के रहते ये
सब बेमानी ही कहा जायेगा. ये दिखती गंदगी भी साफ़ हो और मन में बसी गंदगी भी साफ़
हो. बेटे के लिए बेटियों को मार डालना; औरतों को उपभोग की वस्तु समझना; महिलाओं का
शारीरिक शोषण करना; धर्म-जाति के नाम पर वैमनष्यता फैलाना; संपत्ति विवाद में
भाई-भाई की हत्या कर देना; चोरी, डकैती, हत्या, लूटमार, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, मिलावतखोरी
आदि वे स्थितियाँ हैं जिनका सम्बन्ध सीधे-सीधे हमारी मानसिकता से है. इसके साफ़
किये बिना, इसको स्वच्छ किये बिना, इसको स्वस्थ बनाये बिना किसी भी तरह का सफाई
अभियान अधूरा ही रहेगा. आइये गंदगी साफ़ करने के लिए कार्यालयों में, घरों में झाड़ू
लगायें और मानसिक विकारों पर भी झाड़ू चलायें.
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जवाब देंहटाएंthats why i have read it entirely
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