02 सितंबर 2013

धार्मिक आडम्बरों की अंध-दौड़ के चलते जागरूकता संभव नहीं




पिछले कुछ दिनों से देश की मीडिया द्वारा यौन शोषण के आरोपी आसाराम की पल-पल की गतिविधि को इस तरह से प्रस्तुत किया जा रहा है जैसे देश के सामने वर्तमान में एकमात्र समस्या यही रह गई हो. इधर आसाराम के समर्थक और विरोधी सीधे-सीधे निष्कर्ष देने में लगे हुए हैं. सत्यता क्या है ये तो जाँच के आधार पर ही ज्ञात हो सकेगा किन्तु जिस तरह से इसे हाईप्रोफाइल ड्रामा बना दिया गया वो नागरिकों के मानसिक स्तर को समझने के लिए पर्याप्त है. बलात्कार, यौन शोषण के अनेक मामलों में एकाध पर जबरदस्त प्रतिक्रिया होना, मीडिया का एकाएक सरगर्मी के बाद चुप हो जाना, संवेदनशीलता का नेपथ्य में चले जाना आदि हमारी क्षणिक जागरूकता प्रदर्शित करता है. इसके ठीक उलट आसाराम प्रकरण लगातार मीडिया में, सोशल मीडिया में, जनमानस में अपनी सुगबुगाहट बनाये रहा, जो अपनी अलग ही कहानी कहता है.
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इक्कीसवीं सदी में पदार्पण कर जाने के, विज्ञान के ज्ञान के बाद भी भारतीय जनमानस खुद को धर्म से, धार्मिक कर्मकांडों से, धार्मिक व्यक्तित्वों से अलग नहीं कर सका है. धर्मगुरु पर लगने वाला कोई भी आरोप उसके समर्थकों के विश्वास को खंडित करता है, भावनाओं को चोट पहुँचाता है, भक्तों की भक्ति पर उँगली उठाता है. ऐसा किसी एक धर्म मजहब के साथ नहीं बल्कि ये स्थिति सभी धर्मों के सन्दर्भ में एक जैसी ही है. किसी भी धर्मगुरु के प्रति उसके भक्तों की अगाध श्रद्धा को सभी धर्मगुरु जानते-समझते हैं और गाहे-बगाहे इसका अनुचित लाभ भी उठाते रहते हैं. भारतीय समाज में बचपन से ही धर्म के प्रति जिस तरह से एक अलग किस्म की घुट्टी पिलाई जाती है उसके बाद धर्म के विरुद्ध जा पाना प्रत्येक व्यक्ति के लिए संभव नहीं हो पाता है. इसी के चलते लाभ-हानि, अर्थ-अनर्थ, स्वर्ग-नरक, मंगल-अमंगल आदि अवधारणाओं ने मन-मष्तिष्क को कुंद कर दिया है.
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तथाकथित धर्मगुरुओं के अनगिनत और रसूखदार अनुयायी होने के कारण जहाँ ये बाबा अकूत संपत्ति के मालिक बन बैठते हैं वहीं धर्म की आड़ में आपराधिक गतिविधियों का सञ्चालन भी करने लगते हैं. एक आसाराम प्रकरण ने ही नहीं बल्कि देश के विभिन्न धर्मों के विभिन्न तथाकथित गुरुओं ने अपने क्रियाकलापों से धार्मिक विश्वास को खंडित किया है. धार्मिक उपदेश देते, प्रवचन करते इन तथाकथित बाबाओं को अपने अनुयायियों का विश्वास खंडित करने से, धार्मिक पाखण्ड फ़ैलाने से भले ही कोई न रोक पाए किन्तु इनकी अंध-भक्ति में लीन इनके अनुयायियों को समझाना होगा कि वास्तविकता क्या है...उनके धर्म-गुरुओं की असलियत क्या है. हालाँकि धार्मिक आडम्बरों की अंध-दौड़ में शामिल समाज से ऐसी जागरूकता दिख पाना हाल-फ़िलहाल तो संभव नहीं लगता.

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