महाराज कुछ चिन्ता की मुद्रा में बैठे थे। सिर हाथ के हवाले था और हाथ कोहनी
के सहारे पैर पर टिका था। दूसरे हाथ से सिर को रह-रह कर सहलाने का उपक्रम भी किया जा
रहा था। तभी महाराज के एकान्त और चिन्तनीय अवस्था में ऋषि कुमार ने अपनी पसंदीदा ‘नारायण, नारायण’ की रिंगटोन को
गाते हुए प्रवेश किया।
ऋषि कुमार के आगमन पर महाराज ने ज्यादा गौर नहीं फरमाया। अपने चेहरे का कोण
थोड़ा सा घुमा कर ऋषि कुमार के चेहरे पर मोड़ा और पूर्ववत अपनी पुरानी मुद्रा में लौट
आये। ऋषि कुमार कुछ समझ ही नहीं सके कि ये हुआ क्या? अपने माथे
पर उभर आई सिलवटों को महाराज के माथे की सिलवटों से से मिलाने का प्रयास करते हुए अपने
मोबाइल पर बज रहे गीत को बन्द कर परेशानी के भावों को अपने स्वर में घोल कर पूछा-‘‘क्या हुआ महाराज? किसी चिन्ता में हैं अथवा चिन्तन कर
रहे हैं?
महाराज ने अपने सिर को हाथ की पकड़ से मुक्त किया और फिर दोनों हाथों की उँगलियाँ
बालों में फिरा कर बालों को बिना कंघे के सवारने का उपक्रम किया। खड़े होकर महाराज ने
फिल्मी अंदाज में कमरे का चक्कर लगा कर स्वयं को खिड़की के सामने खड़ा कर दिया। ऋषि कुमार
द्वारा परेशानी को पूछने के अंदाज ने महाराज को दार्शनिक बना दिया-‘‘अब काहे का चिन्तन ऋषि कुमार? चिन्तन तो इस व्यवस्था
ने समाप्त ही कर दिया है। अब तो चिन्ता ही चिन्ता रह गई है।’’
ऋषि कुमार समझ गये कि महाराज की चिन्ता बहुत व्यापक स्तर की नहीं है। ऋषि कुमार
के ऊपर आकर बैठ चुका चिन्ता का भूत अब उतर चुका था। वे एकदम से रिलेक्स महसूस करने
लगे और बेफिक्र अंदाज में महाराज के पास तक आकर थोड़ा गर्वीले अंदाज में बोले-‘‘अरे महाराज! हम जैसे टेक्नोलोजी मैन के होते आपको परेशान होना पड़े तो लानत
है मुझ पर।’’ महाराज ने ऋषि कुमार के चेहरे को ताका फिर इधर-उधर
ताकाझाँकी करके बापस खिड़की के बाहर देखने लगे। महाराज के बाहर देखने के अंदाज को देख
ऋषि कुमार ने भी अपनी खोपड़ी खिड़की के बाहर निकाल दी।
‘‘कहीं स्वर्ग, नर्क के समस्त वासियों के क्रिया-कलापों
के लिए लगाये गये क्लोज-सर्किट कैमरों में कोई समस्या तो नहीं आ गई?’’ ऋषि कुमार ने अपनी एक और चिन्ता को प्रकट किया। महाराज के न कहते ही ऋषि कुमार
ने इत्मीनान की साँस ली। सब कुछ सही होना ऋषि कुमार की कालाबाजारी को सामने नहीं आने
देता है। ‘‘फिर क्या बात है महाराज, बताइये
तो? आपकी परेशानी मुझसे देखी नहीं जा रही।’’ ऋषि कुमार ने बड़े ही अपनत्व से महाराज की ओर चिन्ता को उछाल दिया।
महाराज ऋषि कुमार की ओर घूमे और बोले-‘‘बाहर देख रहे
हो कितनी भीड़ आने लगी है अब मृत्युलोक से। मनुष्य ने तकनीक का विकास जितनी तेजी से
किया उतनी तेजी से मृत्यु को भी प्राप्त किया। अब दो-चार, दो-चार
की संख्या में यहाँ आना नहीं होता; सैकड़ों-सैकड़ों की तादाद एक
बार में आ जाती है। कभी ट्रेन एक्सीडेंट, कभी हवाई जहाज दुर्घटना,
कभी बाढ़, कभी भू-स्खलन, कभी
कुछ तो कभी कुछ........उफ!!! कारगुजारियाँ करे इंसान और परेशान होते फिरें हम।’’
ऋषि कुमार हड़बड़ा गये कि महाराज के चिन्तन को हो क्या गया? इंसान की मृत्यु पर इतना मनन, गम्भीर चिन्तन?
अपनी जिज्ञासा को महाराज के सामने प्रकट किया तो महाराज ने समस्या मृत्यु
को नहीं बताया। महाराज के सामने समस्या थी स्वर्ग तथा नर्क के बँटवारे की। ऋषि कुमार
ने अपनी पेटेंट करवाई धुन ‘नारायण, नारायण’
का उवाच किया और महाराज से कहा कि इसमें चिन्ता की क्या बात है,
हमेशा ही अच्छे और बुरे कार्यों के आधार पर स्वर्ग-नर्क का निर्धारण
होता रहा है; अब क्या समस्या आन पड़ी?
महाराज ने अपने पत्ते खोल कर स्पष्ट किया कि ‘महाराजाधिराज
ने युगों के अनुसार कार्यों का लेखा-जोखा तैयार कर रखा है। चूँकि भ्रष्टाचार,
आतंक, झूठ, मक्कारी,
हिंसा, अत्याचार, डकैती,
बलात्कार, अपराध, रिश्वतखोरी,
अपहरण आदि-आदि कलियुग के प्रतिमान हैं, इस दृष्टि
से जो भी इनका पालन करेगा, जो भी इन कार्यों को पूर्ण करेगा वही
सच्चरित्र वाला, पुण्यात्मा वाला होगा शेष सभी पापी कहलायेंगे,
बुरी आत्मा वाले कहलायेंगे............’
‘‘.......तो महाराज, फिर चिन्ता कैसी? जो
पुण्यात्मा हो उसे स्वर्ग और जो पापात्मा हो उसे नर्क में भेज दें, सिम्पल सी बात।’’ ऋषि कुमार ने महाराज के शब्दों के बीच
अपने शब्दों को घुसेड़ा। अपनी बात को कटते देख महाराज ने भृकुटि तानी और इतने पर ही
ऋषि कुमार की दयनीय होती दशा देख थोड़ा नम्र स्वर में बोले-‘‘कितनी
बार कहा है कि बीच में मत टोका करो, पर नहीं। यदि स्वर्ग-नर्क
का निर्धारण इतना आसान होता तो समस्या ही क्या थी।’’
ऋषि कुमार को अपनी गलती का एहसास हुआ और अबकी वे बिना बात काटे महाराज की बात
सुनने को आतुर दिखे। महाराज ने उनसे बीच में न टोकने का वचन लेकर ही बात को आगे बढ़ाने
के लिए मुँह खोला-‘‘समस्या यह है कि धरती से जो भी आता है वह
भ्रष्टाचार, आतंक, बलात्कार, रिश्वतखोरी, मक्कारी, अत्याचार
आदि गुणों में से किसी न किसी गुण से परिपूर्ण होता है। ऐसे में महाराजाधिराज के बनाये
विधान के अनुसार उसे स्वर्ग में भेजा जाना चाहिए किन्तु स्वर्ग की व्यवस्था को सुचारू
रूप से बनाये रखने के लिए ऐसे लोगों में अन्य दूसरे गुणों-दया, ममता, करुणा, अहिंसा, धर्म आदि-को खोज कर उन्हें नर्क में भेज दिया जाता है।’’ तभी महाराज ने देखा कि ऋषि कुमार अपने मोबाइल के की-पैड पर उँगलियाँ नचाने
में मगन हैं। ‘‘क्या बात है ऋषि कुमार, हमारी बातें सुन कर बोर होने लगे?’’ ‘‘नहीं, नहीं महाराज, ऐसा नहीं है। हम तो मोबाइल स्विच आफ कर
रहे थे ताकि आपकी बातों के बीच किसी तरह का व्यवधान न पड़े।’’ ऋषि कुमार अपनी हरकत के पकड़ जाने पर एकदम से हड़बड़ा गये।
महाराज ने ऋषि कुमार की ओर से पूरी संतुष्टि के बाद फिर से मुँह खोला-‘‘पहले स्थिति तो कुछ नियंत्रण में थी किन्तु जबसे धरती से राजनीतिक व्यक्तियों
का आना शुरू हुआ है तबसे समस्या विकट रूप धारण करती जा रही है। इन नेताओं में तो किसी
दूसरे गुण को खोजना भूसे में सुई खोजने से भी कठिन है। इस कारण स्वर्ग की व्यवस्था
भी दिनोंदिन लचर होती जा रही है। सब मिलकर आये दिन किसी न किसी बात पर अनशन,
धरना, हड़ताल आदि करने लगते हैं। किसी दिन ज्ञापन
देने निकल पड़ते हैं। अब यही सब मिल कर हमारे अधीनस्थों को चुनाव के लिए, लाल बत्ती के लिए उकसा रहे हैं।’’ महाराज ने दो पल का
विराम लिया और कोने में रखे फ्रिज में से ठंडी बोतल निकाल कर मुँह में लगा ली। गला
पर्याप्त ढंग से ठंडा करने के बाद उन्होंने ऋषि कुमार की ओर देखा। ऋषि कुमार ने पानी
के लिए मना कर आगे जानना चाहा।
महाराज धीरे-धीरे चलकर ऋषि कुमार के पास तक आये और उनके कंधे पर अपने हाथ रखकर
समस्या का समाधान ढूँढने को कहा-‘‘कोई ऐसा उपाय बताओ ऋषि कुमार
जिससे इन सबको स्वर्ग की बजाय नर्क में भेजा जा सके और यहाँ के लिए बनाया महाराजाधिराज
का विधान भी भंग न हो।’’
ऋषि कुमार महाराज की समस्या को सुनकर चकरा गये। महाराज की आज्ञा लेकर पास पड़ी
आराम कुर्सी पर पसर गये। दो-चार मिनट ऋषि कुमार संज्ञाशून्य से पड़े रहने के बाद उन्होंने
आँखें खोलकर महाराज की ओर देखा। महाराज को चुप देख ऋषि कुमार आराम से उठे और बोले-‘‘महाराज धरती के नेताओं की समस्या तो बड़ी ही विकट है। उनसे तो वहाँ के मनुष्यों
द्वारा बनाये विधान के द्वारा भी पार नहीं पाया जा सका है। बेहतर होगा कि मुझे कुछ
दिनों के लिए कार्य से लम्बा अवकाश दिया जाये जिससे कि विकराल होती इस समस्या का स्थायी
समाधान खोजा जा सके। तब तक एकमात्र हल यही है कि धरती पर नेताओं को हाथ भी न लगाया
जाये। बहुत ही आवश्यक हो तो उनके स्थान पर आम आदमी को ही उठाया जाता रहा जाये।’’
इतना कहकर ऋषि कुमार महाराज की आज्ञा से बाहर निकले और अपनी मनपसंद रिंगटोन
‘नारायण, नारायण’ गाते हुए वहाँ से सिर पर पैर रखकर भागते दिखाई दिये।
महाराज भी उनके इस सुझाव पर विचार करने को उत्सुक से लगे।
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चित्र गूगल छवियों से साभार
अच्छी है सर जी,
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आपका अभय.
जानिए मच्छर मारने का सबसे आसान तरीका - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबढ़िया जी | आभार
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
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