कई बार आंखों के सामने से ऐसे-ऐसे
दृश्य गुजर जाते हैं कि यह समझना कठिन हो जाता है कि समाज संवेदनाओं के प्रति
जागरूक है अथवा उसके प्रति संज्ञाशून्य है। कभी कुछ दृश्यों को देखकर लगता है कि
समाज में अभी संवेदनशीलता बरकरार है तो कभी-कभी कुछ घटनाओं को देखने के बाद इसके
ठीक उलट स्थिति का आभास होता है। संवेदनशीलता और संवेदनहीनता के बीच की बारीक सी
रेखा को कई बार उनको लांघते देखा है जो किसी रूप में दूसरे व्यक्ति के लिए भगवान
से कम नहीं। संवेदनाओं के कोमल तार तोड़ने में चिकित्सकों को सबसे आगे निकलते देखा
जा सकता है। इंसान आज भी कितनी ही आपाधापी की जिन्दगी क्यों न गुजार रहा हो किन्तु
वह डाक्टर्स को भगवान के समकक्ष ही मानता-समझता है। बीमार व्यक्ति को, आपातकालीन स्थितियों में किसी व्यक्ति के चिकित्सक के पास आने
पर उससे सम्बन्धित व्यक्ति कुछ भी, कुछ भी करने को तैयार
रहते हैं, इसके बाद भी अधिसंख्यक मामलों में डॉक्टर्स का
रवैया नितांत व्यावसायिक रहता है।
यह सही है कि किसी भी चिकित्सक के लिए
बहुत अधिक रूप में संवेदनशील होने पर मरीज के साथ होने वाली जटिल स्थिति से निपटना
सम्भव नहीं हो सकता है। देखा जाये तो यह स्थिति किसी भी मरीज का इलाज/उपचार करने
के दौरान की है किन्तु यदि कोई चिकित्सक किसी मरीज का इलाज करने के पहले ही उसका
शोषण करना शुरु कर दे तो उस चिकित्सक को क्या कहा जायेगा? हमें व्यक्तिगत रूप से बहुत बार चिकित्सकों का सामना करना
पड़ता है, कभी अपने परिचितों के इलाज के सम्बन्ध में तो कभी
किसी अपरिचित का भी इलाज करवाने के सम्बन्ध में तो कभी किसी मददगार की मदद करने के
सम्बन्ध में और हर बार कोई न कोई नया अनुभव हमारे साथ गुजर जाता है। इन्हीं
अनुभवों के आधार पर लगभग हर बार ऐसा अनुभव किया है कि चिकित्सकों से ज्यादा
असंवेदनशील, भ्रष्ट वर्ग शायद ही कोई दूसरा होगा, इनमें वे चिकित्सक कतई शामिल नहीं हैं जो नितान्त ईमानदारी के साथ अपने
कार्य को अंजाम दे रहे हैं और ऐसे लोगों की भी विस्तृत सूची हमारे पास है।
बहुत पुरानी बात न करें तो अभी पिछले
एक माह में ही हमें तीन बार अपने जिला महिला चिकित्सालय की महिला चिकित्सकों से
मिलने का अवसर मिला। हर बार किसी न किसी रिश्तेदार के प्रसव का मामला रहा और हर
बार चिकित्सकों द्वारा इस तरह से डराया गया मानो ऑपरेशन न करवाया गया तो बच्चा
गर्भ में ही दम तोड़ देगा। उनके कहे अनुसार तमाम अन्य व्यवस्थाओं को करने के बाद भी
उनका डराना जारी रहा और कहीं न कहीं प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से मरीज को उनके
निजी संरक्षण में लाने की बात भी कही गई। हालांकि प्रत्येक केस में महिला
चिकित्सालय के अन्य परिचित-घरेलू स्टाफ के कारण सभी प्रसव सामान्य रूप से ही
सम्पन्न हुए। इसके अलावा भी बहुत सारे मामले हमने स्वयं ऐसे देखे हैं जिनमें
चिकित्सकों द्वारा अमानवीय, असंवेदनशीलता का परिचय दिया है।
आज जबकि समाज के लगभग सभी वर्गों में
भ्रष्टाचार, अनियमितता, विसंगतियां
दिखाई देती हैं, चिकित्सकों से थोड़ी बहुत मानवीयता की,
संवेदनशीलता की अपेक्षा तो की ही जा सकती है, वो
भी इस कारण से कि उनके हाथों में किसी एक असहाय इंसान की जान सुरक्षित होती है।
इसके बाद भी चिकित्सकों को लोगों के जीवन से खेलता हुआ आसानी से देखा जा सकता है।
कम से कम चिकित्सकों को अपने आपको व्यावसायिकता से थोड़ा सा दूर रखने की आवश्यकता
है, यह समाज के लिए नहीं, इंसान के लिए
नहीं, इंसानियत के लिए भी आवश्यक है।
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चित्र गूगल छवियों से साभार
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